2024 Verdict = Decentralization
2024 का चुनाव = 100 करोड लोग
सामूहिक इच्छाशक्ति की अभिव्यक्ति
इस चुनाव में दो दलों का राष्ट्रीय पदचिह्न रहा। पर जीतने वाले दलों में इनके अलावा 46 अन्य दल एवं निर्दलीय भी रहे।
सबसे रोचक तथ्य ये है भाजपा और कांग्रेस को मिलाकर 60% से कम वोट मिले। इसका सीधा अर्थ ही है कि +40% जनता सत्ता को अपने से दूर देने के बजाए अपने से नजदीक रखने के लिए वोट करती है।
20ै24 के चुनाव में भाजपा ने खुल के विस्तारवादी रुख अपनाया और कांग्रेस ने क्षेत्रीय दलों को स्पेस दिया। नतीजों में 2019 की तुलना में कांग्रेस को 2% वोट, और करीब 55 सीट बढे तथा भाजपा का 2% वोट और 65 सीट घटे। ये तथ्य भी इसी ओर इंगित करता है कि जनता विस्तारवादिता को नकारती है।
1984 में भाजपा के पहली बार राष्ट्रीय पटल पर उभरने से लेकर 2024 तक के 10 चुनावों में एक बार भी कांग्रेस+भाजपा को मिलाकर 59% से अधिक वोट नहीं मिले, चाहे राजीव गाँधी या नरेंद्र मोदी 2.0 जैसी बडी बहुमत की सरकार हो, या चंद्रशेखर गुजराल की अल्पमत की सरकार। स्पष्ट है कि 40% भारतीय वोटर हर हाल में राष्ट्रीयता के बदले स्थानीयता पसंद करता है।
2024 के चुनाव में तानाशाही की जीत-हार की जद्दोजहद में दोनों ही पक्षों के इकोसिस्टम की बडी ऊर्जा क्षीण हो चुकी है। आनेवाले समय में दोनों ही पक्षों के थके हारे अधिकांश योद्धाओं का रेस्ट मोड में जाना स्वाभाविक है।
मगर वहीं इन दोनों को वोट न देनेवाला, इस युद्ध में जिसने भाग नहीं लिया, वो 40% इकोसिस्टम तरोताज़ा तैयार है। तो आनेवाले 5 साल में जो भी समूह इस 40% के मनोविज्ञान के अनुसार बर्ताव करेगा, वो अगले आम चुनाव में सबसे बडा वोट बैंक बनकर उभर सकता है।
ऐसे में जो भी समूह, नेता, दल ...
• सत्ता विकेंद्रीकरण को अपना सिद्धांत
• संघीय व्यवस्था को अपनी संवैधानिक ढाल
• 74वें संशोधन की ग्राम सभाओं को विधाई अधिकार देने को अपना नारा
...बना लेगा, 40% जनता को विश्वास हो जाएगा कि उसके बीच में एक ऐसा राम आया है, जो खुद रावण रूपी केंद्रीकृत वर्तमान व्यवस्था को हरायेगा भी और जीतने के बाद सत्ता खुद न रखकर, वापस जनता रूपी लंका वासियों को दे देगा।
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