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Showing posts from 2023

Vinoba Bhave

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     An incognito great https://www.millenniumpost.in/opinion/an-incognito-great-417800 A paragon of generosity and intellectual curiosity, Acharya Vinoba Bhave tirelessly toiled to bring wide-ranging societal reform to a post-Independence India           Every few epochs, society is enriched by great reformers like a Swami Vivekananda or a Mahatma Gandhi. But just like behind every Vivekananda, there was his spiritual anchor in Swami Ramakrishna Paramahamsa, so too Gandhi must have had one. Most of know about Acharya Vinoba Bhave as a freedom fighter, a Bharat Ratna, and as Gandhiji's disciple. But it is a revelation to know that Gandhiji himself called Acharya Vinoba Bhave as an exalted spiritual soul. Acharya Vinoba Bhave was a self-taught scholar extensively knowledgeable in scriptures, be it Hinduism, Jainism, Buddhism, Christianity or even Islam. Before he wrote a treatise on Islam, Acharya Vinoba Bhave learnt Arabic to understand the H...

INDIA @ 75

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  भारत @75 = त्रिशंकु ? https://www.satyahindi.com/opinion/india-75-years-of-independence-celebration-democracy-129201.html     त्रिशंकु प्राचीन भारतीय पुराणों के हीरो हैं। कथा के अनुसार जब राजा त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग जाने की इच्छा हुई तो ऋषि विश्वामित्र ने उन्हें तपोबल से ऊपर भेज दिया।  परन्तु स्वर्ग के राजा इंद्र ने उन्हें वापस यह कहकर नीचे ठेल दिया की स्वर्ग में सशरीर प्रवेश वर्जित है। ऋषि विश्वामित्र को इंद्र के इस दुस्साहस पर क्रोध आ गया और उन्होंने त्रिशंकु को वापस पृथ्वी पर गिरने नहीं दिया।  अंततोगत्वा इंद्र और विश्वामित्र के बीच समझौता हुआ जिसके तहत त्रिशंकु स्वर्ग की रचना हुई जिसमें की व्यक्ति जमीं से ऊपर उठ तो जाता है पर आसमां को छूने की मनाही है ।        १९४० के दशक में द्वितीय विश्व युद्ध एवं साम्राज़्यवाद के अंत के साथ ही दुनिया भर के कई देश आजाद हो गए, चाहे वह भारत हो, जर्मनी हो, कई अफ्रीकी देश हों, जापान हो, श्रीलंका हो या चीन।  नव स्वतन्त्र देशों ने अलग अलग व्यवथाएं अपनाई। अधिकतर पाश्चात्य देशों ...

Culture Nostalgia & Rise of Right Wing

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  Culture and its relation to invoking nostalgia during stable times http://greypodium.com/blog/2018/12/27/culture-and-nostalgia/      Unlike animals, human psyche is a paradox. We continuously learn new things culturally and at the same time carry a strong feeling that new things are related to past. We justify them as an extension of the glorious past. The affection for past is unique among humans. Our past becomes stories of the present and continue to grow with generations. However, we don’t carry along all the stories from past, we develop new stories and drop old or irrelevant ones. With time we get organized with family, friends and community which becomes a tradition leading to culture. Every community organizes itself differently so that their cultures also become different.       As culture keeps changing with generation and locations, one culture too evolves for better or worse depending on the people in a particular community.  ...

Kannada Rajyotsava 2022

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कर्नाटक : उदार चरित्र का विश्वग्राम https://epaper. patrika .com/ Home/MShareArticle?OrgId= 1117b94300 2      महोपनिषद् में एक सूत्र है, 'उदार चरितानाम् तु वसुधैव कुटुम्बकम्' जिसका अर्थ निकलता है कि जिस समाज में उदारता व्याप्त होती है, वहां संपूर्ण विश्व समा जाता है।       किसी भी भूभाग की वर्तमान संस्कृति उसके इतिहास एवं भूगोल में निहित होती है । कर्नाटक का इतिहास एवं भूगोल दोनों विशिष्ट हैं । उत्तर भारतीय मैदानी इलाकों से भिन्न, कर्नाटक तटीय आरण्यक पठार है । अगर उत्तर भारत ने सिकंदर के आक्रमण को २३०० वर्ष पहले झेला तो ई०पू० तीसरी सदी से ही उडुपी के उदयवरा बंदरगाह से कर्नाटक का अरबों के साथ सामुद्रिक व्यापारिक संबंध रहा। यदि रामायण के पौराणिक नायक प्रभु श्रीराम की सुग्रीव-हनुमान से मित्रता कर्नाटक में हुई तो सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने भी अपना अंतिम समय कर्नाटक के जैन बसदी में बिताने का निर्णय लिया।       तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में ही जैनाचार्य भद्रबाहू कर्नाटक आये जिसके चलते आज भी जैन आगमों का सबसे बृहद संग्रह और शोध कर्नाटक के मू...

Farm Laws Repealed

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किसान की कृषि, भक्तों का खालिस्तान, और मोदी की क्षमा याचना https://m.satyahindi.com/article/opinion/pm-modi-farm-laws-withdrawal-announcement-and-khalistani-comment/122860?utm=authorpage      स्थापित सत्य है कि व्यवस्था निर्माण में अच्छी नीयत से अधिक सही नीति की आवश्यकता होती है । यह भी निर्विवाद है कि जहां लोकतंत्र में सत्ता = सेवा का मौका माना जाता है, वहीं अधिनायकवाद में सत्ता = सर्वज्ञता का पर्याय होता है । किसानों के लिए बनाए कानून में भारत सरकार इन दोनों यथार्थों से मुंह मोड गई ।       यदि कानून बनाने से पहले ही मोदी सरकार  लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप किसानों की सहमति ले लेती तो "हम समझा नहीं पाये" का बहाना बनाकर माफी मांगने की नौबत नहीं आती । ऊपर से सरकार ने पिछले एक वर्ष से चलते आ रहे अहिंसक आंदोलन को बार बार खालिस्तानी, नक्सली, देशद्रोही आदि लेबल चस्पां कर अब माफी माँगकर खुद अपनी फजीहत करवा ली ।       संसदीय लोकतंत्र से एक तरह का संख्यासुर पैदा होता है जो 49 को 0 और  51 को 100 दर्शाता है । मोदी सरकार संसद में भा...

Afghanistan Taliban USA

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तालिबान को किस नज़रिये से देखे  मोदी सरकार ?       https://m.satyahindi.com/article/opinion/modi-government-policy-on-taliban-in-afghanistan/121370?utm=authorpage      अनादि काल से ही मानव समाज में तीन प्रवृत्ति के लोग रहते हैं । सभ्य, असभ्य और बर्बर । भारतीय पौराणिक कथाओं में भी देव, मानव और दानवों का अस्तित्व वर्णित है । बर्बर जमात असीम हिंसा पर विश्वास करती है, सभ्य समाज सीमा से अधिक व्यवस्थित होता है तथा बीच में खड़े सज्जन लोग न तो किसी व्यवस्था के अंग ही होते हैं, न ही वे स्वयं हिंसक -अतः वहां अव्यवस्था (असभ्यता) का बोलबाला होता है ।      सभ्य समाज में लोगों के अधीन शासन होता है, असभ्य समाज में शासन के अधीन लोग होते हैं, तथा बर्बर समाज में जिसकी लाठी उसीकी भैंस होती है । वर्तमान विश्व में भी यदि देखें तो अधिकांश पश्चिमी देशों में लोगों के अधीन शासन है, अधिकांश विकासशील एवं धर्म प्रधान राष्ट्रों में शासन के अधीन लोग हैं, और उत्तर कोरिया तथा कई अफ्रीकी एवं अविकसित देशों में बर्बरता का बोलबाला है ।       बर्बर क्रूर...