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Stray thoughts

     Life is a synergy of two things. Intentions and approach. If the intentions are pious and only the approach is faulty, it can be corrected in due course. But if the intentions itself are evil, then there is no other way other than to disassociate with it and battle it. In India, the intentions as well as approach of governance is a conspiracy against us citizens. Some 'intellectuals' state that good people can influence the system positively. Are they implying that in the last 62 years since freedom, good people have never tried this?      The answer is that the system is so faulty and conspiratorial in its character that even good people have had to dilute their character to survive in the system. It is like the Las Vegas casino rule. Casinos never lose, only punters are supposed to.      We are kneading dough for our cow, unfortunately the dog bites our cow and is eating all our hard...

21 st Century Humans

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LOKPAL or Govt's Pal !

------------------------------- लोकपाल या तंत्रपाल      करीब पांच दशकों में नौवीं बार लोकपाल विधेयक संसद में पेश है |  1968 से अबतक लोकपाल की अतीव आवश्यकता के बावजूद संसद में इसका पारित नहीं होना स्वयंस्पष्ट है, क्योंकि लोकपाल लोक के आपसी भ्रष्टाचार में नहीं, अपितु लोक पर तंत्र के भ्रष्टाचार के विषय में पड़नेवाला क़ानून है | और स्वतन्त्र भारत में तंत्र ने यह विचार लोक के मन में पैठा दिया है कि विधायिका-कार्यपालिका-न्यायपालिका की तिकड़ी सर्वोच्च है और लोक द्वितीय दर्जे का | यह झूठ इतने तगड़े ढंग से लगातार 64 वर्षों से डंके की चोट पर दोहराया जा चुका है कि भारत की अधिकाँश जनता भी ईमानदारी से यह मान बैठी है कि लोकतंत्र का मतलब ही तंत्र का गुलाम लोक होता है |       आज स्थिति यह आ गई है कि जनता भारत में प्रचलित संसदीय लोकतंत्र (निर्वाचित सावधि तानाशाही) को ही असली लोकतंत्र मान चुकी है | दुनियाभर के अन्य विकसित लोकतंत्र के सहभागी माडल, या गांधी के ग्राम-गणराज्य कि कल्पना तक से हम कतराने लगे हैं | इसी गलतफहमी का फायदा उठात...

Dashahara

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Delhi Terrorism

- --------बार बार, आतंक से हार       7 सितम्बर को दिल्ली उच्च न्यायालय में आतंकी हमले ने फिर भारत को हिला दिया | कायरतापूर्ण इस मनमानी हिंसा को भारत कब तक सहता रहेगा यह सवाल आज हर नागरिक पूछ रहा है | विश्वभर में अविकसित राष्ट्रों को छोड़ दें, तो केवल भारत ऐसा देश है जहाँ ऐसे हमले लगातार होते आ रहें हैं | अन्य विकसित या विकासशील देश अपनी धरती पर आतंकवादी  घटनाओं में गुणात्मक कमी कर चुके हैं |       भारत एक लोकतंत्र है | सवाल उठता है कि पुलिस को कौन नियुक्त करता है ? क्यों नियुक्त करता है ? पुलिस को तंत्र नियुक्त करता है | आदर्श स्थिति वह होती है जब पुलिस, 'तंत्र' की सहायता से 'लोक' को सुरक्षा दे | पर भारत में आज हर नागरिक यह स्पष्ट अनुभव कर रहा है कि पुलिस 'लोक' नियंत्रण के माध्यम से 'तंत्र' को सुरक्षा दे रही है | तभी तो पुलिस बाबा रामदेव, अन्ना हजारे प्रकरण में तो 'तंत्र' की सुरक्षा हेतु नागरिकों को नियंत्रित करने में तो तत्परता दिखाती है, पर आतंक रोकने और  नागरिकों को सुरक्षा देते वक्त हर बार पूरी तरह विफल हो जाती है |   ...

demo(N)cracy

ठोकतंत्र बनाम लोकतंत्र        लोकतंत्र दो शब्दों का जोड़ है | लोक एवं तंत्र | जब तंत्र, लोक-नियंत्रित होता है तब वह लोकतंत्र कहलाता है | पर जब तंत्र, लोक को नियंत्रित करने का षड्यंत्र रचाने लगता है तब वह ठोकतंत्र बन जाता है | क्योंकि 'लोक' को तंत्र, भय तथा  बलप्रयोग से ही काबू में रख सकता है | पहले बाबा रामदेव और अब अन्ना हजारे मामले में शासन ठोकतंत्र के रूप में उभरा है | सौभाग्य से भारत की जनता इक्कीसवीं सदी में जी रही है, सामंतवादी सदी में  नहीं | देशभर के हजारों स्थानों पर स्वयंभू विरोध प्रदर्शन इसका जीवंत उदाहरण हैं |       भारत के संविधान की  उद्देशिका का प्रारम्भ ही "हम भारत के लोग" से होता है | आश्चर्य है कि "हमारे" संविधान को संसद नाम की एक छोटी सी इकाई में बैठे मुट्ठी भर लोग आमूलचूल बदलते रहते हैं | कहने को तो "हम भारत के लोग" संविधान से बद्ध हैं, पर वास्तव में संसद के "हम" कैदी हैं | संसद ने निर्णय के "हमारे" सारे अधिकार "हम" से छीनकर अपने पास बंधुआ रख लिए हैं | और संसद का यह एकपक्षीय शक्तिशाली होना ही आज...

Lokpal v/s Jokepal

-------------लोकपाल का इंद्रजाल  संसद के इस वर्षाकालीन  सत्र में सरकार लोकपाल विधेयक  पेश करनेवाली है | दो प्रारूप सामने आ रहे हैं | एक सरकारी लोकपाल  तथा एक जनलोकपाल | जनलोकपाल मसौदा देशभर में चर्चा का विषय बन गया है | पैंतीस वर्ष पूर्व के सम्पूर्ण क्रान्ति की लहर के बाद एक बार फिर जनता अपनी आवाज बुलंद करती दीख रही है | दूसरी तरफ सरकार गोवर्धन पर्वत उठाए गोकुलवासियों की धृषटता  पर क्रोधित इन्द्रदेव के समान दीख रही है | क्योंकि लोकपाल जनता के आपसी भ्रष्टाचार में नहीं पडेगा | लोकपाल केवल लोक की शिकायत पर तंत्र के भ्रष्टाचार की जांच करेगा | इसके पीछे कारण यह है कि भारत ने भी संयुक्त राष्ट्र संघ  के भ्रष्टाचार निरोधी चार्टर पर हस्ताक्षर कर दिया है | इस चार्टर के तहत हर देश को अपने सभी सार्वजनिक सेवकों की भ्रष्टाचार की जांच करनेवाली एक स्वतन्त्र एजेंसी स्थापित करना अनिवार्य है | भारत में वर्तमान में केवल केन्द्रीय सरकार में चालीस लाख सार्वजनिक सेवक हैं | राज्य सरकारों की तो बात ही अलग है | सरकारी लोकपाल विधेयक के प्रावधानों के अनुसार लोकपाल की  न...