Monday, April 16, 2012

POVERTY LINE....a fallacy


-----गरीबी रेखा का छलावा 

     गरीबी रेखा एक ऐसा फल है जिसे निचोड निचोड कर रस पीना सरकार का भी उद्देश्य रहा है और राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् का भी । राजनेता जब इसमे से रस निचोडता है तो वोट रूपी  रस निकलता है और सलाहकार समिति निचोडती है तो  वेतन भत्ते रूपी रस।  लेखक और मीडिया कर्मी भी कुछ न कुछ निचोडकर इसका उपयोग करते ही रहते है। गरीबी रेखा संबंधी जो भी  आकडे आप सुनते है वे सब सही है चाहे  वे किसी के भी द्वारा क्यो न कहे जावे क्योकि सबकी अपनी अपनी रेखा है और अपनी रेखा  के मुताबिक आंकडे। सवाल आंकडो का नही है। सवाल है किसी मान्य रेखा का । भारत की न्यायपालिका के लोग भी अपना काम छोडकर इस रेखा के पीछे इस लिये लगे रहते है क्योकि उन्हे कुछ सस्ती लोकप्रियता चाहिये ही। वे भी तो बेचारे मनुष्य  ही है।
     
     जो भी विपक्ष मे है वह मानता है कि कुछ प्रतिशत अमीरों को छोडकर बाकी सब लोग गरीब है। जो सत्ता मे है वे मानते है कि कुछ प्रतिशत गरीबो को छोडकर बाकी सब अमीर है। अहलूवालिया जी यदि सत्ता मे नही होते तो उनकी परिभाषा वह नही होती जो आज है । इसी तरह यदि मनमोहन सिंह जी की जगह पर राहुल गाधी प्रधानमंत्री  होते तो सक्सेना जी के तर्क बदले हुए होते। सक्सेना जी तथा अहलूवालिया जी खिलाडी न होकर मुहरे है। वे मुहरे भी दोनो ही कांगे्स के है । एक है सरकारी  मुहरे तो दुसरें है सोनिया जी  के। सोनिया इस समय विपक्ष की भूमिका अदा कर रही हैं जो दो मार्चो पर एक साथ लड रही है। (1. सरकार विरोधी विपक्ष (2. सरकार प्रमुख मनमोहन सिंह। इस दुहरी लडाई मे सोनिया जी के प्यादे मुख्य रूप से दिग्विजय सिंह आदि तो प्रत्यक्ष दिखते ही है किन्तु राष्ट्रीय सलाहकार समिति इसमे सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है जिसके प्रमुख सदस्यों मे सक्सेना जी भी हैं।

     मै देख रहा हूं कि जो भी व्यक्ति गरीबी रेखा के मापदण्ड के विषय मे कुछ लिखता है वह सबसे पहले यह सोचता है कि कहीं वह स्वयं तो उस रेखा से बाहर नहीं रह जायगा? यदि वास्तव मे कोई रेखा बननी है तो ऐसी बननी चाहिये जिससे दोनो वर्ग  संतुष्ट हों। पूरे भारत में लम्बे समय से एक अमीरी रेखा बनने की मांग उठती रही है। हम एक अमीरी रेखा बना दें जिसमें करीब आठ से दस प्रतिशत लोग आ जावें । शेष नब्बे प्रतिशत को गरीब मान लें । इन गरीबों मे से सबसे  नीचे वालों की एक अंत्योदय रेखा बनाकर एक वर्ष मे उन्हे गरीबी रेखा से उपर उठा दें। यह रेखा प्रतिवर्ष  बदलती जायगी क्योकि पहली रेखा तो एक वर्ष  मे ही अस्तित्व हीन हो जायगी। पहले वर्ष के लिये पंद्रह रूपया प्रति व्यक्ति घोशित कर दे तब भी पर्याप्त होगा। इससे गरीबी रेखा के नाम पर बिचौलियों की लेखनी बन्द हो जायगी। 

     कर लगाते समय भी ध्यान रखना होगा कि अमीरी रेखा से उपर वालों पर अधिकतम टैक्स शून्य सुविधा, अमीरी रेखा से नीचे वालो के न्यूनतम कर न्यूनतम सुविधा तथा अंत्योदय रेखा से नीचे  वालो को शून्य कर अधिकतम सुविधा की व्यवस्था कर दे। उम्मीद करना चाहिए कि ऐसा करने से गरीबी रेखा भी घट जायगी तथा न्याय भी हो जायगा।  जो दो वर्ग गरीब और अमीर बनाकर गरीबी रेखा के नीचे  अधिक से अधिक संख्या जोडने का सुझाव रख रहे है वह व्यक्तिगत स्वार्थवश  है, अन्याय पूर्ण है अंत्योदय वालों के साथ छल है। यह ठीक नहीं।

Tuesday, April 3, 2012

Mumbai terror attack 13/7

मुम्बई बम विस्फोट की सीख 
- माया मिली न राम


     एक बार फिर आतंकवाद ने मुम्बई को लपेट लिया | 13 जुलाई की तिकड़ी विस्फोटों ने फिर से साबित कर दिया कि भारत आतंकवादियों के लिए साफ्ट टार्गेट है | हमले के तुरंत बाद राजनेताओं के बयान भविष्य के लिए स्पष्ट संकेत हैं | केन्द्रीय गृहमंत्री ने माना कि हमलों की कोई खुफिया  पूर्वसूचना नहीं थी | कांग्रेस के युवराज महासचिव  ने कहा कि हर हमले से जनता को बचाना सरकार के हाथ की बात नहीं है | गुजरात के मुख्यमंत्री, भाजपा के करिश्माई नेता ने तो यहाँ तक कह दिया कि यह भविष्य के बड़े हमलों का रिहर्सल मात्र है | निरीह जनता बेचारी पीड़ा से कराह रही है और राज्यसत्ता ने उन्हें रामभरोसे छोड़ दिया है |

      सवाल है कि जब देश के दोनों बड़े राजनैतिक दल जनता को आश्वस्त करने की बजाय अपने प्रारब्ध पर छोड़ रहे हैं, तो शासन व्यवस्था की आवश्यकता ही क्या है ? एक तरफ तो शासन  यह कहे कि गिनती भर आतंवादियों को नियंत्रित करना उसके बस का नहीं, अगले ही पल वही शासन 120  करोड़ जनता में सिगरेट, हेलमेट, बालविवाह, दहेज़, बारबाला आदि विषयों को नियंत्रित करने का ठेका जबरन अपने ऊपर लेने के लिए अगर जमीन-आसमान एक करता है तो उसकी नीयत पर शक न किया जाय तो क्या किया जाय | चोरी, डकैती, अपहरण, लूट, ह्त्या, आतंकवाद, भ्रष्टाचार आदि असली समस्याएं जिस व्यवस्था से नहीं संभलती वह सामाजिक सुधार में इतनी तत्परता क्यों दिखाती है | 

     सर्वमान्य सिद्धांत है हर कोई अपनी-अपनी क्षमता को प्राथमिकताओं के आधार पर ही नियोजित करता है | प्रश्न है कि भारत की जनता की प्राथमिकता क्या ? सुरक्षा या समाज सुधार ? सामाजिक न्याय हमारा अभीष्ट तो  है, पर सुरक्षा की कीमत पर नहीं | क्योंकि अगर बांस ही न रहे तो बाँसुरी कहाँ बजेगी |

     सन 2001  में अमरीका पर अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला हुआ | आश्चर्य  है वह दोबारा दोहराया नहीं जा सका | उलटे शासन ने उस हमले के सूत्रधार को ही बिल में घुसकर साफ़  भी कर दिया | क्या अंतर है भारत और अमरीका में | अमरीका ने 9/11  के बाद यह नीतिगत निर्णय ले लिया कि वह अपनी पूरी क्षमता पहले अपने नागरिकों की सुरक्षा पर लगाएगा, उसके बाद अगर क्षमता बचे तो वह समाज सुधार में | इसका प्रमाण है कि इन दस वर्षों के अंतराल में दो-दो अमरीकी राष्ट्रपतियों की प्रिय स्वास्थ सुधार योजना को भी वहां की सदनों ने निरस्त कर दिया |

     भारत में इसके ठीक उल्टा हो रहा है | एक तरफ तो शासन ने आतंवाद निरोधी धारा टाडा को निरस्त कर दिया, भ्रष्टाचार पर सशक्त लोकपाल विधेयक लाने में आना-कानी कर रही है | दूसरी तरफ समाज सुधार के नाम पर नरेगा, खाद्य आपूर्ती बिल, सार्वजनिक स्थानों पर सिगरेट पर रोक जैसे विधेयक लाने में तत्परता दिखाती है | इन्हें कौन समझाए कि मुर्गी को कैसे हलाल  किया जाय इससे मुर्गी को कोई अंतर नहीं पड़ता | जनता जीवित रहेगी  तब खाना सिगरेट आदि प्रश्न उठेंगे, मृत या शीघ्र ही  मरने वालों के लिए ये किस काम के |


     
समय आ गया है कि भारत की राज्य व्यवस्था भी अपनी सीमित क्षमता केवल जनता को सुरक्षा एवं न्याय प्रदान करने में लगाए | समाज सुधार जैसी कृत्रिम मृगमरीचिका अगर अब लम्बे समय तक जनता को दिखाने का प्रयास जारी रहा तो अववस्था भी बढ़ेगी और सुरक्षा-ख़तरा भी | माया या राम में से शासन हम जनता को क्या दिलाएगा यह स्पष्ट करे |     

     समय आ गया है कि भारत की राज्य   भी अपनी सीमित क्षमता केवल जनता को सुरक्षा एवं न्याय प्रदान करने में लगाए | समाज सुधार जैसी कृत्रिम मृगमरीचिका अगर अब लम्बे समय तक जनता को दिखाने का प्रयास जारी रहा तो अववस्था भी बढ़ेगी और सुरक्षा-ख़तरा भी | माया या राम में से शासन हम जनता को क्या दिलाएगा यह स्पष्ट करे |  

Sunday, April 1, 2012

RAM Charcha : मानना और जानना

सीय राम मय सब जग जानि | 
करउं प्रनाम जोरि जुग पानी ||



    रामचंद्र जी को मैं भगवान् मानता हूँ, पर यह आवश्यक नहीं मानता की सब उन्हें भगवान् मानें | ईश्वर ने राम बनके अवतार लिया या राम नामक मनुष्य अपने चरित्र से ईश्वरीय बन गया इस विषय में भी मैं नहीं पड़ता | राम दशरथ नंदन थे या दशावतार में एक, मैं इसमें भी नहीं पड़ना चाहता | राम पौराणिक पुरुष रहें हो, चाहे ऐतिहासिक पुरुष रहे हों पर निश्चित रूप से वे मर्यादा पुरुषोत्तम थे | इसीलिए तो हजारों वर्षों से राम करोड़ों लोगों के दिल में रमे हैं, और उनसे हम सब का किसी न किसी रूप से संप्रत्य जुडा है यह निर्विवाद है |

    किसी विषय को मानना आसान है, पर जानने की प्रक्रिया शुरू होते है की जानी हुई चीज को दूसरों को भी समझाने की क्षमता विकसित करनी पड़ती है | राम को मानना और जानना भिन्न-भिन्न चीजें हैं | भगवान् को हम मानते हैं, मित्र को हम जानते हैं | तो मानना आसान है, और जानने की प्रक्रिया शुरू होते है की जानी हुई चीज को हम दूसरों को भी समझा सकें, ऎसी स्थिति आती है | पर यहाँ अनुभूति की व्याख्या करना कठिन प्रतीत होने लगता है | उदाहरण के लिए रसगुल्ला का विश्लेषण लें, बड़ा जटिल लगेगा, परन्तु अनुभूति सहज |

    मानव पशु से उस दिन भिन्न हुआ जिस दिन उसने प्रतिद्वंद्विता के स्थान पर सहयोग का सूत्र समझा | आज तक पशु इस बात को पूरी तरह से नहीं समझ सके हैं | यही प्रकृति है | व्यवहारिक धरातल से देखें तो प्रकृति परस्पर विरोधी प्रतीत होनेवाली युग्मों का खेल है | स्थूल रूप से देखें तो बायाँ-दायाँ, दिन-रात, आग-पानी, सर्दी-गरमी, नर-मादा, क्रूर-सौम्य, सज्जन-कुटिल आदि सब विरोधी युग्म प्रतीत होते हैं | केवल स्थूल दृष्टि से ही नहीं, वैचारिक स्तर पर भी ऐसा ही होता है, अभी हाल ही की घटना को लें, अरुणा शानबाग व्यक्ति के नाते मर्यादित मृत्यु की हकदार नहीं पर नरसंहार करने वाले अणुबम उद्योग या तम्बाकू उद्योग कानून सम्मत हैं | ये सब विरोधी युग्म हैं | तो अपने स्वभाव के अनुरूप हर मानव, आप हम सब इन विरोधी युग्मों के बीच सामंजस्य बिठाने का जीवन पर्यंत प्रयास करते है |

    क्योंकि प्रकृति में हमारे नजरिए से व्यवस्था से अव्यवस्था की ओर का प्रयाण है | चीजें टूटती हुई तो दिखती हैं, पर जुड़ती हुई नहीं दिखती | प्रकृति में रचनात्मकता तो है, पर घड़ी की छोटी सूई की तरह उसकी चाल दिखती नहीं, वहीं विध्वंस बड़ी सूई की तरह स्पष्ट रूप से दिखता है | जैसे पेड़ उगना स्पष्ट नहीं दिखता पर भूकंप का विनाश तुरंत प्रतीत हो जाता है | राम चरित्र इन विरोधी प्रतीत होने वाले युग्मों के बीच तारतम्य बिठाने का उत्तम उदाहरण है | स्थूल दृष्टि से, रामसेतु का निर्माण इसका प्रतीक है | नदी पर तो अनेक पुल बने पर सागर के किनारों को पाटना राम ने ही किया | नासा के चित्र रामसेतु की वैज्ञानिक प्राचीनता का प्रमाण है |

    सूक्ष्म दृष्टि से दशरथ-विदेह, वशिष्ट-विश्वामित्र, लक्ष्मण-परशुराम, लक्ष्मण-भारत, बाली-सुग्रीव, विभीषण-रावण आदि विरोधी युग्मों में सामंजस्य बिठाने का प्रयास ही राम है | पर विशेषता यह की हर परिस्थिति में विरोधी से एक जैसा व्यवहार नहीं ।


विश्लेषण :
* मंथरा की उपेक्षा की, कैकेयी से उच्चतर नैतिकता, लक्ष्मण से प्रेम, परशुराम से विनय, बाली से छल, रावण को शौर्य से जीता | विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा की तो मेघनाद के यज्ञ का विध्वंस |
* राम अर्थात समदरसी --पत्थर अहिल्या, जीव जंतु वानर, नीच पक्षी जटायू, अछूत निषाद, केवट, शबरी, वैरी विभीषण, सबके साथ सद्व्यवहार |

राम की अगली विशेषता :
* राम ने मित्र के लिए अपना चरित्र गिराया, उदाहरण:- बाली का छल से वध | पर मित्र को अपने लिए गिरने नहीं दिया, लंका दहन की क्षमता रखने वाले हनुमान को भी केवल सूचना लाने को कहा सीता को लाने को नहीं |
* स्थूल दृष्टि से देखें तो भी, युद्ध की तैयारी के समय मंत्रणा सभा चल रही है, वानर पेड़ पर बैठे, स्वामी राम नीचे शिला पर बैठे,
* इतने के बावजूद राम ने मैत्री और अंतरंगता में भेद बनाए रखा |

विश्लेषण :
* सुग्रीव - हनुमान से राम की मैत्री एक ही दिन हुई | सुग्रीव मित्र ही रहा क्योंकि राम की क्षमता प्रदर्शन के बाद विश्वास,(ताड़ के वृक्षों को बींधना ) पर हनुमान 'भरत सम भाई' क्योंकि चरित्र प्रदर्शन से पहले ही विश्वास |
* अर्थात राम सफलता से अधिक शराफत को महत्त्व देते हैं |
* अतः परस्पर हितों का टकराव होते हुए भी, उनमें तारतम्य बिठाना | तुलाभार वैश्य की तरह, राम की विशिष्टता
* राम की सबसे बड़ी विशेषता उनका लोकतांत्रिक नजरिया -स्वयं क्षमतावान होते हुए भी साथी की प्रेरणा के बाद ही कदम उठाना |
* दुनिया में तीन तरह के लोग होते हैं बौद्धिक, बुद्धिजीवी और बुद्धिनिष्ट|
* बौद्धिक को केवल अपनी बुद्धि पर ही विश्वास, बुद्धीजीवी -बुद्धि का लाभ के लिए उपयोग, बुद्धिनिष्ट -बुद्धि पर निष्ठा चाहे अपनी हो या पराई |


राम बुद्धिनिष्ट :
    तीन तरह के लोग होते हैं, बौद्धिक, बुद्धिजीवी और बुद्धिनिष्ठ। बौद्धिक व्यक्ति को अपने आलावा किसी और की बुद्धि पर भरोसा नहीं होता। बुद्धिजीवी होनी बुद्धि का उपयोग स्वयं के लाभमात्र के लिया करता है। परन्तु बुद्धिनिष्ठ व्यक्ति को बुद्धि पर विश्वास होता है, फिर चाहे वो खुद की हो या किसी और की। बुद्धिनिष्ठ व्तक्ति ऑब्जेक्टिव होता है और अच्छे विचारों के लिए खुला होता है
    
    उदा: धनुष भंग विश्वामित्र जी के कहने पर किया, भरत मिलन में भरत की बात ही रखी , सुग्रीव मित्रता हनुमान के सलाह पर , सीता की खोज सुग्रीव के सुविधानुसार , सागर गर्व भंग लक्ष्मण की राय से, सेतु निर्माण समुद्र की सलाह अनुसार, रावण नाभि वध विभीषण के कहने पर


राम राज्य :
* आजकल हर कोई राम राज्य को आदर्श राज्य कहता है
* राम राज्य तो असल में भरत राज्य, अर्थात नंदीग्राम का खडाऊं राज्य, अर्थात लोकस्वराज्य, जिसमें सत्ता व्यक्ति या विशिष्ट व्यक्तियों के हाथ में न होकर सामान्य नागरिकों के हाथ में होती है |
* १४ वर्ष तक अयोध्या में एक भी अप्रिय घटना नहीं हुई, राजा के मृत्यु के बावजूद, क्योंकि भरत ने अपने आप को केवल सुरक्षा एवं न्याय तक सीमित रखा, प्रशासन के चक्कर में नहीं पड़े,
* उदा; संजीविनी लाते हुए हनुमान पर राक्षस होने की शंका से प्रहार |
* इसके ठीक उलटे रावण राज्य देखें, आजकल की सरकार की तरह नेवर एंडिंग प्रोजेक्ट हाथ में लेना
* रावण की दो प्रिय परियोजनाएं : सागर के पानी को मीठा बनाना और स्वर्ग तक सीढी बनाना |


संक्षेप में कहें तो, उपसंहार यही है की
* राम अर्थात शराफत से समझदारी की ओर प्रयाण
* उदा: ऋषियों पर राक्षसों का अत्याचार देखते हुए ऋषियों की रक्षा हेतु रावण से युद्ध ठानना |
* अतः धूर्तों को परास्त करने का बीड़ा उठाना, सज्जनता को निरपेक्ष सम्मान दिलाना ही राम चरित्र |
* सच पूछिए तो त्रेतायुग से आज तक कोई विशेष अंतर नहीं आया है
* अन्ना हजारे का आन्दोलन और उसे सभ्य समाज का भारी समर्थन भी धूर्तता के विरुद्ध शराफत की लामबंदी को ही साबित करता है |


    राम जैसे हमारे मार्गदर्शक मित्र के सन्देश हमें बड़ी मुश्किल से इसीलिए पकड़ में आते हैं क्योंकि हमने उनको मंदिर की मूर्तियों में सीमित कर दिया है | राम जैसे हमारे मित्र सहज ही हमारे साथ चलने में ज्यादा आनंदित हैं, पर हम हैं की पूजा अर्चना उपासना की संकीर्णता से निकलकर उन्हें मित्र मानें तब ना |


धर्म फल की खोज को कहते है
तो अध्यात्म बोध के खोज को |

Karpuri Thakur

  भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर  का कर्नाटक कनेक्शन (Click here for Kannada Book Details)        कर्पूरी ठाकुर कम से कम दो बार बैंगलोर आये। एक बार...