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POVERTY LINE....a fallacy

-----गरीबी रेखा का छलावा  http://www.kaashindia.com/?m= 201204      गरीबी रेखा एक ऐसा फल है जिसे निचोड निचोड कर रस पीना सरकार का भी उद्देश्य रहा है और राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् का भी । राजनेता जब इसमे से रस निचोडता है तो वोट रूपी  रस निकलता है और सलाहकार समिति निचोडती है तो  वेतन भत्ते रूपी रस।  लेखक और मीडिया कर्मी भी कुछ न कुछ निचोडकर इसका उपयोग करते ही रहते है। गरीबी रेखा संबंधी जो भी  आकडे आप सुनते है वे सब सही है चाहे  वे किसी के भी द्वारा क्यो न कहे जावे क्योकि सबकी अपनी अपनी रेखा है और अपनी रेखा  के मुताबिक आंकडे। सवाल आंकडो का नही है। सवाल है किसी मान्य रेखा का । भारत की न्यायपालिका के लोग भी अपना काम छोडकर इस रेखा के पीछे इस लिये लगे रहते है क्योकि उन्हे कुछ सस्ती लोकप्रियता चाहिये ही। वे भी तो बेचारे मनुष्य  ही है।            जो भी विपक्ष मे है वह मानता है कि कुछ प्रतिशत अमीरों को छोडकर बाकी सब लोग गरीब है। जो सत्ता मे है वे मानते है कि कुछ प्रतिशत गरीबो को छोडकर बाकी सब अमीर है। अ...

Mumbai terror attack 13/7

मुम्बई बम विस्फोट की सीख  - माया मिली न राम       एक बार फिर आतंकवाद ने मुम्बई को लपेट लिया | 13 जुलाई की तिकड़ी विस्फोटों ने फिर से साबित कर दिया कि भारत आतंकवादियों के लिए साफ्ट टार्गेट है | हमले के तुरंत बाद राजनेताओं के बयान भविष्य के लिए स्पष्ट संकेत हैं | केन्द्रीय गृहमंत्री ने माना कि हमलों की कोई खुफिया  पूर्वसूचना नहीं थी | कांग्रेस के युवराज महासचिव  ने कहा कि हर हमले से जनता को बचाना सरकार के हाथ की बात नहीं है | गुजरात के मुख्यमंत्री, भाजपा के करिश्माई नेता ने तो यहाँ तक कह दिया कि यह भविष्य के बड़े हमलों का रिहर्सल मात्र है | निरीह जनता बेचारी पीड़ा से कराह रही है और राज्यसत्ता ने उन्हें रामभरोसे छोड़ दिया है |       सवाल है कि जब देश के दोनों बड़े राजनैतिक दल जनता को आश्वस्त करने की बजाय अपने प्रारब्ध पर छोड़ रहे हैं, तो शासन व्यवस्था की आवश्यकता ही क्या है ? एक तरफ तो शासन  यह कहे कि गिनती भर आतंवादियों को नियंत्रित करना उसके बस का नहीं, अगले ही पल वही शासन 120  करोड...

RAM Charcha : मानना और जानना

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सीय राम मय सब जग जानि |  करउं प्रनाम जोरि जुग पानी || Listen to speech     रा मचंद्र जी को मैं भगवान् मानता हूँ, पर यह आवश्यक नहीं मानता की सब उन्हें भगवान् मानें | ईश्वर ने राम बनके अवतार लिया या राम नामक मनुष्य अपने चरित्र से ईश्वरीय बन गया इस विषय में भी मैं नहीं पड़ता | राम दशरथ नंदन थे या दशावतार में एक, मैं इसमें भी नहीं पड़ना चाहता | राम पौराणिक पुरुष रहें हो, चाहे ऐतिहासिक पुरुष रहे हों पर निश्चित रूप से वे मर्यादा पुरुषोत्तम थे | इसीलिए तो हजारों वर्षों से राम करोड़ों लोगों के दिल में रमे हैं, और उनसे हम सब का किसी न किसी रूप से संप्रत्य जुडा है यह निर्विवाद है |     किसी विषय को मानना आसान है, पर जानने की प्रक्रिया शुरू होते है की जानी हुई चीज को दूसरों को भी समझाने की क्षमता विकसित करनी पड़ती है | राम को मानना और जानना भिन्न-भिन्न चीजें हैं | भगवान् को हम मानते हैं, मित्र को हम जानते हैं | तो मानना आसान है, और जानने की प्रक्रिया शुरू होते है की जानी हुई चीज को हम दूसरों को भी समझा सकें, ऎसी स्थिति आती है | पर यहाँ अनुभूति की व्याख्या करना कठिन प्रतीत ...

Parliament Censure & Team Anna

-------------------मोर-मोर मौसेरे भाई        भारतीय संसद   ने एकमत से बिना नाम लिए टीम अन्ना के विरुद्ध  चेतावनी प्रस्ताव मंजूर किया है | हाल ही में एक सार्वजनिक सभा  में टीम अन्ना ने लोकपाल बिल मामले में सांसदों के आचरण को चोर की दाढी में .... कहा तो श्रोताओं ने ...... तिनका का नारा दिया | हमारे सांसदों  को यह नागवार गुजरा कि उनके बीच 150 से अधिक अपराधियों को चोर कहा जाय | प्रश्न है कि मोर  को मोर  नहीं तो क्या मुर्गा कहा जाय ? यह भी एक चिंतन का विषय है कि 540 संख्या वाले सदन को 150 संख्या वाले सांसद कैसे संचालित कर रहे हैं, वरना जो करीब 400  सांसद  बेदाग़ हैं,  वे दागियों के पक्ष में कैसे हो गए ?  गाय को पूँछ हिलाते हुए तो  देखा है  पर यहाँ तो पूँछ ही गाय को हिला रही है | संसद के विभिन्न राजनैतिक दल एक दूसरे को चोर उचक्का कहें तो क्षम्य, पर लोक कुछ कहे तो अवमानना, हमारा बच्चा मुन्ना, आपका बच्चा जनसंख्या, यह समझ से परे है |      ऐसे चरित्र वा...

5 state election results

----- 5 राज्यों  के विधान सभा नतीजों  का निहित                  मनुष्य की आकांक्षा एवं उसे पूरी करने के हेतुओं में अंतर रहता है | मनुष्य के स्वभाव में ही स्वतंत्रता है | उस स्वतंत्रता की राजनैतिक/सामाजिक व्यवस्था ही स्वराज्य है | वेदवाक्य भी है, "यतीमहे स्वराज्ये" | स्वराज्य का मार्ग लोकतंत्र से होकर गुजरता है | स्फूर्त लोकतंत्र स्वराज्य की ओर झुका होता है और मंद लोकतंत्र तानाशाही की ओर | भारत का नागरिक भी स्वराज्य चाहता है पर वर्तमान भारतीय संविधान लोकस्वराज्य का दस्तावेज न होकर लोकतंत्र का घोषणापत्र मात्र है | इसमें केंद्र  के बाद राज्य को ही अंतिम इकाई मान ली गई है | स्थानीय निकायों, ग्राम सभा, परिवार आदि को स्वायत्त अधिकार नहीं हैं |       तो स्वाभाविक ही है कि चुनावों में जनमानस अपनी स्वराज्य की इच्छा वर्तमान में उपलब्ध सबसे छोटी इकाई के प्रति ही जाहिर कर सकता है | क्योंकि शासित-शासक की दूरी जितनी कम होती है, व्यवस्था उतनी ही अधिक सुचारू । शासित-शासक की दूरी घटाने के मनुष्य की स्वा...

SC Verdict on Sanctions

भ्रष्टाचार पर  न्यायपालिका का अंकुश       31 जनवरी को भारत के उच्चतम न्यायालय की द्वि-खंडपीठ ने सुब्रह्मण्य स्वामी की एक याचिका पर महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा कि -भारत के किसी भी नागरिक द्वारा  सार्वजनिक  सेवक पर भ्रष्टाचार के अभियोजन की स्वीकृति सरकार को तीन महीने के भीतर शिकायतकर्ता द्वारा प्रदत्त प्रथम दृष्टया प्रमाण के आधार पर देनी ही होगी अन्यथा वह 'दी गई' ऐसा माना जाएगा |      - मामला 2008 नवम्बर का है जब स्वामी ने प्रधानमंत्री कार्यालय में तत्कालीन सूचना मंत्री के खिलाफ टू-जी स्पेक्ट्रम आबंटन में भ्रष्टाचार में लिप्त होने का प्रमाण पेश करते हुए उनके खिलाफ मुकदमा दायर करने की स्वीकृति मांगी | भारत के वर्तमान भ्रष्टाचार निरोध अधिनियम क़ानून की धारा 19 के तहत किसी भी सरकारी व्यक्ति के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज करने की पूर्व स्वीकृति सरकार से प्राप्त करना आवश्यक है | प्रधानमंत्री कार्यालय से अभियोजन की स्वीकृति में देरी होती देख स्वामी ने याचिका दायर की जिसका उपरोक्त फैसला आया है |    ...

Stray thoughts

     Life is a synergy of two things. Intentions and approach. If the intentions are pious and only the approach is faulty, it can be corrected in due course. But if the intentions itself are evil, then there is no other way other than to disassociate with it and battle it. In India, the intentions as well as approach of governance is a conspiracy against us citizens. Some 'intellectuals' state that good people can influence the system positively. Are they implying that in the last 62 years since freedom, good people have never tried this?      The answer is that the system is so faulty and conspiratorial in its character that even good people have had to dilute their character to survive in the system. It is like the Las Vegas casino rule. Casinos never lose, only punters are supposed to.      We are kneading dough for our cow, unfortunately the dog bites our cow and is eating all our hard...