Thursday, February 28, 2013

BUDGET BLUEPRINT

* The fundamental principle of taxation is to list the consumables in their order of priority of usage and start taxing them from the bottom up. For ex., Food will be topmost and luxury cars would be near the bottom of such a list.

* There are two classes of people in the Indian Economy :- 1) The villager, proletariat, manufacturer of basics, below poverty line. 2) The urban, intellectual, elite, industrialist, above poverty line. We need an economic policy which encourages the former even if it is partially adverse towards the latter. Unfortunately, our economic policies are encouraging the latter more than the former.

* Successful economics should mean minimum variation of pricing between producer and consumer.

* Businessmen never give tax. Tax is given by producer and consumer. Trader is only a medium.

* Tax and controls are springtime for traders. These are very helpful in corrupt trade practices.

* Taxes and controls are the root of corruption. The more they are in numbers and quantity, higher will be the prevalence of corruption.

* Massive mechanized industrialization is beneficial only if a weak consumption area lies outside the industrialized area. These areas eliminate unemployment in that area but generate manifold unemployment outside it.

* As prosperity increases, so does dependency and usage of non-renewable energy. As poverty increases, so does dependency on labor and bread.

* The statistics of the Indian development reflects that 33% of the proletariat have grown at 1% and the elite 33% have grown at 17%. The government proclaims the mean growth rate at 9%. Even today 23% of the Indian population subsists on less than Rs. 21/- daily.

* The easiest way to eradicate economic inequality is to hike labor cost. The capitalist and the intellectuals work diligently on the above conspiracy to regress labor cost. Rightists and leftists in India are in the same boat as far as labor exploitation is concerned. The leftists declare themselves as labor friendly and at the same time vociferously oppose energy cost hike.

* Most of India’s socio-economic problems can be unraveled within the ambit of hiking labor cost.

* Inflation means decreasing purchasing power of the rupee and it results in indirect tax burden upon liquidity

* Inflation does not affect people who do not have cash or bank balances.

* Inflation and price rise are different topics. Inflation does not affect the common man whereas price rise does. Price rise means increase in the cost of products in proportion to peoples’ purchasing power.

* Price rise occurs in specific goods and not in all products. If there is an across the board rise in prices, it is called as inflation.

* In India: - 1) Gold, silver and real estate prices have gone up piercingly. 2) Government jobs have become modestly costly. 3) Lentils, labor and artificial energy costs are stable. 4) Grains, Textiles, and other consumer products have become cheaper. 5) Conveyance, paper, mail, watches, pens, phones and electronic gadgets have become incredibly cheap.

* Economic disparity has grown rapidly. Rich have grown rapidly and poor have grown slowly. This disparity is incessantly increasing.

* Increasing economic disparity is the reason behind public discontent.
* In the last 60 years land prices have increased unbridled. The fascination for land has also bloated.

* Bread, clothes, medicines are taxed in India to nullify the effects of pollution emanating from an internal combustion engine.

* Population explosion is a global phenomenon. To blame it for all of India’s ills is spreading falsehood.

* It is the very nature of The State to provide overt tax& covert privilege to those it wants to reward, and provide covert tax & overt privilege to those it intends to cheat.

* In India the elite is overtly taxed & covertly privileged (income tax v/s subsidized gas, energy) whereas the poor are overtly privileged & covertly taxed (various subsidies, schemes, NREGA, v/s everyday consumables are heavily taxed). We need to reverse this trend by taxing energy heavily and freeing consumables from tax vice.

* It is a misconception that cities pay more tax than villages. 70% of India is rural dweller and their everyday consumables are taxed. The calculation thereafter is simple.

Friday, February 22, 2013

Hyderabad Blasts

 हैवानियत से दहला हैदराबाद.... फिर से !!



"न हिन्दू मरा है न मुसलमान मरा है ,
सत्ता है सुरक्षित पर इंसान मरा है...!"

     एक बार फिर आतंकवाद ने हैदराबाद को लपेट लिया | 21 फरवरी के दोहरे विस्फोटों ने फिर से साबित कर दिया कि भारत आतंकवादियों के लिए साफ्ट टार्गेट है | मीडिया के खबरों के अनुसार एक बम उस  स्थान से बरामद हुआ है जहां कुछ वर्ष पूर्व ऐसा ही विस्फोट हुआ था ।  हमले के तुरंत बाद राजनेताओं के बयान भविष्य के लिए स्पष्ट संकेत हैं |  प्रधानमंत्री से लेकर गुजरात के मुख्यमंत्री, भाजपा के करिश्माई नेता नरेन्द्र मोदी तक  सभी   ने संवेदनाएं व्यक्त की | इस बीच केन्द्रीय गृहमंत्री ने कहा की हमले की खुफिया पूर्वसूचना थी | प्रश्न है की पूर्वसूचना के बावजूद यह  दुष्कृत्य सरंजाम कैसे हुआ ? देश की आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था क्या कर रही थी ? स्पष्ट है की निरीह जनता बेचारी पीड़ा से कराह रही है और राज्यसत्ता ने उन्हें रामभरोसे छोड़ दिया है |

      सवाल है कि जब देश के दोनों बड़े राजनैतिक दल जनता को आश्वस्त करने की बजाय अपने प्रारब्ध पर छोड़ रहे हैं, तो शासन व्यवस्था की आवश्यकता ही क्या है ? भारत में जहां प्रति एक लाख जनसँख्या (आम आदमी) पर 137 पुलिसवाले तैनात हैं, वहीं महज 13000 वीआइपी की सुरक्षा में 45000 पुलिसवाले नियुक्त हैं ।  और सरकारी सूत्रों के अनुसार 22% पुलिस पद रिक्त हैं । दिल्ली में पिछले वर्ष लगभग 341 करोड़ रुपए वीवीआईपी सुरक्षा पर खर्च किये गये, जिसमे अधिकतर उन 376 व्यक्ति विशेष पर थे, जिन्हे Z+ सुरक्षा और केन्द्रीय सुरक्षा सेना दी गयी. 40 करोड़ तो अकेले राष्ट्रपति भवन की सुरक्षा में खर्च किये गए. गुजरात में Z+ सुरक्षा के लिए 304 करोड़ रुपए खर्च किये. उत्तर प्रदेश में 120 करोड़. सबसे कम वीआइपी सुरक्षा पर खर्च 44 लाख सिक्किम में किये गये.

     इससे भी बड़ा आश्चर्य यह की एक तरफ तो शासन के व्यवहार एवं बयानों से यह स्पष्ट है  कि गिनती भर आतंवादियों को नियंत्रित करना उसके बस का नहीं, अगले ही पल वही शासन 120  करोड़ जनता में सिगरेट, हेलमेट, बालविवाह, दहेज़, बारबाला आदि विषयों को नियंत्रित करने का ठेका जबरन अपने ऊपर लेने के लिए अगर जमीन-आसमान एक करता है तो उसकी नीयत पर शक न किया जाय तो क्या किया जाय | बलात्कार, चोरी, डकैती, अपहरण, लूट, ह्त्या, आतंकवाद, भ्रष्टाचार आदि असली समस्याएं जिस व्यवस्था से नहीं संभलती वह सामाजिक सुधार में इतनी तत्परता क्यों दिखाती है |

     सर्वमान्य सिद्धांत है हर कोई अपनी-अपनी क्षमता को प्राथमिकताओं के आधार पर ही नियोजित करता है | प्रश्न है कि भारत की जनता की प्राथमिकता क्या ? सुरक्षा या समाज सुधार ? सामाजिक न्याय हमारा अभीष्ट तो  है, पर सुरक्षा की कीमत पर नहीं | क्योंकि अगर बांस ही न रहे तो बाँसुरी कहाँ बजेगी |

     सन 2001  में अमरीका पर अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला हुआ | आश्चर्य  है वह दोबारा दोहराया नहीं जा सका | उलटे शासन ने उस हमले के सूत्रधार को ही बिल में घुसकर साफ़  भी कर दिया | क्या अंतर है भारत और अमरीका में | अमरीका ने 9/11  के बाद यह नीतिगत निर्णय ले लिया कि वह अपनी पूरी क्षमता पहले अपने नागरिकों की सुरक्षा पर लगाएगा, उसके बाद अगर क्षमता बचे तो वह समाज सुधार में | इसका प्रमाण है कि इन दस वर्षों के अंतराल में दो-दो अमरीकी राष्ट्रपतियों की प्रिय स्वास्थ सुधार योजना को भी वहां की सदनों ने निरस्त कर दिया |

     भारत में इसके ठीक उल्टा हो रहा है | एक तरफ तो शासन ने आतंवाद निरोधी धारा टाडा को निरस्त कर दिया, भ्रष्टाचार पर सशक्त लोकपाल विधेयक लाने में आना-कानी कर रहा  है | दूसरी तरफ समाज सुधार के नाम पर नरेगा, खाद्य आपूर्ती बिल, सार्वजनिक स्थानों पर सिगरेट पर रोक जैसे विधेयक लाने में तत्परता दिखाता  है | इन्हें कौन समझाए कि मुर्गी को कैसे हलाल  किया जाय इससे मुर्गी को कोई अंतर नहीं पड़ता | जनता जीवित रहेगी  तब खाना सिगरेट आदि प्रश्न उठेंगे, मृत या शीघ्र ही  मरने वालों के लिए ये किस काम के |

     समय आ गया है कि भारत की राज्य व्यवस्था भी अपनी सीमित क्षमता केवल जनता को सुरक्षा एवं न्याय प्रदान करने में लगाए | समाज सुधार जैसी कृत्रिम मृगमरीचिका अगर अब लम्बे समय तक जनता को दिखाने का प्रयास जारी रहा तो अववस्था भी बढ़ेगी और सुरक्षा-ख़तरा भी | माया या राम में से शासन हम जनता को क्या दिलाएगा यह स्पष्ट करे |    

     

Monday, February 18, 2013

Thakur Das Bang Obit


गांधीवाद का बंग भंग


www.lokswarajmanch.blogspot.com
प्रसिद्ध गांधीवादी, स्वतंत्रता संघर्ष सेनानी तथा लोक स्वराज्य मंच के संस्थापक ठाकुर दास जी बंग का पिछले दिनो करीब पंचान्नवे वर्ष की उम्र मे निधन हो गया। श्री बंग के निधन से उस गांधीवादी पीढी मे कोई बचा नही दिखता जिसने गांधी जी के साथ रहकर स्वतंत्रता संघर्ष मे कोई अग्रणी भूमिका निभाई हो। ठाकुर दास बंग एक ऐसे गांधीवादी थे जो संगठन के ऊपर विचारों को महत्व देते थे। उन्होने गांधी के बाद विनोबा के कार्यो की गुण दोष के आधार पर समीक्षा की। ठाकुरदास बंग एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होने अनुशासन भी कभी नही तोड़ा और सिद्धान्त भी कभी नही छोड़ा।
गांधी जी संघर्ष शील रहे और विनोबा जी, गांधी भक्त। बंग जी न गांधी भक्त रहे, न विनोबा भक्त। विनोबा जी ने गांधी की शराब बंदी, गोहत्या बंदी, जैविक खेती, खादी, ग्रामोद्योग, ब्रम्हचर्य आदि को अधूरा कार्य मानकर इसके विस्तार में जीवन भर लगे रहे। बंग साहब राष्ट्रीय स्वराज्य को गांधी का अधूरा कार्य समझकर लोक स्वराज्य को पहला कार्य मानते थे। किन्तु बंग साहब के मन में कभी भी नेतृत्व की इच्छा नही रही। यही कारण है कि उन्होने लोक स्वराज्य के लिये विनोबा जी सहित अन्य साथियों को समझाने का तो काम किया किन्तु कभी अनुशासन की सीमा नही तोडी। सन चौहत्तर मे ज्योहीं जय प्रकाश जी ने लोक स्वराज्य की दिशा पकडी त्योही बंग जी जेपी के साथ हो लिये अैर अन्त तक रहे। सन सतहत्तर की सरकार के बाद भी जब नयी सरकार लोक स्वराज्य को भूल गई तो बंग जी दुखी रहे। जेपी और विनोबा के निधन के बाद बंग जी ने मनमोहन चौधरी सिद्धराज ढढ्ढा आदि के साथ मिलकर सन नब्बे के आस पास लोक स्वराज्य संघ बनाया। तत्काल ही रूढिवादी विनोबा भक्तों ने इस प्रयत्न का विरोध किया। बंग जी सिद्धराज जी आदि ने बहुत समझाया किन्तु सत्ता सुख भोगी लोगों ने एक न सुनी।
बंग जी पूरी तरह अनुशासनप्रिय भी थे। उन्होने लोक स्वराज्य संघ को भंग कर दिया। फिर भी बंग जी ने हार नही मानी। उन्होने पेटे जी तथा कुछ अन्य साथियो के साथ रामानुजगंज से लोक स्वराज्य संघर्ष की नींव रखी। बंग जी के इस प्रयत्न का पहला विरोध रामचंद्र जी राही की ओर से हुआ। बंग जी को मैने कई बार कहा कि सर्व सेवा संघ के नीचे के अधिकांष कार्यकर्ता आपके साथ है, हम सब लोग आपके साथ है, आप इन गांधीवादी सुविधाभोगी नेताओ का मोह छोडिये। किन्तु बंग जी हमेषा ही विष्वास दिलाते रहे  कि भले ही राही जी रामजी सिंह जी आदि न समझे किन्तु  देर सबेर अमरनाथ भाई कुमार प्रशान्त आदि लोक स्वराज्य की बात को समझेगें। बंग साहब ने दोनों को बहुत समझाया किन्तु दोनों ही नही समझना चाहते थे। कुमार प्रशान्त लोक स्वराज्य को भी समझते थे और बंग साहब को भी। किन्तु उनके मन में मेरे प्रति कुछ कटु भाव थे। दूसरी ओर अमरनाथ भाई सबकुछ समझते हुए भी कुमार प्रशान्त को छोड़ नही सकते थे। लोक स्वराज्य विरोधियों ने गंगा प्रसाद अग्रवाल को ढाल बनाया। गंगा प्रसाद जी एक अत्यन्त ही सज्जन व्यक्ति थे। वे समाज निर्माण के पूरी तरह पक्षधर थे। वे बंग साहब की लोक स्वराज्य की लाइन को दिल से ठीक नही मानते थे। लेकिन सारे चालाक गांधीवादियों ने गंगा प्रसाद जी को ढाल बनाया और बंग साहब द्वारा कई बार समझाने के बाद भी गंगा प्रसाद जी सहमत नही हुए। यहां तक कि सर्वोदय के पदाधिकारियों ने निर्णय करके बंग साहब पर सेवाग्राम आश्रम में रहकर लोक स्वराज्य की चर्चा पर प्रतिबंध लगा दिया। यह सब विवरण समय समय पर हमारे मुखपत्र ज्ञान तत्व मे छपता रहा है। तब हार थक कर बंग साहब ने सेवाग्राम आश्रम से बाहर एक बैठक करके सितम्बर 2007 में लोक स्वराज्य मंच की स्थापना की।
तीस जनवरी दो हजार आठ को अमरनाथ भाई के नेतृत्व मे राष्ट्रपति से मिलकर ज्ञापन देना तय हुआ और दो अक्टूबर दो हजार आठ से ठाकुरदास जी बंग के आमरण अनशन की योजना बनी तो सर्वोदय समाज मे हड़कंप मच गया। सुविधा भोगी गांधीवादियों ने बंग साहब को समझाया भी और धमकाया भी किन्तु बंग जी नही माने। दुर्गा प्रसाद जी, महावीर त्यागी, कृष्ण कुमार खन्ना, संतोष द्विवेदी, सहित बडी संख्या मे गांधीवादी तीस तारीख को दिल्ली मे जुट चुके थे। अमरनाथ भाई भी हमारे साथ थे ही किन्तु एकाएक किसी का फोन आया और अमरनाथ भाई ने राष्ट्रपति के पास जाने से इन्कार कर दिया। वे जंतर मंतर पर गये और भाषण भी दिये किन्तु उन्होने आंदोलन का नेतृत्व करने से इन्कार कर दिया। इस तरह लोक स्वराज्य संघर्ष के प्रयत्न की पीठ मे गांधीवादियो ने ही छुरा घोपकर एक इतिहास बना दिया। मै दिल्ली से लौट गया। बंग साहब का दिल टूट गया जो फिर कभी नही जुड़ा।
बाद मे सेवाग्राम मे बैठकर हम सबने समीक्षा की। मैने समीक्षा में बताया कि बंग साहब ने सुविधाभोगी गांधीवादियों पर विश्वास करके भूल की। यदि उन्होने कुछ साथियों का मोह छोड़कर जेपी का मार्ग पकड़ा होता तो सफलता निश्चित थी। बंग साहब ने भी महसूस किया। बाद में दुर्गा प्रसाद जी को बंग साहब ने यह काम सौपा किन्तु फिर यह काम खड़ा नही हो पाया। बंग जी का स्वास्थ लगातार बिगड़ता गया। मै पूरी तरह वानप्रस्थ में चला गया। फिर भी हम दोनों के मन मे एक छटपटाहट थी कि लोक स्वराज्य के लिये संघर्ष का क्या होगा। टीम अन्ना अरविन्द की विफलता के बाद तो यह चिन्ता और भी ज्यादा बढ गई। इस कार्य के लिये नयी रणनीति नई टीम बननी आवश्यक थी। हम लोगों ने बहुत विचार करने के बाद गांधीवादी नवयुवक सिद्धार्थ शर्मा को इस संघर्ष के लिये उपयुक्त माना। उन्हे इक्कीस सितम्बर दो हजार बारह को लोक स्वराज्य मंच का पूरा कार्यभार सौपकर मै मुक्त हो गया। दिसम्बर दो हजार बारह में ही दुर्गा प्रसाद जी से बैठकर चर्चा हुई कि बंग जी का स्वास्थ्य ठीक नही है। अतः हम उन्हे अन्तिम समय मे आश्वस्त करें कि उनका मिशन उनके सक्रिय रहते यदि नही पूरा हो सका तो इसका हम सबको खेद है किन्तु लोक स्वराज्य का कार्य बन्द नही हुआ है। अब सिद्धार्थ शर्मा को यह कार्य हम सौप रहे है। उस दिन दुर्गा प्रसाद जी तो बीमार पड़ने के कारण नही पहुंच पाये किन्तु मै और सिद्धार्थ जी गये और बंग जी को आश्ववस्त किया। मैने देखा कि सिद्धार्थ शर्मा जैसे परिचित गांधीवादी नवयुवक को सामने पाकर उन्हे परम संतोष का अनुभव हुआ। उन्होने विस्तृत चर्चा करते हुए शर्मा जी को आशीर्वाद दिया। उनकी मृत्यु के बाद उनके परिवार के लोगों ने बताया कि बंग साहब हमारे वापस होने के बाद बीच बीच मे इस चर्चा को दुहराते थे।
आज बंग साहब हमारे बीच नही है किन्तु उनके विचार और उनकी प्रेरणा सदैव हमारे साथ है। सुविधाभोगी गांधीवादियो से तो हमारी कोई शिकायत नही है, किन्तु अमरनाथ भाई, कुमार प्रशान्त जैसे मित्रों को तो उत्तर देना चाहिये कि उन्होने ऐसा क्यों किया? उनके कुछ गांधीवादी मित्रों ने भले ही उनके विचारों को न समझा हो किन्तु हम सबने तो समझा है। बंग साहब के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम सब मिलकर उस अधूरे कार्य को पूरा कर दिखावे जिसके लिये वे अन्त तक चिन्तित रहे।

Karpuri Thakur

  भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर  का कर्नाटक कनेक्शन (Click here for Kannada Book Details)        कर्पूरी ठाकुर कम से कम दो बार बैंगलोर आये। एक बार...