-----------------------क्रिकूटनीति

भारत पाकिस्तान समस्या को समझने के लिए दोनों देशों की स्थापना के सिद्धांत को जानना  आवश्यक है | भारत ने कभी धर्माधारित दो-राष्ट्र सिद्धांत को सही नहीं माना, पर जब वह लागू हो गया तो मजबूरी में फैसले को अंतिम मान  लिया, जबकी पाकिस्तान ने दो-राष्ट्र सिद्धांत को सही मना इसीलिए अभी तक क्रियान्वयन अधूरा मान रहा है | यही भारत पाकिस्तान समस्या की जड़ है | सैद्धांतिक रूप से दोनों मुद्राएं इतनी दूर हैं की समन्वय करना आसान नहीं है | समय ही इसका संतोषप्रद समाधान निकालेगा |

जब हम शुरू में किसी की आलोचना करते हैं तो भविष्य का रास्ता भी स्वयमेव तय हो जाता है | अगले कदम पर हम विरोध करने पर मजबूर होते हैं, उत्तरोत्तर संघर्ष की स्थिति बनती है जो की अंत में विद्रोह का रूप लेती है | इसके ठीक उलटे जब हम किसी की प्रशंसा करते हैं, तब भी भविष्य में उत्तरोत्तर समर्थन, सहयोग, सहभागिता हेतु मजबूर होते हैं | वैकल्पिक रूप से अगर हम शुरू से ही  समीक्षा के धरातल पर रहें तो तटस्थ बुद्धि से मुद्दे के आधार पर अपनी मुद्रा तय कर सकते हैं, बिना मजबूरी के |

पाकिस्तान ने शुरू  से ही भारत की आलोचना की मुद्रा तय की जिसके फलस्वरूप उसे भारत पर कई बार हमला  तक करना पडा | भारतीय विदेशनीति ने पाकिस्तान के विषय में  समीक्षात्मक मुद्रा तय की जिसके कारण  भारत को एक बार भी पाकिस्तान पर हमला करने की नौबत नहीं आई |

भारत पाकिस्तान वार्ता वर्तमान में आतंकवाद के विषय से आच्छादित है | आतंकवाद को सही दृष्टिकोण से समझने के लिए सामाजिक रचना समझना उचित रहेगा | औसतन समाज में धर्म के आधार पर चार सम्प्रदाय होते हैं |
1. जो मान्यता एवं आचरण दोनों में कट्टर हैं, 2. जो मान्यता में शांतिप्रिय मगर आचरण से कट्टर होते हैं, 3. जो मान्यता में कट्टर पर आचरण में शांतिप्रिय होते हैं, 4.  जो मान्यता तथा आचरण दोनों ही में उदार एवं  शांतिप्रिय होते हैं,


नगण्य अपवादों को छोड़ दें तो, वर्तमान में वहाबी विचारधारा से प्रभावित लोग पहली श्रेणी में, सूफियाना इस्लाम एवं ईसाई मतावलंबी तीसरी श्रेणी में, 'हिंदुत्व' के बहुप्रचारित विचारधारा से प्रभावित, तथा यहूदी दूसरी श्रेणी में, तथा सनातन एवं अन्य भारतीय मतावलंबी, चौथी श्रेणी में खड़े दीख रहे हैं |


पहली श्रेणी वाले आतंकवादी होते हैं | दूसरी श्रेणी वाले उग्रपंथी या प्रतिक्रियावादी कहलाते हैं | तीसरी श्रेणी वाले भ्रमित होते हैं, तथा चौथी श्रेणी वाले सज्जन होते हैं | हमें इनके भेद समझते हुए पहली श्रेणी के हौसले को बलपूर्वक तोड़ना होगा | दूसरी श्रेणी के लोगों पर अंकुश लगाना होगा ताकि उनके आचरण के उकसावे में सामान्य भोले-भाले लोग न आ जाय | तीसरी श्रेणी के लोगों को ह्रदय परिवर्तन की और प्रोत्साहित करना होगा ताकि वे चौथी श्रेणी वालों के सामान आदर सम्मान प्राप्त कर सकें, क्योंकि समाज के अस्सी प्रतिशत लोग इसी चौथी श्रेणी के होते हैं |

आतंकवाद धर्म, क्षेत्र, सभ्यता, राष्ट्र आदि सभी वर्गों को लांघता है | अपनी बात को हिंसा के बल पर मनवाने का प्रयत्न आतंकवाद होता है | इस आधार पर भारतीय नक्सलवाद, पूर्वोत्तर का अलगाववाद, फिलिस्तीन का यहूदी-विरोध, स्पेन का बास्क उग्रवाद, आयरलैंड का अलगाववाद आदि सब आतंकवाद की श्रेणी में आते हैं |

पाकिस्तान में भी आज सभ्य समाज और कट्टरवादियों में जंग छिड़ी हुई है | पाकिस्तानी राज्यसत्ता की समस्या यह है की अतीत मैं वह कट्टरवादियों का सहभागी रहा था | वर्तमान में जब समूचे विश्व में आतंकवाद विरोधी लहर उठ गई है, तब मजबूरन राज्यसत्ता को सहभागिता से कदम-दर-कदम वापस आना ही एकमात्र उपाय है | पर अतीत में की गई प्रतिबद्धता के चलते अब अचानक उलटे मुंह चलना असंभव है | इसीलिए हम देख रहें हैं की 9/11 के पूर्व का पाकिस्तान, पहले आतंकवाद की सहभागिता, फिर सहयोग, समर्थन, प्रशंसा से समीक्षा तक पहुंचा |

अब पाकिस्तान आतंकवाद की खुलकर आलोचना भी कर रहा है | भविष्य में  विरोध भी करने पर मजबूर होगा , उत्तरोत्तर संघर्ष भी करेगा और अंत में आतंकवाद के खिलाफ  विद्रोह भी करेगा | अमरीकी कूटनीतिज्ञों ने इस बात को समझ लिया 2001 में, भारतीय कूटनीतिज्ञ भी अब इसे समझने  लगे हैं, और भारतीय प्रधानमंत्री के क्रिकेट निमंत्रण को भी इसी परिप्रेक्ष्य में हमें देखना चाहिए |

खेल आम जनता के दिलों को छूता है | आम जनता कहीं की भी हो, उदार और शांतिप्रिय ही होती है | इसीलिए ऐसे मौके  जब भी स्वयमेव उपस्थित हों, दोनों राष्ट्रों के सभ्य समाज की उसमें साझीदारी निश्चित तौर पर उदारवाद को पुष्ट और कट्टरवाद को कमजोर ही करेगी | जहां तक मोहाली की बात है, खेल में अमुक दिन अच्छा खेलनेवाला विजयी होता है , अतः जो खराब  खेलेगा, वह हारेगा | पर यह पक्का  है की  इस पूरे मामले में कट्टरवाद पर उदारवाद जीतता हुआ दीख रहा है | 

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