Delhi Terrorism


---------बार बार, आतंक से हार 

     7 सितम्बर को दिल्ली उच्च न्यायालय में आतंकी हमले ने फिर भारत को हिला दिया | कायरतापूर्ण इस मनमानी हिंसा को भारत कब तक सहता रहेगा यह सवाल आज हर नागरिक पूछ रहा है | विश्वभर में अविकसित राष्ट्रों को छोड़ दें, तो केवल भारत ऐसा देश है जहाँ ऐसे हमले लगातार होते आ रहें हैं | अन्य विकसित या विकासशील देश अपनी धरती पर आतंकवादी  घटनाओं में गुणात्मक कमी कर चुके हैं | 

     भारत एक लोकतंत्र है | सवाल उठता है कि पुलिस को कौन नियुक्त करता है ? क्यों नियुक्त करता है ? पुलिस को तंत्र नियुक्त करता है | आदर्श स्थिति वह होती है जब पुलिस, 'तंत्र' की सहायता से 'लोक' को सुरक्षा दे | पर भारत में आज हर नागरिक यह स्पष्ट अनुभव कर रहा है कि पुलिस 'लोक' नियंत्रण के माध्यम से 'तंत्र' को सुरक्षा दे रही है | तभी तो पुलिस बाबा रामदेव, अन्ना हजारे प्रकरण में तो 'तंत्र' की सुरक्षा हेतु नागरिकों को नियंत्रित करने में तो तत्परता दिखाती है, पर आतंक रोकने और  नागरिकों को सुरक्षा देते वक्त हर बार पूरी तरह विफल हो जाती है |

     इसके मूल में भारतीय पुलिस की स्थापना है | भारतीय पुलिस अधिनियम स्वतन्त्र भारत की देन नहीं है | यह देन है अंग्रेजों की, वर्ष 1861 में | सनद  रहे कि इसके चार वर्ष पूर्व ही, 1857  में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम प्रारम्भ हुआ था | स्वाभाविक है कि 150 वर्ष पहले अंग्रेजों ने जो पुलिस व्यवस्था स्थापित की थी, वह नागरिक सुरक्षा के लिए तो कतई नहीं थी | वह थी नागरिकों पर नियंत्रण करने के लिए, और तंत्र की सुरक्षा के लिए | तो भारतीय पुलिस आज भी  अगर अपना मुख्य कर्तव्य नागरिक सुरक्षा के बदले नागरिक नियंत्रण मान रही तो वह अपनी स्थापना-उद्देश्यों  के अनुरूप ही आचरण कर रही  है |  वर्ष 2006  में भारतीय पुलिस अकादमी के 57 वें दीक्षांत भाषण में तथा  देश भर के पुलिस  अधीक्षकों के सम्मलेन में स्वयं प्रधानमंत्री भी यही बात कह चुके हैं| http://indiannow.org/?q=node/12 हाँ यह अलग बात है कि पिछले पांच वर्ष में उनकी सरकार ने इसे सुधारने का प्रयास नहीं किया | करें भी क्यों | आतंकी 'तंत्र' पर हमला थोड़े ही कर रहे हैं, वे तो 'लोक' पर कर रहे हैं | तंत्र तो पुलिस द्वारा रक्षित है ही|  

     भारत में 'हम' निरीह नागरिक तब तक गाजर मूली की तरह कटते रहेंगे जब तक पुलिस, नागरिक नियंत्रण (जैसे हेलमेट, तम्बाकू, बारबाला) विषयों को समाज पर छोड़कर नागरिक सुरक्षा (जैसे चोरी, डकैती, आतंक, बलात्कार) तक अपने आप को सीमित नहीं कर लेती | आज तंत्र को यह समझना होगा की उसकी प्राथमिकता  नागरिक सुरक्षा  है, नागरिक नियंत्रण समाज स्वयं कर लेगा | दूसरी ओर समाज को यह समझना होगा की उसकी सुरक्षा सरकार ही कर सकती है, इसीलिए समाज नागरिक नियंत्रण के विषयों में सरकार से सहायता    मांगना छोड़े |  और यह गुणात्मक सुधार तभी आयेगा जब "हम  भारत के लोग" यह बात पूरी ताकत के साथ 'राज्य व्यवस्था' को समझा दें कि लोकतंत्र में पुलिस का काम 'लोक' को सुरक्षा प्रदान करना है 'तंत्र' को नहीं |     

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