Ramlila Maidan

------------------ दमनचक्र या  चक्रव्यूह 

     4-5 जून की अँधेरी रात में शासन ने देश की राजधानी में मीडिया की उपस्थिति में  ही शान्तिपूर्ण विरोध कर रहे हजारों लोगों पर शारीरिक प्रहार करके  सभ्य समाज में एक नयी बहस छेड दी है | निश्चित रुप से यह कृत्य अलोकतान्त्रिक है तथा सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसका संज्ञान ले लिया है | अतः निकट भविष्य में निश्चित ही उस प्रकरण के उचित-अनुचित का निर्णय हो जाएगा | मुख्य बात यह है कि क्या शासन दमनचक्र प्रारम्भ करने से पहले सम्भावित परिणामों से अनभिज्ञ था ? सामान्य ज्ञान  रखनेवाला भारत का कोई भी नागरिक कहेगा कि शासन को सभी परिणामों का पूर्ण ज्ञान था | 

     अब प्रश्न यह उठता है कि न्यायिक, सार्वजनिक तथा मीडिया की व्यापक भर्त्सना की अवश्यम्भाविता के बावजूद शासन ने ऐसा क्यों किया ? क्रिकेटप्रेमी जानते हैं की बुरी तरह हार के कागार पर खडी टीम जैसे वर्षा की प्रार्थना करती है, ठीक उसी तरह दसों दिशाओं से भ्रष्टाचार की मार झेल रही शासन व्यवस्था भी बहस का मुद्दा बदलने के ताक में थी | आन्दोलन के नेता की छोटी सी त्रुटी ने उसे वह बहाना दे दिया |  

     4  जून तक भारतभर में जो माहौल भ्रष्टाचार विरोध का था, वह अचानक  5 जून को सरकार विरोध में तब्दील हो गया | ध्यान देने योग्य बात है कि आजाद भारत के सभी शासन व्यवस्थाओं का यह चरित्र रहा है कि वे नागरिकों को गम्भीर मुद्दों में सहभागिता प्रदान करने से येन-केन-प्रकारेण बचती रह्ती हैं | क्योंकी उसने तो यह प्रचारित कर रखा है कि लोकतन्त्र अर्थात समाज के ऊपर  प्रतिनिधियों द्वारा शासन |  पौराणिक कथाओं में विश्वामित्र के तप को मेनका द्वारा भंग करवाने की इन्द्र की कुटिलता की कहानियाँ हम सभी जानते ही हैं | लोकपाल बिल मसौदा समिति  में सिविल सोसाईटी के नुमाइंदों की उपस्थिती की वैधानिकता ही  भविष्य में शासन व्यवस्था  को कमजोर कर  सभ्य समाज को मजबूत करनेवाला कदम है | शासन व्यवस्था एक बार तो गच्चा खा गई, दुबारा नहीं |   

     रामलीला मैदान की घटना शासन व्यवस्था का नागरिक विरोध झेलने के बदले राजनीतिक  दलों का विरोध मोल लेने की चतुर रणनीति के रुप में देखना चाहिए | इसीलिए आज सभ्य समाज के सामने यह स्पष्ट विकल्प खडा है कि या तो हम भ्रष्टाचार विरोध की आवाज बुलन्द रखते हुए व्यवस्था परिवर्तन लाएँ, अथवा सरकार विरोध करते हुए सत्ता परिवर्तन लाएँ | यहाँ पर हमें ध्यान देना होगा कि पिछ्ले  64  वर्षों में हम केवल सत्ता  परिवर्तन तक सीमित रहे है, और हर ब्राण्ड की सत्ता समाधान देने में असफल रही है | शायद अब एकाध बार व्यवस्था परिवर्तन का प्रयोग करने का समय आ गया है |

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