LOKPAL or Govt's Pal !

-------------------------------लोकपाल या तंत्रपाल



     करीब पांच दशकों में नौवीं बार लोकपाल विधेयक संसद में पेश है |  1968 से अबतक लोकपाल की अतीव आवश्यकता के बावजूद संसद में इसका पारित नहीं होना स्वयंस्पष्ट है, क्योंकि लोकपाल लोक के आपसी भ्रष्टाचार में नहीं, अपितु लोक पर तंत्र के भ्रष्टाचार के विषय में पड़नेवाला क़ानून है | और स्वतन्त्र भारत में तंत्र ने यह विचार लोक के मन में पैठा दिया है कि विधायिका-कार्यपालिका-न्यायपालिका की तिकड़ी सर्वोच्च है और लोक द्वितीय दर्जे का | यह झूठ इतने तगड़े ढंग से लगातार 64 वर्षों से डंके की चोट पर दोहराया जा चुका है कि भारत की अधिकाँश जनता भी ईमानदारी से यह मान बैठी है कि लोकतंत्र का मतलब ही तंत्र का गुलाम लोक होता है | 

     आज स्थिति यह आ गई है कि जनता भारत में प्रचलित संसदीय लोकतंत्र (निर्वाचित सावधि तानाशाही) को ही असली लोकतंत्र मान चुकी है | दुनियाभर के अन्य विकसित लोकतंत्र के सहभागी माडल, या गांधी के ग्राम-गणराज्य कि कल्पना तक से हम कतराने लगे हैं | इसी गलतफहमी का फायदा उठाते हुए तंत्र ने अगस्त 2011 में 'संसद की भावना' के बावजूद आज एक ऐसा बिल संसद में पेश किया है जो कि राष्ट्र के विश्वास पर घात है | प्रस्तुत बिल तो अगस्त 2011 में पेश बिल से भी कमजोर है | इस बिल की कुछ प्रमुखाताएं हैं-

* लोकपाल के चयन में सरकारी प्रतिनिधियों की बहुलता, जो केन्द्रीय सतर्कता आयोग, थामस जैसे प्रकरण की पुनरावृत्ति पुष्ट करेगा
* इस बिल के दायरे से जनप्रतिनिधियों का सदन में आचरण बाहर रहेगा, जो संसद नोट काण्ड जैसे प्रकरण को भविष्य में रोक नहीं पाएगा
* इस बिल में लोकपाल को केवल जांच का अधिकार है, अभियोजन  का नहीं, जो कि वर्तमान के कर्नाटक लोकायुक्त विधेयक से भी कमजोर है
* इस बिल से सी.बी.आई. बाहर है, जो कि झारखंड मुक्ति मोर्चा जैसे मामलों को अपनी तार्किक परिणति तक नहीं पहुंचा पाएगा
* इस बिल में भ्रष्टाचार विरोधी मुद्दे को भटकाकर आरक्षण पर ले जाने की साजिश तो साफ़ है ही
* यह बिल भारत के संघीय ढाँचे को भी कमजोर करेगा क्योंकि इसमें राज्यों में लोकायुक्त गठन के समर्थकारी प्रावधान के स्थान पर उसे अनिवार्य प्रावधान बनाया गया है
* इस बिल से सिटिजन चार्टर नदारद है, अलबत्ता यह एक अलग बिल के रूप में पेश है
लोकपाल का सिटिजन चार्टर भ्रष्टाचार विषयक राहत आम नागरिक को देता जो कि ज्वलंत समस्या है जबकि अनन्य सिटिजन चार्टर किसी सेवा प्रदाता के विषय में शिकायत पेटी मात्र है
* इस बिल में निचले सरकारी मुलाजिमों (ग्रुप सी,डी) का भ्रष्टाचार नहीं आता जिनसे सामान्य जनता त्रस्त है
* इस बिल में प्रधानमंत्री द्वारा लोक व्यवस्था हेतु  लिए गए निर्णय नहीं आते (यहाँ तो सरकारें शराबबंदी भी जनहित में कराती हैं और शराब के नए ठेके भी जनहित में ही देती हैं)
* इस बिल के अनुसार जहां भ्रष्टाचार के आरोपी सरकारी व्यक्ति को बचाव के लिए सरकारी वकील मुहैया होगा वहीँ शिकायतकर्ता को दंड का प्रावधान है
* इस बिल में राजनैतिक दल तो बिलकुल नहीं आते, 95% राजनेता नहीं आते (विधायिका), 90% नौकरशाही बाहर है (कार्यपालिका), और 100% न्यायपालिका तो बाहर है ही
* वहीँ इसके उलटे "हम भारत के लोग" द्वारा संचालित स्कूल, कालेज, स्वयंसेवी संस्थाएं, अस्पताल आदि इस बिल के दायरे में आते हैं

     इन सब तथ्यों से स्पष्ट है कि यह लोकपाल बिल नहीं तंत्रपाल बिल पेश किया गया है | इसका प्रारम्भ तो हुआ लोक पर तंत्र द्वारा भ्रष्टाचार मिटाने के बिल के रूप में मगर संसद में यह पेश है तंत्र द्वारा लोक को नए क़ानून के नाम पर गुलामी की एक और बेडी पहनाने के रूप में |

     आज मानव 21वीं सदी मैं है और विज्ञान ने कथनी-करनी के भेद को नगण्य कर दिया है | इसी समाज के एक वर्ग को लोकतंत्र की परिभाषा में दुष्प्रचार का एहसास हुआ और वह "सिविल सोसाईटी" कहलाया | इसने तंत्र की इस साजिश को लोक के सामने पर्दाफ़ाश करने का मन बना लिया है | टीम अन्ना यह जानती है कि वर्तमान संसदीय प्रणाली में जनलोकपाल आने की संभावना क्षीण है पर 27 से 29 दिसंबर तक की संसद की कार्यवाई पूरे देश के सामने निर्वाचित प्रतिनिधियों का रुख स्पष्ट कर देगी | तत्पश्चात  "लोक" में यह  धारणा प्रबल होने लगेगी कि वर्त्तमान संसदीय लोकतंत्र अब नाकाफी है और "हम भारत के लोग" प्रतिनिधि लोकतंत्र की राह छोड़कर भविष्य में सहभागी लोकतंत्र की राह पकडें |










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