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Showing posts from 2014

Modi 200 Days

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Modi 200 Days   लोकतंत्र - तानाशाही - लोकस्वराज         ता नाशाही में समस्याओं का समाधान जल्दी कर दिया जाता है जबकी लोक-स्वराज में समस्याएं पैदा ही कम होती हैं । लोकतंत्र में समस्याओं का लगातार विस्तार होता जाता है । भारत सहित दक्षिण एशिया मैं लोकतंत्र है, अतः इस क्षेत्र में समस्याएं पिछली आधी शताब्दी में  बढ़ती जा रही हैं । पश्चिम के देशों के  लोकतंत्र लोकस्वराज की और झुके हुए होने के कारण वहां समस्याएं कम पैदा होती हैं । कम्युनिस्ट और इस्लामिक देशों में तानाशाही होने से समस्याएं दबा दी जाती है ।       रूस, ईराक, नेपाल, आदि में तानाशाही के बाद लोकतंत्र आया, इसीलिए वहां अशांति बढ़ रही है । लोकतंत्र यदि लोकस्वराज की दिशा में न बढे तो तानाशाही निश्चित है । भारत में अव्यवस्था थी, और बढ़ रही थी । अतः २०१४ चुनाव परिणाम तानाशाही की तरफ झुके हुए आये । मोदी जी अपने तरीके से समस्याओं का समाधान की दिशा में बढ़ रहे है, किन्तु मोदी जी के किसी कदम से यह नहीं दिखा की वे सहभागी लोकतंत्र अर्थात लोकस्वराज के पक्षधर हैं ।  ...

Who will secure citizens from crime ?

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​ दिल्ली बलात्कार ---- जिम्मेदार कौन ? ​      दिल्ली में फिर एक बार बलात्कार हुआ । इस बार चलती कार में । लगातार ऎसी घटनाएं बढ़ रही हैं ।​चाहे 6 वर्ष की शहरी अबोध कन्या हो या ग्रामीण महिला, इन सब के साथ क्रूरतापूर्ण दुष्कर्म की घटनाएँ भारत सहित विश्वभर में खबर बन रही है । इतनी की, बड़े बड़े राजनेता भी कह रहे हैं की समाज को आत्ममंथन की जरूरत है । ये लोग यह भी कह रहे हैं की सरकार ने अपराधों से और प्रभावी ढंग से निपटने के लिए कानून को मजबूत बनाने के कार्य को तेजी से आगे बढ़ाया है । और हास्यास्पद ढंग से कार कंपनी के लायसेंस को रद्द करने को ठोस कदम करार कर रही है । ​      मीडिया में चल रही लगातार बहस के दौरान भी भारत के बुद्धिजीवी कुछ ऐसी ही बातें करते तथा कड़ी से कड़ी सजा के हिमायती दिख रहे हैं । टीवी एंकरों, राजनेताओं की मानें तो पूरा समाज दोषी है, और बुद्धिजीवियों की माने तो हर दोषी को फांसी होनी चाहिए । इन दोनों की राय लागू हो जाय तो भारत से मनुष्य प्रजाति डायनोसार के सामान लुप्त हो जायेगी । आश्चर्य है की भारत के जिम्मेदार लोग यह भी नहीं जानत...

Dashahara

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      दशहरा  महिषासुर या रावण के दमन का उत्सव नहीं है । यह बुरी शक्तियों की अच्छी शक्तियों का विजय का सूचक है । दशहरा अर्थात हमारे अंदर स्थित दस विकारों का दमन ।      जब व्यक्ति में बुद्धि और भावना का संतुलन गडबड होकर किसी एक दिशा में में बढ़ने लगता है तब समाज पर इसका प्रभाव पड़ना निश्चित है । बुद्धि-प्रधान व्यक्ति समाज-संचालक और भावना प्रधान व्यक्ति संचालित  में आ जाते हैं । बुद्धि-प्रधान लोग प्रचार का सहारा लेकर समाज में असत्य को सत्य तथा सत्य को असत्य के सामान सिद्ध कर देते हैं । भावना-प्रधान लोग इस प्रचार से प्रभावित हो जाते है तथा समाज में नई एवं गलत परिभाषाएं स्थापित हो जाती हैं, जिन्हें चुनौती देना कठिन होता है ।       ऐसे कालखण्ड में निष्कर्ष निकालने का आधार विचार मंथन का शून्य हो जाता है तथा प्रचार से ही निष्कर्ष निकालने की गलत परम्परा शुरू हो जाती है । देवी दुर्गा तथा श्रीराम ने यही कठिन चुनौती स्वीकार की तथा तत्कालीन सर्वोच्च शक्तिशाली दानव, जिनके सामने देवता भी नतमस्...

AAP the fuel of Swaraj

http://youtu.be/9OaTrv24RLU True definition of Swaraj is "decentralization of power...to the people". All three conditions need fulfilled to achieve swaraj. In an entity that has no power, swaraj isn't necessary (like a family). If power is decentralized to a lower level, it still isn't swaraj (union list & state list already exist in Indian constitution).   Swaraj in a political party is an oxymoron. Political dispensations need to understand the difference between Intraparty democracy & swaraj. Even if a political party fulfils all its constitutional prerequisites and conducts internal elections at all levels, Swaraj still doesn't descend to the people of india. The fact is that a party is a powerless unit in itself. Aam Aadmis of India formed a political party only because parties are a necessary evil in present day india and sadly no party wants to abdicate power in favour of people.  Hence we AAPians need to realize that we have taken it...

Independence Day 2014

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 ---- from perpetually  in-dependence  to  INDEPENDENCE           What started as a mutiny against a foreign regime in 1857 in Meerut by a sepoy martyr named Mangal Pandey culminated in the Independence of India and Pakistan 90 years and thousands of sacrifices later on 14/15 th August 1947. Those thousands of freedom fighters lay down their lives for a people who would be free to write their own destiny, their own ‘bhagya vidhaataas’ not dependent on anyone. Come 16 th August 2011, and a diminutive frail old man poses a benign question to the prevalent regime asking it to release the power it holds over its people by ushering in transparency. Anna’s Anshan and the regime’s Machiavellian response to it galvanized the nation and common men like you and me woke up to the fact that true independence still eluded India. India after over six decades still hadn’t attained the ideal state of people’s participati...

Tulsidas Jayanti

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संत गोस्वामी तुलसीदास की जन्म जयंती की हार्दिक शुभकामनाए गोस्वामी तुलसीदास [१४९७ - १६२३] एक महान कवि थे। अपने जीवनकाल में उन्होंने १२ ग्रन्थ लिखे। उन्हें संस्कृत विद्वान होने के साथ ही हिन्दी भाषा के प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ कवियों में एक माना जाता है। श्रीरामचरितमानस वाल्मीकि रामायण का प्रकारान्तर से ऐसा अवधी भाषान्तर है जिसमें कई कृतियों से महत्वपूर्ण सामग्री समाहित की गयी | रामचरितमानस को समस्त उत्तर भारत में बड़े भक्तिभाव से पढ़ा जाता है। इसके बाद विनय पत्रिका उनका एक अन्य महत्वपूर्ण काव्य है।  लगभग चार सौ वर्ष पूर्व तुलसीदास जी ने अपनी कृतियों की रचना की थी। आधुनिक प्रकाशन-सुविधाओं से रहित उस काल में भी तुलसीदास का काव्य जन-जन तक पहुँच चुका था। यह उनके कवि रूप में लोकप्रिय होने का प्रत्यक्ष प्रमाण है। मानस जैसे वृहद् ग्रन्थ को कण्ठस्थ करके सामान्य पढ़े लिखे लोग भी अपनी शुचिता एवं ज्ञान के लिए प्रसिद्ध होने लगे थे। रामचरितमानस तुलसीदास जी का सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रन्थ रहा है। उन्होंने अपनी रचनाओं के सम्बन्ध में कहीं कोई उल्लेख नहीं किया है, इसलिए प्रामाणिक र...

Euthanasia

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Euthanasia :: Death the Dearest.       The Supreme Court has recently called for a nationwide debate on euthanasia. Having seen more deaths from close quarters than most, and having been witness to such existential dilemmas in the past, i too am throwing my hat in the debating ring.      More than a decade ago i was faced with the terrifying moral dilemma of taking such a decision on behalf of a loved one whose life had reached terminal stage. In spite of best available medic al care by doctors, my loved one was deeply unconscious & life sustained purely on artificial support. Earlier, with full faculties intact and in a healthy state, the loved one had made it unequivocally clear to me & friends that since body is but a tool for conciousness to manifest itself, (like electricity & transmission wires) life would be meaningless without a synergy between the two. My loved one wanted a covenant from us that God forbid such a situation ar...

Badayun to Bangalore.... why is India rapists' haven ?

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---बढ़ते अपराध के  व्यूह से निजात कैसे ?      बदायूं से लेकर बेंगलोर तक पुनः बर्बरता का प्रदर्शन हुआ है । चाहे 6 वर्ष की शहरी अबोध कन्या हो या ग्रामीण महिला,  इन सब के साथ   क्रूरतापूर्ण दुष्कर्म  की घटनाएँ  भारत सहित विश्वभर में खबर बन रही है । इतनी की, बड़े बड़े राजनेता भी  कह रहे हैं  की समाज को आत्ममंथन की जरूरत है । ये लोग यह भी कह रहे हैं की सरकार ने अपराधों से और प्रभावी ढंग से निपटने के लिए कानून को मजबूत बनाने के कार्य को तेजी से आगे बढ़ाया है । मीडिया में चल रही लगातार बहस के दौरान भी भारत के बुद्धिजीवी कुछ ऐसी ही बातें करते तथा कड़ी से कड़ी सजा के हिमायती दिख रहे हैं  ।       टीवी एंकरों, राजनेताओं  की मानें तो पूरा समाज दोषी है, और बुद्धिजीवियों की माने तो हर दोषी को फांसी होनी चाहिए । इन दोनों की राय लागू  हो जाय तो भारत से मनुष्य प्रजाति डायनोसार के सामान लुप्त हो जायेगी । आश्चर्य है की भारत के  जिम्मेदार लोग यह भी नहीं जानते...

आप जैसा कोई मेरी जिन्दगी में आए

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     इ तिहास गवाह है कि कालखण्ड के कुछ पड़ाव ऐसे होते हैँ, जिसमें विचारों को क्रियारूप देना कालपुरुष की माँग बन  जाती है । ऐसे में क्रिया प्रारम्भ करने से पहले गम्भीर चिन्तन करना आवश्यक होता है, क्योंकि बिना सोचे समझे प्रारंभ की गई क्रिया अक्सर घातक होती है ।       सन 2011 में भारत के बुद्धिजीवियों के समक्ष कालपुरुष ने ऐसी ही चुनौती रखी । अनायास प्रारम्भ हुए जनलोकपाल आन्दोलन को भारत की जनता का आशातीत समर्थन मिल रहा था । लम्बे समय से चले आ रहे विचारकों के तर्क -की शासन व्यवस्था पर नागरिक समाज का दबाव स्वस्थ लोकतंत्र का प्रतीक है -मूर्त रूप लेने लग गए थे ।       प्रायः यह देखा गया है कि जब भी विचारकों के निष्कर्ष मूर्त्त रूप लेने लगतें हैं, तब बुद्धिजीवी वर्ग उसका विरोध प्रारम्भ करता है क्योँकि यदि सही निष्कर्ष मूर्त रूप ले लें, तो बुद्दिजीवियों की आजीविका ही खतरे में पड़  जाती है, बुद्धिजीवी तो हमेशा समस्या के विश्लेषण से ही आजीविका चलाते आये हैँ । यदि समस्य...

I FUEL SWARAJ

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 ---- I FUEL SWARAJ                  Thousands of years ago, the phrase SWARAJ was first propounded by sage Atri in Rgveda when he said ॥ व्यचिष्ठे बहुपाय्ये यतेमही स्वराज्ये ॥ Vyachishthe = universal franchise where all people have a right to participation. Bahupayye = whereby, the majority secures the right of minority. Yatemahi = let us all strive for. Swarajye = the ultimate objective of self-rule. In short, this Rgvedic verse extols thus: “Let Us All Strive For Swaraj Wherein All People Are Participators In Decision Making With A Magnanimous Outlook of Securing The Minority.”      This idea has been nurtured over millennium in the Indian subcontinent from Quetta to Kamrup including long phases during which Self-rule (Swaraj) was practiced as a governance model during the Buddhist age period   http://www.lokrajandolan.org/ancientindia....

-------- क्रान्ति 2014 ?

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​ --------   क्रान्ति 2014 ?         आज नव वर्ष है । अगले कुछ हफ़्तों में भारत आम चुनावों  के दौर से गुजरेगा । भारत का औसत व्यक्ति इन चुनावों में पहले के चुनावों से अधिक उत्सुक दिख रहा है । हर एक की उत्कट इच्छा है कि कुछ  नया हो । कई लोग इन चुनावों को क्रान्ति  के रूप में  परिभाषित कर रहे हैं । क्रान्ति होनी भी चाहिए । लम्बी जड़ता को क्रांतियां ही ध्वस्त कर सकती हैं । ऐसे में महत्वपूर्ण है कि क्रान्ति को समझा जाय ।       यह भ्रान्ति है कि क्रांतियाँ भौतिक होती हैं | क्रांतियाँ असल में मनुष्य के दिमाग में होती हैं, भले ही उसकी निष्पत्ति व्यापक रूप से भौतिक दृष्टिगोचर हो | जो क्रांतियों को गहराई से नहीं समझते  वे क्रान्ति के बाद की परिस्थिति देखकर उस क्रान्ति का आकलन करते हैं | अगर क्रान्ति के बाद का समाज पहले से बेहतर प्रतीत होता है तो क्रान्ति की शान में कसीदे पढ़े जाते हैं | इसके  विपरीत अगर क्रान्ति के बाद का समाज पहले से बदतर प्रतीत होता है तो क्रान्ति को टायं-टायं फिस्स मान लिया जाता है |  ...