----- योगा से क्या होगा ?
21 जून को संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में विश्वभर में योगदिवस मनाया गया । क्योंकि यह प्रस्ताव भारत ने 2014 में संरासं में लाया था, तो जाहिर है की भारत में यह अधिक भव्य तरीके से मनाया गया । प्रधानमंत्री से लेकर हजारों हजार आम आदमी देशभर में व्यायाम की विभिन्न मुद्राओं में दिखे ।
ये योग था, योगा था या व्यायाम इसे समझने की जरूरत है । सामान्य मान्यता है की योग के प्रणेता ऋषि पतंजलि थे । यथार्थ में योगशास्त्र के मूल प्रणेता हिरण्यगर्भ थे । कोई दर्शनशास्त्र जब पूर्णता प्राप्त करता है तब उसके सूत्र निर्माण होते हैं । भगवान बुद्ध के समकालीन पतंजलि ने हिरण्यगर्भ के योशास्त्र के सार-मर्म को योगसूत्र के रूप में प्रस्तुत किया जिसमें कुल केवल 195 सूत्र हैं ।
हमारे मन में परस्पर विरुद्ध विचार उठा करते हैं । इसका नाम वितर्क है । यह विरोध मिटाने की कला सध गई तो विवेक जागृत हो जाता है और वैचारिक द्वैत के मिटते ही आनंद की स्थिति आ जाती है । विचार द्वैत के अभाव में मनुष्य का चिंतन व्यापक हो जाता है और अस्मिता का स्वरूप व्यापकतम वस्तु, ब्रह्म मे लीन हो जाता है । यही ब्राह्मी-स्थिति आत्मदर्शन या स्थितप्रज्ञता कहलाती है ।
इस स्थितप्रज्ञता को हासिल करने के लिए पातंजल योगसूत्र में हमारे वृत्तियों के अनुकूल कैसे बरता जाए और वृत्तियों से परे कैसे हुआ जाए, ये दोनों बातें बताई हैं । वृत्तियों के अनुकूल अगर हम नहीं बरतते तो संसार में कोई कार्य नहीं कर सकते । वृत्तियों से परे अगर नहीं सोचते, तो तटस्थ दर्शन नहीं होता । अतः अपनी मानसिक वृत्तियों के सामंजस्य, यूनीजन या मेल को ही योग कहते हैं, जैसे गणित का योग । और इस स्थिति को प्राप्त करने के साधन ही पातंजल योगसूत्र में बताये गए हैं ।
तो संक्षेप में कहें तो योग अर्थात चित्तवृत्तिनिरोध । यह एक विशुद्ध मानसिक शास्त्र है । स्थितप्रज्ञता हासिल करने का रोडमैप है ।इसीलिए तो श्रीकृष्ण को भले ही योगिराज की संज्ञा दी गई हो, पर किसी भी जगह कहीं भी उन्हें किसी प्रकार का आसन या व्यायाम करते नहीं दर्शाया गया है ।
आसन व्यायाम तो केवल शरीर-स्वास्थ्य के लिए एक साधन है, जो योग का बहुत गौण अंग है । योगासन एक सुन्दर व्यायाम है जिसके लिए न ज्यादा जगह की जरूरत है, न औजारों की । इसमें वेग नहीं शान्ति है । मतलब कम से कम जगह में शांन्तिमय व्यायाम । विश्वभर में ऐसे कई व्यायाम प्रचलित हैं, जैसे कराटे, कुंगफू, ताईची, जूजीत्सू, एरोबिक्स इत्यादि ।
इससे यह प्रमाणित होता है की भारत सरकार ने 21 जून को जो भारतभर में करवाया वह व्यायाम था, जो हर स्कूली बच्चा पीटी की रूप में भी करता है ।
प्रश्न उठता है की सरकार/राज्य नाम की इकाई के समक्ष सबसे पहली प्राथमिकता क्या हो ? नागरिकों के प्रति सरकार का प्रथम दायित्व क्या है ? अपने नागरिकों को अपराधियों से बचाना या उनसे वर्जिश करवाना ? वर्जिश तो सरकार न भी करवाती तो असंख्य बाबा रामदेव, शिल्पा शेट्टी तुल्य योगप्रिय महानुभावों के अलावा स्कूलों के पीटी टीचर करवा ही रहे थे । मगर हमारी सुरक्षा तो केवल सरकार ही सुनिश्चित कर सकती है, क्योंकि सेना, पुलिस, गुप्तचर, न्यायालय, क़ानून आदि के संसाधन तो केवल सरकार के ही पास हैँ, शिल्पा जी या रामदेव जी के पास नहीं ।
भारत में भी लोकस्वराज मंच जैसे सामान्य नागरिकों के सामाजिक सरोकार वाले समूह वर्षों से यही समाधान देते आये है की क़ानून से चरित्र न कभी बना है न बनेगा, यह सच्चाई राजनेताओं एवं बुद्धिजीवियों को समझनी चाहिए । यदि वे न समझें तो आम आदमी उन्हें समझाए । अपराध से समाज की सुरक्षा पुलिस का दायित्व है, अन्य किसी से यह संभव नहीं, यह बात आम आदमी को समझनी पड़ेगी ।
भारत में पुलिस की स्थिति यह है की प्रति एक लाख आम आदमी पर 137 पुलिसवाले तैनात हैं, वहीं महज 13000 वीआइपी की सुरक्षा में 45000 पुलिसवाले नियुक्त हैं । और सरकारी सूत्रों के अनुसार 22% पुलिस पद रिक्त हैं । इसी कारण राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2003 में भारत में कुल अपराध जहां 17 लाख से कम थे, वहीँ वे 2011 में 23 लाख से ऊपर पहुँच गए । यानी केवल 8 साल में 1/3 से अधिक की खतरनाक वृद्धि ।
सबसे महत्व पूर्ण प्रश्न यह है की यदि चरित्र निर्माण ही सारी समस्याओं का समाधान है तो इतनी भारी-भरकम राज्य व्यवस्था की आवश्यकता ही क्या है ? क्यों न सभी सरकारी महकमों को बंद कर सकल घरेलू उत्पाद को चरित्र निर्माण में झोंक दिया जाय ! समय आ गया है की हम भारत के लोग अपने स्वतन्त्र चिंतन से कुछ नतीजों पर पहुंचें, क्योंकि रोगी को समय से दवा न मिलने से जितना खतरा होता है, उससे कहीं ज्यादा खतरा गलत दवा के सेवन से होता है ।
सुरक्षा और न्याय के अतिरिक्त सारे काम राज्य स्वेच्छा से समाज को सौंप दे और अपनी सारी शक्ति समाज को सुरक्षा और न्याय प्रदान करने में लगाए यही व्यवस्था परिवर्तन है, जो भारत की समस्याओं का सही समाधान है ।
योगा से कुछ नहीं होगा ।