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LOKPAL or Govt's Pal !

------------------------------- लोकपाल या तंत्रपाल      करीब पांच दशकों में नौवीं बार लोकपाल विधेयक संसद में पेश है |  1968 से अबतक लोकपाल की अतीव आवश्यकता के बावजूद संसद में इसका पारित नहीं होना स्वयंस्पष्ट है, क्योंकि लोकपाल लोक के आपसी भ्रष्टाचार में नहीं, अपितु लोक पर तंत्र के भ्रष्टाचार के विषय में पड़नेवाला क़ानून है | और स्वतन्त्र भारत में तंत्र ने यह विचार लोक के मन में पैठा दिया है कि विधायिका-कार्यपालिका-न्यायपालिका की तिकड़ी सर्वोच्च है और लोक द्वितीय दर्जे का | यह झूठ इतने तगड़े ढंग से लगातार 64 वर्षों से डंके की चोट पर दोहराया जा चुका है कि भारत की अधिकाँश जनता भी ईमानदारी से यह मान बैठी है कि लोकतंत्र का मतलब ही तंत्र का गुलाम लोक होता है |       आज स्थिति यह आ गई है कि जनता भारत में प्रचलित संसदीय लोकतंत्र (निर्वाचित सावधि तानाशाही) को ही असली लोकतंत्र मान चुकी है | दुनियाभर के अन्य विकसित लोकतंत्र के सहभागी माडल, या गांधी के ग्राम-गणराज्य कि कल्पना तक से हम कतराने लगे हैं | इसी गलतफहमी का फायदा उठात...

Dashahara

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Delhi Terrorism

- --------बार बार, आतंक से हार       7 सितम्बर को दिल्ली उच्च न्यायालय में आतंकी हमले ने फिर भारत को हिला दिया | कायरतापूर्ण इस मनमानी हिंसा को भारत कब तक सहता रहेगा यह सवाल आज हर नागरिक पूछ रहा है | विश्वभर में अविकसित राष्ट्रों को छोड़ दें, तो केवल भारत ऐसा देश है जहाँ ऐसे हमले लगातार होते आ रहें हैं | अन्य विकसित या विकासशील देश अपनी धरती पर आतंकवादी  घटनाओं में गुणात्मक कमी कर चुके हैं |       भारत एक लोकतंत्र है | सवाल उठता है कि पुलिस को कौन नियुक्त करता है ? क्यों नियुक्त करता है ? पुलिस को तंत्र नियुक्त करता है | आदर्श स्थिति वह होती है जब पुलिस, 'तंत्र' की सहायता से 'लोक' को सुरक्षा दे | पर भारत में आज हर नागरिक यह स्पष्ट अनुभव कर रहा है कि पुलिस 'लोक' नियंत्रण के माध्यम से 'तंत्र' को सुरक्षा दे रही है | तभी तो पुलिस बाबा रामदेव, अन्ना हजारे प्रकरण में तो 'तंत्र' की सुरक्षा हेतु नागरिकों को नियंत्रित करने में तो तत्परता दिखाती है, पर आतंक रोकने और  नागरिकों को सुरक्षा देते वक्त हर बार पूरी तरह विफल हो जाती है |   ...

demo(N)cracy

ठोकतंत्र बनाम लोकतंत्र        लोकतंत्र दो शब्दों का जोड़ है | लोक एवं तंत्र | जब तंत्र, लोक-नियंत्रित होता है तब वह लोकतंत्र कहलाता है | पर जब तंत्र, लोक को नियंत्रित करने का षड्यंत्र रचाने लगता है तब वह ठोकतंत्र बन जाता है | क्योंकि 'लोक' को तंत्र, भय तथा  बलप्रयोग से ही काबू में रख सकता है | पहले बाबा रामदेव और अब अन्ना हजारे मामले में शासन ठोकतंत्र के रूप में उभरा है | सौभाग्य से भारत की जनता इक्कीसवीं सदी में जी रही है, सामंतवादी सदी में  नहीं | देशभर के हजारों स्थानों पर स्वयंभू विरोध प्रदर्शन इसका जीवंत उदाहरण हैं |       भारत के संविधान की  उद्देशिका का प्रारम्भ ही "हम भारत के लोग" से होता है | आश्चर्य है कि "हमारे" संविधान को संसद नाम की एक छोटी सी इकाई में बैठे मुट्ठी भर लोग आमूलचूल बदलते रहते हैं | कहने को तो "हम भारत के लोग" संविधान से बद्ध हैं, पर वास्तव में संसद के "हम" कैदी हैं | संसद ने निर्णय के "हमारे" सारे अधिकार "हम" से छीनकर अपने पास बंधुआ रख लिए हैं | और संसद का यह एकपक्षीय शक्तिशाली होना ही आज...

Lokpal v/s Jokepal

-------------लोकपाल का इंद्रजाल  संसद के इस वर्षाकालीन  सत्र में सरकार लोकपाल विधेयक  पेश करनेवाली है | दो प्रारूप सामने आ रहे हैं | एक सरकारी लोकपाल  तथा एक जनलोकपाल | जनलोकपाल मसौदा देशभर में चर्चा का विषय बन गया है | पैंतीस वर्ष पूर्व के सम्पूर्ण क्रान्ति की लहर के बाद एक बार फिर जनता अपनी आवाज बुलंद करती दीख रही है | दूसरी तरफ सरकार गोवर्धन पर्वत उठाए गोकुलवासियों की धृषटता  पर क्रोधित इन्द्रदेव के समान दीख रही है | क्योंकि लोकपाल जनता के आपसी भ्रष्टाचार में नहीं पडेगा | लोकपाल केवल लोक की शिकायत पर तंत्र के भ्रष्टाचार की जांच करेगा | इसके पीछे कारण यह है कि भारत ने भी संयुक्त राष्ट्र संघ  के भ्रष्टाचार निरोधी चार्टर पर हस्ताक्षर कर दिया है | इस चार्टर के तहत हर देश को अपने सभी सार्वजनिक सेवकों की भ्रष्टाचार की जांच करनेवाली एक स्वतन्त्र एजेंसी स्थापित करना अनिवार्य है | भारत में वर्तमान में केवल केन्द्रीय सरकार में चालीस लाख सार्वजनिक सेवक हैं | राज्य सरकारों की तो बात ही अलग है | सरकारी लोकपाल विधेयक के प्रावधानों के अनुसार लोकपाल की  न...

Mumbai Terror

मुम्बई बम विस्फोट की सीख  - माया मिली न राम      एक बार फिर आतंकवाद ने मुम्बई को लपेट लिया | 13 जुलाई की तिकड़ी विस्फोटों ने फिर से साबित कर दिया कि भारत आतंकवादियों के लिए साफ्ट टार्गेट है | हमले के तुरंत बाद राजनेताओं के बयान भविष्य के लिए स्पष्ट संकेत हैं | केन्द्रीय गृहमंत्री ने माना कि हमलों की कोई खुफिया  पूर्वसूचना नहीं थी | कांग्रेस के युवराज महासचिव  ने कहा कि हर हमले से जनता को बचाना सरकार के हाथ की बात नहीं है | गुजरात के मुख्यमंत्री, भाजपा के करिश्माई नेता ने तो यहाँ तक कह दिया कि यह भविष्य के बड़े हमलों का रिहर्सल मात्र है | निरीह जनता बेचारी पीड़ा से कराह रही है और राज्यसत्ता ने उन्हें रामभरोसे छोड़ दिया है |       सवाल है कि जब देश के दोनों बड़े राजनैतिक दल जनता को आश्वस्त करने की बजाय अपने प्रारब्ध पर छोड़ रहे हैं, तो शासन व्यवस्था की आवश्यकता ही क्या है ? एक तरफ तो शासन  यह कहे कि गिनती भर आतंवादियों को नियंत्रित करना उसके बस का नहीं, अगले ही पल वही शासन 120  करोड़ जनता में सिगरेट, हेलमेट, बालवि...

Ramlila Maidan

------------------  दमनचक्र या  चक्रव्यूह       4-5 जून की अँधेरी रात में शासन ने देश की राजधानी में मीडिया की उपस्थिति में  ही शान्तिपूर्ण विरोध कर रहे हजारों लोगों पर शारीरिक प्रहार करके  सभ्य समाज में एक नयी बहस छेड दी है | निश्चित रुप से यह कृत्य अलोकतान्त्रिक है तथा सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसका संज्ञान ले लिया है | अतः निकट भविष्य में निश्चित ही उस प्रकरण के उचित-अनुचित का निर्णय हो जाएगा | मुख्य बात यह है कि क्या शासन दमनचक्र प्रारम्भ करने से पहले सम्भावित परिणामों से अनभिज्ञ था ? सामान्य ज्ञान  रखनेवाला भारत का कोई भी नागरिक कहेगा कि शासन को सभी परिणामों का पूर्ण ज्ञान था |        अब प्रश्न यह उठता है कि न्यायिक, सार्वजनिक तथा मीडिया की व्यापक भर्त्सना की अवश्यम्भाविता के बावजूद शासन ने ऐसा क्यों किया ? क्रिकेटप्रेमी जानते हैं की बुरी तरह हार के कागार पर खडी टीम जैसे वर्षा की प्रार्थना करती है, ठीक उसी तरह दसों दिशाओं से भ्रष्टाचार की मार झेल रही शासन व्यवस्था भी बहस का मुद्दा बदलने के ताक में...