POVERTY LINE....a fallacy


-----गरीबी रेखा का छलावा 

     गरीबी रेखा एक ऐसा फल है जिसे निचोड निचोड कर रस पीना सरकार का भी उद्देश्य रहा है और राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् का भी । राजनेता जब इसमे से रस निचोडता है तो वोट रूपी  रस निकलता है और सलाहकार समिति निचोडती है तो  वेतन भत्ते रूपी रस।  लेखक और मीडिया कर्मी भी कुछ न कुछ निचोडकर इसका उपयोग करते ही रहते है। गरीबी रेखा संबंधी जो भी  आकडे आप सुनते है वे सब सही है चाहे  वे किसी के भी द्वारा क्यो न कहे जावे क्योकि सबकी अपनी अपनी रेखा है और अपनी रेखा  के मुताबिक आंकडे। सवाल आंकडो का नही है। सवाल है किसी मान्य रेखा का । भारत की न्यायपालिका के लोग भी अपना काम छोडकर इस रेखा के पीछे इस लिये लगे रहते है क्योकि उन्हे कुछ सस्ती लोकप्रियता चाहिये ही। वे भी तो बेचारे मनुष्य  ही है।
     
     जो भी विपक्ष मे है वह मानता है कि कुछ प्रतिशत अमीरों को छोडकर बाकी सब लोग गरीब है। जो सत्ता मे है वे मानते है कि कुछ प्रतिशत गरीबो को छोडकर बाकी सब अमीर है। अहलूवालिया जी यदि सत्ता मे नही होते तो उनकी परिभाषा वह नही होती जो आज है । इसी तरह यदि मनमोहन सिंह जी की जगह पर राहुल गाधी प्रधानमंत्री  होते तो सक्सेना जी के तर्क बदले हुए होते। सक्सेना जी तथा अहलूवालिया जी खिलाडी न होकर मुहरे है। वे मुहरे भी दोनो ही कांगे्स के है । एक है सरकारी  मुहरे तो दुसरें है सोनिया जी  के। सोनिया इस समय विपक्ष की भूमिका अदा कर रही हैं जो दो मार्चो पर एक साथ लड रही है। (1. सरकार विरोधी विपक्ष (2. सरकार प्रमुख मनमोहन सिंह। इस दुहरी लडाई मे सोनिया जी के प्यादे मुख्य रूप से दिग्विजय सिंह आदि तो प्रत्यक्ष दिखते ही है किन्तु राष्ट्रीय सलाहकार समिति इसमे सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है जिसके प्रमुख सदस्यों मे सक्सेना जी भी हैं।

     मै देख रहा हूं कि जो भी व्यक्ति गरीबी रेखा के मापदण्ड के विषय मे कुछ लिखता है वह सबसे पहले यह सोचता है कि कहीं वह स्वयं तो उस रेखा से बाहर नहीं रह जायगा? यदि वास्तव मे कोई रेखा बननी है तो ऐसी बननी चाहिये जिससे दोनो वर्ग  संतुष्ट हों। पूरे भारत में लम्बे समय से एक अमीरी रेखा बनने की मांग उठती रही है। हम एक अमीरी रेखा बना दें जिसमें करीब आठ से दस प्रतिशत लोग आ जावें । शेष नब्बे प्रतिशत को गरीब मान लें । इन गरीबों मे से सबसे  नीचे वालों की एक अंत्योदय रेखा बनाकर एक वर्ष मे उन्हे गरीबी रेखा से उपर उठा दें। यह रेखा प्रतिवर्ष  बदलती जायगी क्योकि पहली रेखा तो एक वर्ष  मे ही अस्तित्व हीन हो जायगी। पहले वर्ष के लिये पंद्रह रूपया प्रति व्यक्ति घोशित कर दे तब भी पर्याप्त होगा। इससे गरीबी रेखा के नाम पर बिचौलियों की लेखनी बन्द हो जायगी। 

     कर लगाते समय भी ध्यान रखना होगा कि अमीरी रेखा से उपर वालों पर अधिकतम टैक्स शून्य सुविधा, अमीरी रेखा से नीचे वालो के न्यूनतम कर न्यूनतम सुविधा तथा अंत्योदय रेखा से नीचे  वालो को शून्य कर अधिकतम सुविधा की व्यवस्था कर दे। उम्मीद करना चाहिए कि ऐसा करने से गरीबी रेखा भी घट जायगी तथा न्याय भी हो जायगा।  जो दो वर्ग गरीब और अमीर बनाकर गरीबी रेखा के नीचे  अधिक से अधिक संख्या जोडने का सुझाव रख रहे है वह व्यक्तिगत स्वार्थवश  है, अन्याय पूर्ण है अंत्योदय वालों के साथ छल है। यह ठीक नहीं।

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