Thursday, November 9, 2023

Farm Laws Repealed

किसान की कृषि, भक्तों का खालिस्तान, और मोदी की क्षमा याचना

https://m.satyahindi.com/article/opinion/pm-modi-farm-laws-withdrawal-announcement-and-khalistani-comment/122860?utm=authorpage

    स्थापित सत्य है कि व्यवस्था निर्माण में अच्छी नीयत से अधिक सही नीति की आवश्यकता होती है । यह भी निर्विवाद है कि जहां लोकतंत्र में सत्ता = सेवा का मौका माना जाता है, वहीं अधिनायकवाद में सत्ता = सर्वज्ञता का पर्याय होता है । किसानों के लिए बनाए कानून में भारत सरकार इन दोनों यथार्थों से मुंह मोड गई । 


    यदि कानून बनाने से पहले ही मोदी सरकार  लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप किसानों की सहमति ले लेती तो "हम समझा नहीं पाये" का बहाना बनाकर माफी मांगने की नौबत नहीं आती । ऊपर से सरकार ने पिछले एक वर्ष से चलते आ रहे अहिंसक आंदोलन को बार बार खालिस्तानी, नक्सली, देशद्रोही आदि लेबल चस्पां कर अब माफी माँगकर खुद अपनी फजीहत करवा ली । 

    संसदीय लोकतंत्र से एक तरह का संख्यासुर पैदा होता है जो 49 को 0 और  51 को 100 दर्शाता है । मोदी सरकार संसद में भारी बहुमत के चलते इसी 51=100 के मुगालते में आ गई । इस संख्यासुर के चलते उसे संसद से कुछ ही मील दूर पर साल भर से तंबू गाड़ कर बैठे हजारों किसान भी नहीं दिखे न ही 700 से अधिक आंदोलनकारियों की शहादत । सरकार को बस इतना दिख रहा था कि उसकी अच्छी नीयत से लाए हुए कानूनों का जो भी विरोध कर रहा है, उसीकी नीयत गलत है । 

    यदि मोदी सरकार व्यवस्था निर्माण को प्राथमिकता देकर नीयत के स्थान पर सही नीति के आधार पर सोचती तो उसे यह एहसास हो जाता कि जैसे पेट्रोल से लेकर होटल के खाने तक की कीमतों में लागत से अधिक आय की गारंटी है, तदनुरूप जब तक कृषि विशेषज्ञ स्वामिनाथन समिति के सुझावों के अनुरूप कृषि उत्पाद की गारंटी कीमत उसकी लागत से 50% अधिक नहीं होगी, तब तक किसी भी किसान के लिए, चाहे वो छोटा श्रमिक हो या बड़ा जमींदार, किसी भी कृषि सुधार कानून का समर्थन करना सुसाइड नोट पर हस्ताक्षर करने जैसा होगा । यदि मोदी सरकार ने नीयत को बदले नीति के आधार पर सोचा होता तो कृषि उत्पादों की गारंटी कीमत को कानून बनाया होता । गारंटी कीमत के कानून से हर छोटे बडे किसान को लाभ होता और नतीजतन विरोध आंदोलन आदि नहीं होते । 

    उत्पादक किसान को लाभ की गारंटी देनेवाला कृषि कानून ही भारत के ग्रामीण किसानों को मान्य होगा, भले इस बारे में इंडिया का शहरी उपभोक्ता अपने लाभ के लिए कोई भी दलील दे । 

    मौजूदा किसान बिल के बारे में बहुप्रचलित किया गया कि नए कानून आने से किसानों को मंडियों और बिचौलियों से मुक्ति मिलेगी । बिहार ने 2006 से कानूनी रूप से मंडियां बंद कर दी । आज बिहारी किसान न्यूनतम सरकारी मूल्य से कम पर अपनी फसल व्यापारियों को बेचने पर मजबूर है । उदाहरणार्थ,  बिहार में पैदा हुआ धान, सरकारी मूल्य रु०1510 से कम रु० 1147 में बिक रहा है, क्योंकि सरकार ने रेट तो फिक्स किया, पर फसल उठाने की मंडी ही बंद कर दी, जिस कारण किसान व्यापारियों को औने-पौने दाम पर बेचने के लिए मजबूर है । तथ्य बताते हैं कि 2006 में मंडी बंद होने से लेकर अब तक 15 वर्षों में बिहार के औसत किसान की आय में शुद्ध गिरावट आई है । जब जमीनी हालात ऐसे हों तो एक अपूर्ण कानून का सरकार, मीडिया या समर्थक चाहे जितना महिमामंडन करें, देश में किसानी करनेवाला कोई भी किसान ऐसे कानून का पैरोकार हो ही नहीं सकता । 

    क्योंकि साधारण सा सूत्र है कि नीति निर्धारक और नीति प्रभावित में -दूरी जितनी अधिक होगी, नीति का प्रभाव उतना ही प्रतिकूल पड़ना अवश्यंभावी है । और प्रस्तावित निरस्त किये जाने वाले ये कृषि कानून के निर्धारक संसद और प्रभावित किसानों के बीच की खाई बहुत बड़ी है । 
 
    लोकतांत्रिक मूल्यों पर चलने वाले समाज में सत्ता प्राप्ति को सेवा करने का सर्वोत्तम साधन माना जाता है, क्योंकि सत्ता अर्थात संसाधन तथा नीति निर्धारण का मंच । वहीं अधिनायकवाद का मानना होता है कि सत्ता अर्थात सर्वज्ञता, कि सत्ता इसीलिए मिली है कि बाकी सारे मूर्ख थे अर्थात केवल हम एकमात्र समझदार । मोदी सरकार कदाचित यह भूल गई कि भारतीय संविधान ने प्रथम धारा में ही गांधी के विकेंद्रीकरण की भावना के अनुरूप हिंदुस्तान को "भारत राज्यों का संघ" के रूप में परिभाषित किया है । इसका सीधा अर्थ होता है कि केंद्र सरकार के जिम्मे केवल कुछ ही महत्वपूर्ण किंतु सामरिक विषय होंगे और बाकी रोजमर्रा के साधारण विषय राज्य सरकारों के अधीन होंगे । 

    खेती भी राज्य सरकार के अंतर्गत आनेवाला विषय है पर केंद्र सरकार ने इन कृषि कानूनों को संसद में पारित करके राज्यों के कार्यक्षेत्र में अतिक्रमण किया । केंद्र के इस अतिक्रमण के जवाब में पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़, केरल, दिल्ली आदि की राज्य सरकारों ने इन कृषि कानूनों को अपने अपने राज्यों में लागू होने पर रोक लगा दी जो पूर्णतः संविधान सम्मत थी । सुदूर उत्तर के पंजाब से लेकर दूरस्थ दक्षिण के केरल तक की लोकप्रय सरकारों द्वारा इन कानूनों को अपने अपने राज्यों मे निरस्त करना यह स्पष्ट कर देता है कि मोदी सरकार की स्वयं की सर्वज्ञता का भान, एक ऐसी मृगमरीचिका थी, जिसकी झूठी चकाचौंध में खुद प्रधानमंत्री महीनों तक विचरते रहे । 

    किसान क्षमा पर्व की कहानी मीडिया और मोदी समर्थकों की चर्चा के बिना अधूरी रहेगी । संसदीय लोकतंत्र से पैदा हई अव्यवस्था, औसत जनमानस में कठोर व्यवस्थापक की प्यास पैदा करती है । केयॉस की स्थिति लोगों में व्यवस्था परिवर्तन के स्थान पर समस्या समाधान हेतु अवतार पुरुष की मुखापेक्षी बना देती है । ऐसे में स्वाभाविक ही है कि वैसा अवतार पुरुष सर्वज्ञता से ओतप्रोत वक्तव्य भी दे और अवतार के भक्त और प्रचार तंत्र ऐसे वत्तव्यों के कई गुना मेग्निफाई भी करें । किसान कानूनों के साथ भी यही हुआ । बिना साधक-बाधक सोचे किसान बिल पर ध्रुवीकरण मैनुफेक्चर किया गया जिसमें देश एक साल से ज्यादा समय तक तपता रहा । किसी मीडिया ने या किसी समर्थक ने इस बिल में स्वामिनाथन समिति के विश्वस्तरीय शोध से निकले सुझावों पर सरसरी निगाह डालने तक की जहमत नहीं उठाई ।

    उधर पिछले कुछ महीनों में तेजी से बदलते वैश्विक समीकरणों ने मोदीजी के विश्वगुरु बनने के सर्वज्ञता स्वप्न पर सन्निपात कर दिया । लद्दाख से लेकर अरुणाचल तक चीन का भारतीय सीमा के अंदर दूर तक घुसने का विस्तारवाद, अफगानिस्तान से अमेरिका की विदाई के बात भारत की अप्रासंगिकता, धारा 370 हटने के बाद कश्मीर में जबरन थोपी हुई शांति, इस्लामिक स्टेट के बढते कदम आदि ने यह प्रमाणित कर दिया है कि आनेवाले समय में दक्षिण एशिया विश्व कूटनीति का प्रमुख रणक्षेत्र रहेगा जिसमें भारत अपने आप को दोस्तों से कम और दुश्मनों से ज्यादा घिरा हुआपाएगा । ऐसी बाह्य संभावित आपात्काल से निपटने में आंतरिक स्थापित शांति का बहुत महत्व होता है । इसी आंतरिक शांति की आवश्यकता के दबाव में मोदी सरकार नागरिकता कानून को भी टाल रही है और जमीन और किसान आदि कानूनों को भी निरस्त करने की कवायद कर रही है ।

    बहरहाल, दास्तां-ए-किसान ने शायद मोदी सरकार को गांधी की इस उक्ति का मर्म समझा ही दिया होगा “Speed is irrelevant if you are going in the wrong direction.” 

 बाकी बचे मीडिया और अंधभक्तों की स्थिति तो माफी मांगकर, बिल वापस लेकर मोदी जी ने ऐसी कर दी जैसे : 
ख़ुदा ही मिला विसाल-ए-सनम इधर के हुए उधर के हुए रहे
दिल में हमारे ये रंज-ओ-अलम इधर के हुए उधर के हुए
उधर के हुए ।

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Karpuri Thakur

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