Dashahara

     
दशहरा  महिषासुर या रावण के दमन का उत्सव नहीं है । यह बुरी शक्तियों की अच्छी शक्तियों का विजय का सूचक है । दशहरा अर्थात हमारे अंदर स्थित दस विकारों का दमन ।

     जब व्यक्ति में बुद्धि और भावना का संतुलन गडबड होकर किसी एक दिशा में में बढ़ने लगता है तब समाज पर इसका प्रभाव पड़ना निश्चित है । बुद्धि-प्रधान व्यक्ति समाज-संचालक और भावना प्रधान व्यक्ति संचालित  में आ जाते हैं । बुद्धि-प्रधान लोग प्रचार का सहारा लेकर समाज में असत्य को सत्य तथा सत्य को असत्य के सामान सिद्ध कर देते हैं । भावना-प्रधान लोग इस प्रचार से प्रभावित हो जाते है तथा समाज में नई एवं गलत परिभाषाएं स्थापित हो जाती हैं, जिन्हें चुनौती देना कठिन होता है । 

     ऐसे कालखण्ड में निष्कर्ष निकालने का आधार विचार मंथन का शून्य हो जाता है तथा प्रचार से ही निष्कर्ष निकालने की गलत परम्परा शुरू हो जाती है । देवी दुर्गा तथा श्रीराम ने यही कठिन चुनौती स्वीकार की तथा तत्कालीन सर्वोच्च शक्तिशाली दानव, जिनके सामने देवता भी नतमस्तक थे, उनका दमन किया तथा समाज को दुष्प्रचार से विमुक्त किया ।

     जो संकुचित दायरे से बाहर सोचते है, वे पावर (सत्ता) और स्ट्रेंथ (शक्ति) का भेद पहचानते हैं । अपना गुण  प्रकट करने का मौक़ा मिलता है यब शक्ति पैदा होती है, दूसरे के गुणों को रौंद देने से सत्ता मिलती है । 

     दुर्गा सप्तशती में वर्णन है की देव पहले महिषासुर से स्वयं लड़े, पर हार गए, इसीलिए दुर्गा की प्रार्थना हुई । देवी ने कहा, हरएक  की शक्ति मुझे मिलनी चाहिए । तब विष्णु ने सुदर्शन चक्र, शिव ने पाशुपतास्त्र, गणेश ने अपना अंकुश, इंद्र ने वज्र दिया । सबकी शक्ति इकट्ठा होती है, तभी भगवती का अवतरण होता है । 

     दुर्गा सामूहिक शक्ति है । उसके अनेक हाथ हैं । उन हाथों का योग है, वियोग नहीं । यही स्वस्थ समाज रचना का सिद्धांत है ।

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