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Mumbai Terror

मुम्बई बम विस्फोट की सीख  - माया मिली न राम      एक बार फिर आतंकवाद ने मुम्बई को लपेट लिया | 13 जुलाई की तिकड़ी विस्फोटों ने फिर से साबित कर दिया कि भारत आतंकवादियों के लिए साफ्ट टार्गेट है | हमले के तुरंत बाद राजनेताओं के बयान भविष्य के लिए स्पष्ट संकेत हैं | केन्द्रीय गृहमंत्री ने माना कि हमलों की कोई खुफिया  पूर्वसूचना नहीं थी | कांग्रेस के युवराज महासचिव  ने कहा कि हर हमले से जनता को बचाना सरकार के हाथ की बात नहीं है | गुजरात के मुख्यमंत्री, भाजपा के करिश्माई नेता ने तो यहाँ तक कह दिया कि यह भविष्य के बड़े हमलों का रिहर्सल मात्र है | निरीह जनता बेचारी पीड़ा से कराह रही है और राज्यसत्ता ने उन्हें रामभरोसे छोड़ दिया है |       सवाल है कि जब देश के दोनों बड़े राजनैतिक दल जनता को आश्वस्त करने की बजाय अपने प्रारब्ध पर छोड़ रहे हैं, तो शासन व्यवस्था की आवश्यकता ही क्या है ? एक तरफ तो शासन  यह कहे कि गिनती भर आतंवादियों को नियंत्रित करना उसके बस का नहीं, अगले ही पल वही शासन 120  करोड़ जनता में सिगरेट, हेलमेट, बालवि...

Ramlila Maidan

------------------  दमनचक्र या  चक्रव्यूह       4-5 जून की अँधेरी रात में शासन ने देश की राजधानी में मीडिया की उपस्थिति में  ही शान्तिपूर्ण विरोध कर रहे हजारों लोगों पर शारीरिक प्रहार करके  सभ्य समाज में एक नयी बहस छेड दी है | निश्चित रुप से यह कृत्य अलोकतान्त्रिक है तथा सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसका संज्ञान ले लिया है | अतः निकट भविष्य में निश्चित ही उस प्रकरण के उचित-अनुचित का निर्णय हो जाएगा | मुख्य बात यह है कि क्या शासन दमनचक्र प्रारम्भ करने से पहले सम्भावित परिणामों से अनभिज्ञ था ? सामान्य ज्ञान  रखनेवाला भारत का कोई भी नागरिक कहेगा कि शासन को सभी परिणामों का पूर्ण ज्ञान था |        अब प्रश्न यह उठता है कि न्यायिक, सार्वजनिक तथा मीडिया की व्यापक भर्त्सना की अवश्यम्भाविता के बावजूद शासन ने ऐसा क्यों किया ? क्रिकेटप्रेमी जानते हैं की बुरी तरह हार के कागार पर खडी टीम जैसे वर्षा की प्रार्थना करती है, ठीक उसी तरह दसों दिशाओं से भ्रष्टाचार की मार झेल रही शासन व्यवस्था भी बहस का मुद्दा बदलने के ताक में...

Education

-----------Education Social development occurs due to a synergy of two things। 1) Individual competition। 2) Society’s Caravan approach. In the competition model, an individual is free to forge ahead to the extent that the society permits him to, but in a caravan model it is binding to take along weaker individuals as well. A harmony between the two is an ideal system. The western model is far off from the caravan model and communism has no incentive for individual competitiveness. Prior to the nineties, India was devoid of any model of development. Post liberalization, we are running at breakneck speed on the competition model super highway. Education is vital in the competitive model. An educated person is undoubtedly more successful in the material progress of himself, his family and his nation than an uneducated person, but this education has been more of a hindrance rather than of any help as regards to the issues of social order and justice. Education has no consequence what...

Revolution

------------------- क्रान्ति के पुरोधा यह भ्रान्ति है कि क्रांतियाँ भौतिक होती हैं | क्रांतियाँ असल में मनुष्य के दिमाग में होती हैं, भले ही उसकी निष्पत्ति व्यापक रूप से भौतिक दृष्टिगोचर हो | जो क्रांतियों को गहराई से नहीं समझते  वे क्रान्ति के बाद की परिस्थिति देखकर उस क्रान्ति का आकलन करते हैं | अगर क्रान्ति के बाद का समाज पहले से बेहतर प्रतीत होता है तो क्रान्ति की शान में कसीदे पढ़े जाते हैं | इसके  विपरीत अगर क्रान्ति के बाद का समाज पहले से बदतर प्रतीत होता है तो क्रान्ति को टायं-टायं फिस्स मान लिया जाता है | बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में रूस में भी साम्यवाद-क्रान्ति हुई और जार शासन ख़त्म हुआ | बीसवीं सदी के मध्य  में उस क्रान्ति को मानव इतिहास की सफलतम क्रांतियों में गिना जाता था | और इक्कीसवीं सदी के  आते आते वही क्रान्ति पूर्णतः असफल सिद्ध हुई | गांधी की अहिंसक क्रान्ति भी बीसवीं सदी के मध्य में सफल मानी जाती थी | आज इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक के आते-आते देश की स्थिति देखकर अधिकाँश लोग स्वतन्त्र भारत की दशा से परेशान हैं | आचार्य विनोबा भावे की भू...

Anti Corruption

------------अन्ना हजारे और भ्रष्टाचार उन्मूलन अन्ना हजारे आज भ्रष्टाचार के विरुद्ध सशक्त प्रतीक के रूप में उभरे हैं | उनके जीवन संघर्ष से परिचित लोग यह जानते हैं की उनका पहला भ्रष्टाचार विरोधी संघर्ष 1975 में एक वन अधिकारी के विरुद्ध प्रारम्भ हुआ था जो आज 35  वर्ष बाद प्रधानमंत्री तक पहुँच गया | (लोकपाल विधेयक प्रधानमंत्री तक को भ्रष्टाचार विरोधी क़ानून के अंतर्गत लाने का प्रावधान रखता है ) अन्ना हजारे अत्यंत सरल, सहज, निश्छल, एवं सादे व्यक्ति हैं | इन वर्षों में महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में सिद्धि ग्राम को उन्होंने स्वावलंबी बनाकर एक आदर्श ग्राम का प्रारूप भी दिया है | उनका आन्दोलन भी ऐसा ही पाक साफ़ है | शासन के आदेशों के विरुद्ध समय-समय पर उठती उनकी आवाज के पीछे भी उनकी सामाजिक चेतना ही प्रमुख है | शासन और अनशनकारियों के बीच सैद्धांतिक रूप से किसी बात पर मतभेद नहीं है  क्योंकि सरकार ने अगले सत्र में विधेयक लाने का संकल्प ले लिया है | टसमटस इस बात पर है की आन्दोलनकारी विधेयक  प्रारूप समिति में सिविल सोसाईटी अर्थात समाज के आधे प्रतिनिधि चाहते हैं, पर सरकार इस...

Criket Victory

-----------------क्रिकेट विजय का मतलब भारत ने आखिरकार २८ वर्षों बाद क्रिकेट  विश्व कप जीत ही लिया | करोड़ों लोगों की शुभकामनाएं  तथा टीम के शानदार प्रदर्शन के बदौलत यह संभव हुआ |  कमोबेश यह वही टीम है जो पिछले विश्व कप में पहले ही दौर में बाहर हो गई थी | विशेषता यह की इस विजय अभियान में टीम ने सभी भूतपूर्व विश्व विजेताओं को एक एक कर हराकर खिताब जीता है |  जीत के बाद  टीम का रवैया टीम के जीत का  सूत्र को दर्शाता  है | फाइनल मैच टीम सचिन तेंदुलकर के खराब प्रदर्शन के बावजूद जीती, फिर भी पूरी टीम ने जीत का श्रेय सचिन  को समर्पित किया | सचिन का फाइनल से पहले  श्रंखला में शानदार प्रदर्शन रहा था, सो वे इस श्रेय को वैध रूप से ले सकते थे | पर उन्होंने जीत का सम्पूर्ण श्रेय टीम को समर्पित किया | इसके विपरीत टीम के कप्तान धोनी ने श्रंखला में टीम चयन से लेकर पिच के गलत आकलन तक का सभी दोष अपने ऊपर लिया, जबकी सब जानते हैं की  चयन या पिच संबंधी सभी निर्णय टीम, कोच आदि सामूहिक रूप से लेते हैं, कप्तान व्यक्तिगत नहीं | ऐसा अक्सर कम ही हो...
 -----------------------क्रिकूटनीति भारत पाकिस्तान समस्या को समझने के लिए दोनों देशों की स्थापना के सिद्धांत को जानना  आवश्यक है | भारत ने कभी धर्माधारित दो-राष्ट्र सिद्धांत को सही नहीं माना, पर जब वह लागू हो गया तो मजबूरी में फैसले को अंतिम मान  लिया, जबकी पाकिस्तान ने दो-राष्ट्र सिद्धांत को सही मना इसीलिए अभी तक क्रियान्वयन अधूरा मान रहा है | यही भारत पाकिस्तान समस्या की जड़ है | सैद्धांतिक रूप से दोनों मुद्राएं इतनी दूर हैं की समन्वय करना आसान नहीं है | समय ही इसका संतोषप्रद समाधान निकालेगा | जब हम शुरू में किसी की आलोचना करते हैं तो भविष्य का रास्ता भी स्वयमेव तय हो जाता है | अगले कदम पर हम विरोध करने पर मजबूर होते हैं, उत्तरोत्तर संघर्ष की स्थिति बनती है जो की अंत में विद्रोह का रूप लेती है | इसके ठीक उलटे जब हम किसी की प्रशंसा करते हैं, तब भी भविष्य में उत्तरोत्तर समर्थन, सहयोग, सहभागिता हेतु मजबूर होते हैं | वैकल्पिक रूप से अगर हम शुरू से ही  समीक्षा के धरातल पर रहें तो तटस्थ बुद्धि से मुद्दे के आधार पर अपनी मुद्रा तय कर सकते हैं,...