Sunday, April 1, 2012

RAM Charcha : मानना और जानना

सीय राम मय सब जग जानि | 
करउं प्रनाम जोरि जुग पानी ||



    रामचंद्र जी को मैं भगवान् मानता हूँ, पर यह आवश्यक नहीं मानता की सब उन्हें भगवान् मानें | ईश्वर ने राम बनके अवतार लिया या राम नामक मनुष्य अपने चरित्र से ईश्वरीय बन गया इस विषय में भी मैं नहीं पड़ता | राम दशरथ नंदन थे या दशावतार में एक, मैं इसमें भी नहीं पड़ना चाहता | राम पौराणिक पुरुष रहें हो, चाहे ऐतिहासिक पुरुष रहे हों पर निश्चित रूप से वे मर्यादा पुरुषोत्तम थे | इसीलिए तो हजारों वर्षों से राम करोड़ों लोगों के दिल में रमे हैं, और उनसे हम सब का किसी न किसी रूप से संप्रत्य जुडा है यह निर्विवाद है |

    किसी विषय को मानना आसान है, पर जानने की प्रक्रिया शुरू होते है की जानी हुई चीज को दूसरों को भी समझाने की क्षमता विकसित करनी पड़ती है | राम को मानना और जानना भिन्न-भिन्न चीजें हैं | भगवान् को हम मानते हैं, मित्र को हम जानते हैं | तो मानना आसान है, और जानने की प्रक्रिया शुरू होते है की जानी हुई चीज को हम दूसरों को भी समझा सकें, ऎसी स्थिति आती है | पर यहाँ अनुभूति की व्याख्या करना कठिन प्रतीत होने लगता है | उदाहरण के लिए रसगुल्ला का विश्लेषण लें, बड़ा जटिल लगेगा, परन्तु अनुभूति सहज |

    मानव पशु से उस दिन भिन्न हुआ जिस दिन उसने प्रतिद्वंद्विता के स्थान पर सहयोग का सूत्र समझा | आज तक पशु इस बात को पूरी तरह से नहीं समझ सके हैं | यही प्रकृति है | व्यवहारिक धरातल से देखें तो प्रकृति परस्पर विरोधी प्रतीत होनेवाली युग्मों का खेल है | स्थूल रूप से देखें तो बायाँ-दायाँ, दिन-रात, आग-पानी, सर्दी-गरमी, नर-मादा, क्रूर-सौम्य, सज्जन-कुटिल आदि सब विरोधी युग्म प्रतीत होते हैं | केवल स्थूल दृष्टि से ही नहीं, वैचारिक स्तर पर भी ऐसा ही होता है, अभी हाल ही की घटना को लें, अरुणा शानबाग व्यक्ति के नाते मर्यादित मृत्यु की हकदार नहीं पर नरसंहार करने वाले अणुबम उद्योग या तम्बाकू उद्योग कानून सम्मत हैं | ये सब विरोधी युग्म हैं | तो अपने स्वभाव के अनुरूप हर मानव, आप हम सब इन विरोधी युग्मों के बीच सामंजस्य बिठाने का जीवन पर्यंत प्रयास करते है |

    क्योंकि प्रकृति में हमारे नजरिए से व्यवस्था से अव्यवस्था की ओर का प्रयाण है | चीजें टूटती हुई तो दिखती हैं, पर जुड़ती हुई नहीं दिखती | प्रकृति में रचनात्मकता तो है, पर घड़ी की छोटी सूई की तरह उसकी चाल दिखती नहीं, वहीं विध्वंस बड़ी सूई की तरह स्पष्ट रूप से दिखता है | जैसे पेड़ उगना स्पष्ट नहीं दिखता पर भूकंप का विनाश तुरंत प्रतीत हो जाता है | राम चरित्र इन विरोधी प्रतीत होने वाले युग्मों के बीच तारतम्य बिठाने का उत्तम उदाहरण है | स्थूल दृष्टि से, रामसेतु का निर्माण इसका प्रतीक है | नदी पर तो अनेक पुल बने पर सागर के किनारों को पाटना राम ने ही किया | नासा के चित्र रामसेतु की वैज्ञानिक प्राचीनता का प्रमाण है |

    सूक्ष्म दृष्टि से दशरथ-विदेह, वशिष्ट-विश्वामित्र, लक्ष्मण-परशुराम, लक्ष्मण-भारत, बाली-सुग्रीव, विभीषण-रावण आदि विरोधी युग्मों में सामंजस्य बिठाने का प्रयास ही राम है | पर विशेषता यह की हर परिस्थिति में विरोधी से एक जैसा व्यवहार नहीं ।


विश्लेषण :
* मंथरा की उपेक्षा की, कैकेयी से उच्चतर नैतिकता, लक्ष्मण से प्रेम, परशुराम से विनय, बाली से छल, रावण को शौर्य से जीता | विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा की तो मेघनाद के यज्ञ का विध्वंस |
* राम अर्थात समदरसी --पत्थर अहिल्या, जीव जंतु वानर, नीच पक्षी जटायू, अछूत निषाद, केवट, शबरी, वैरी विभीषण, सबके साथ सद्व्यवहार |

राम की अगली विशेषता :
* राम ने मित्र के लिए अपना चरित्र गिराया, उदाहरण:- बाली का छल से वध | पर मित्र को अपने लिए गिरने नहीं दिया, लंका दहन की क्षमता रखने वाले हनुमान को भी केवल सूचना लाने को कहा सीता को लाने को नहीं |
* स्थूल दृष्टि से देखें तो भी, युद्ध की तैयारी के समय मंत्रणा सभा चल रही है, वानर पेड़ पर बैठे, स्वामी राम नीचे शिला पर बैठे,
* इतने के बावजूद राम ने मैत्री और अंतरंगता में भेद बनाए रखा |

विश्लेषण :
* सुग्रीव - हनुमान से राम की मैत्री एक ही दिन हुई | सुग्रीव मित्र ही रहा क्योंकि राम की क्षमता प्रदर्शन के बाद विश्वास,(ताड़ के वृक्षों को बींधना ) पर हनुमान 'भरत सम भाई' क्योंकि चरित्र प्रदर्शन से पहले ही विश्वास |
* अर्थात राम सफलता से अधिक शराफत को महत्त्व देते हैं |
* अतः परस्पर हितों का टकराव होते हुए भी, उनमें तारतम्य बिठाना | तुलाभार वैश्य की तरह, राम की विशिष्टता
* राम की सबसे बड़ी विशेषता उनका लोकतांत्रिक नजरिया -स्वयं क्षमतावान होते हुए भी साथी की प्रेरणा के बाद ही कदम उठाना |
* दुनिया में तीन तरह के लोग होते हैं बौद्धिक, बुद्धिजीवी और बुद्धिनिष्ट|
* बौद्धिक को केवल अपनी बुद्धि पर ही विश्वास, बुद्धीजीवी -बुद्धि का लाभ के लिए उपयोग, बुद्धिनिष्ट -बुद्धि पर निष्ठा चाहे अपनी हो या पराई |


राम बुद्धिनिष्ट :
    तीन तरह के लोग होते हैं, बौद्धिक, बुद्धिजीवी और बुद्धिनिष्ठ। बौद्धिक व्यक्ति को अपने आलावा किसी और की बुद्धि पर भरोसा नहीं होता। बुद्धिजीवी होनी बुद्धि का उपयोग स्वयं के लाभमात्र के लिया करता है। परन्तु बुद्धिनिष्ठ व्यक्ति को बुद्धि पर विश्वास होता है, फिर चाहे वो खुद की हो या किसी और की। बुद्धिनिष्ठ व्तक्ति ऑब्जेक्टिव होता है और अच्छे विचारों के लिए खुला होता है
    
    उदा: धनुष भंग विश्वामित्र जी के कहने पर किया, भरत मिलन में भरत की बात ही रखी , सुग्रीव मित्रता हनुमान के सलाह पर , सीता की खोज सुग्रीव के सुविधानुसार , सागर गर्व भंग लक्ष्मण की राय से, सेतु निर्माण समुद्र की सलाह अनुसार, रावण नाभि वध विभीषण के कहने पर


राम राज्य :
* आजकल हर कोई राम राज्य को आदर्श राज्य कहता है
* राम राज्य तो असल में भरत राज्य, अर्थात नंदीग्राम का खडाऊं राज्य, अर्थात लोकस्वराज्य, जिसमें सत्ता व्यक्ति या विशिष्ट व्यक्तियों के हाथ में न होकर सामान्य नागरिकों के हाथ में होती है |
* १४ वर्ष तक अयोध्या में एक भी अप्रिय घटना नहीं हुई, राजा के मृत्यु के बावजूद, क्योंकि भरत ने अपने आप को केवल सुरक्षा एवं न्याय तक सीमित रखा, प्रशासन के चक्कर में नहीं पड़े,
* उदा; संजीविनी लाते हुए हनुमान पर राक्षस होने की शंका से प्रहार |
* इसके ठीक उलटे रावण राज्य देखें, आजकल की सरकार की तरह नेवर एंडिंग प्रोजेक्ट हाथ में लेना
* रावण की दो प्रिय परियोजनाएं : सागर के पानी को मीठा बनाना और स्वर्ग तक सीढी बनाना |


संक्षेप में कहें तो, उपसंहार यही है की
* राम अर्थात शराफत से समझदारी की ओर प्रयाण
* उदा: ऋषियों पर राक्षसों का अत्याचार देखते हुए ऋषियों की रक्षा हेतु रावण से युद्ध ठानना |
* अतः धूर्तों को परास्त करने का बीड़ा उठाना, सज्जनता को निरपेक्ष सम्मान दिलाना ही राम चरित्र |
* सच पूछिए तो त्रेतायुग से आज तक कोई विशेष अंतर नहीं आया है
* अन्ना हजारे का आन्दोलन और उसे सभ्य समाज का भारी समर्थन भी धूर्तता के विरुद्ध शराफत की लामबंदी को ही साबित करता है |


    राम जैसे हमारे मार्गदर्शक मित्र के सन्देश हमें बड़ी मुश्किल से इसीलिए पकड़ में आते हैं क्योंकि हमने उनको मंदिर की मूर्तियों में सीमित कर दिया है | राम जैसे हमारे मित्र सहज ही हमारे साथ चलने में ज्यादा आनंदित हैं, पर हम हैं की पूजा अर्चना उपासना की संकीर्णता से निकलकर उन्हें मित्र मानें तब ना |


धर्म फल की खोज को कहते है
तो अध्यात्म बोध के खोज को |

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Karpuri Thakur

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