Monday, February 18, 2013

Thakur Das Bang Obit


गांधीवाद का बंग भंग


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प्रसिद्ध गांधीवादी, स्वतंत्रता संघर्ष सेनानी तथा लोक स्वराज्य मंच के संस्थापक ठाकुर दास जी बंग का पिछले दिनो करीब पंचान्नवे वर्ष की उम्र मे निधन हो गया। श्री बंग के निधन से उस गांधीवादी पीढी मे कोई बचा नही दिखता जिसने गांधी जी के साथ रहकर स्वतंत्रता संघर्ष मे कोई अग्रणी भूमिका निभाई हो। ठाकुर दास बंग एक ऐसे गांधीवादी थे जो संगठन के ऊपर विचारों को महत्व देते थे। उन्होने गांधी के बाद विनोबा के कार्यो की गुण दोष के आधार पर समीक्षा की। ठाकुरदास बंग एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होने अनुशासन भी कभी नही तोड़ा और सिद्धान्त भी कभी नही छोड़ा।
गांधी जी संघर्ष शील रहे और विनोबा जी, गांधी भक्त। बंग जी न गांधी भक्त रहे, न विनोबा भक्त। विनोबा जी ने गांधी की शराब बंदी, गोहत्या बंदी, जैविक खेती, खादी, ग्रामोद्योग, ब्रम्हचर्य आदि को अधूरा कार्य मानकर इसके विस्तार में जीवन भर लगे रहे। बंग साहब राष्ट्रीय स्वराज्य को गांधी का अधूरा कार्य समझकर लोक स्वराज्य को पहला कार्य मानते थे। किन्तु बंग साहब के मन में कभी भी नेतृत्व की इच्छा नही रही। यही कारण है कि उन्होने लोक स्वराज्य के लिये विनोबा जी सहित अन्य साथियों को समझाने का तो काम किया किन्तु कभी अनुशासन की सीमा नही तोडी। सन चौहत्तर मे ज्योहीं जय प्रकाश जी ने लोक स्वराज्य की दिशा पकडी त्योही बंग जी जेपी के साथ हो लिये अैर अन्त तक रहे। सन सतहत्तर की सरकार के बाद भी जब नयी सरकार लोक स्वराज्य को भूल गई तो बंग जी दुखी रहे। जेपी और विनोबा के निधन के बाद बंग जी ने मनमोहन चौधरी सिद्धराज ढढ्ढा आदि के साथ मिलकर सन नब्बे के आस पास लोक स्वराज्य संघ बनाया। तत्काल ही रूढिवादी विनोबा भक्तों ने इस प्रयत्न का विरोध किया। बंग जी सिद्धराज जी आदि ने बहुत समझाया किन्तु सत्ता सुख भोगी लोगों ने एक न सुनी।
बंग जी पूरी तरह अनुशासनप्रिय भी थे। उन्होने लोक स्वराज्य संघ को भंग कर दिया। फिर भी बंग जी ने हार नही मानी। उन्होने पेटे जी तथा कुछ अन्य साथियो के साथ रामानुजगंज से लोक स्वराज्य संघर्ष की नींव रखी। बंग जी के इस प्रयत्न का पहला विरोध रामचंद्र जी राही की ओर से हुआ। बंग जी को मैने कई बार कहा कि सर्व सेवा संघ के नीचे के अधिकांष कार्यकर्ता आपके साथ है, हम सब लोग आपके साथ है, आप इन गांधीवादी सुविधाभोगी नेताओ का मोह छोडिये। किन्तु बंग जी हमेषा ही विष्वास दिलाते रहे  कि भले ही राही जी रामजी सिंह जी आदि न समझे किन्तु  देर सबेर अमरनाथ भाई कुमार प्रशान्त आदि लोक स्वराज्य की बात को समझेगें। बंग साहब ने दोनों को बहुत समझाया किन्तु दोनों ही नही समझना चाहते थे। कुमार प्रशान्त लोक स्वराज्य को भी समझते थे और बंग साहब को भी। किन्तु उनके मन में मेरे प्रति कुछ कटु भाव थे। दूसरी ओर अमरनाथ भाई सबकुछ समझते हुए भी कुमार प्रशान्त को छोड़ नही सकते थे। लोक स्वराज्य विरोधियों ने गंगा प्रसाद अग्रवाल को ढाल बनाया। गंगा प्रसाद जी एक अत्यन्त ही सज्जन व्यक्ति थे। वे समाज निर्माण के पूरी तरह पक्षधर थे। वे बंग साहब की लोक स्वराज्य की लाइन को दिल से ठीक नही मानते थे। लेकिन सारे चालाक गांधीवादियों ने गंगा प्रसाद जी को ढाल बनाया और बंग साहब द्वारा कई बार समझाने के बाद भी गंगा प्रसाद जी सहमत नही हुए। यहां तक कि सर्वोदय के पदाधिकारियों ने निर्णय करके बंग साहब पर सेवाग्राम आश्रम में रहकर लोक स्वराज्य की चर्चा पर प्रतिबंध लगा दिया। यह सब विवरण समय समय पर हमारे मुखपत्र ज्ञान तत्व मे छपता रहा है। तब हार थक कर बंग साहब ने सेवाग्राम आश्रम से बाहर एक बैठक करके सितम्बर 2007 में लोक स्वराज्य मंच की स्थापना की।
तीस जनवरी दो हजार आठ को अमरनाथ भाई के नेतृत्व मे राष्ट्रपति से मिलकर ज्ञापन देना तय हुआ और दो अक्टूबर दो हजार आठ से ठाकुरदास जी बंग के आमरण अनशन की योजना बनी तो सर्वोदय समाज मे हड़कंप मच गया। सुविधा भोगी गांधीवादियों ने बंग साहब को समझाया भी और धमकाया भी किन्तु बंग जी नही माने। दुर्गा प्रसाद जी, महावीर त्यागी, कृष्ण कुमार खन्ना, संतोष द्विवेदी, सहित बडी संख्या मे गांधीवादी तीस तारीख को दिल्ली मे जुट चुके थे। अमरनाथ भाई भी हमारे साथ थे ही किन्तु एकाएक किसी का फोन आया और अमरनाथ भाई ने राष्ट्रपति के पास जाने से इन्कार कर दिया। वे जंतर मंतर पर गये और भाषण भी दिये किन्तु उन्होने आंदोलन का नेतृत्व करने से इन्कार कर दिया। इस तरह लोक स्वराज्य संघर्ष के प्रयत्न की पीठ मे गांधीवादियो ने ही छुरा घोपकर एक इतिहास बना दिया। मै दिल्ली से लौट गया। बंग साहब का दिल टूट गया जो फिर कभी नही जुड़ा।
बाद मे सेवाग्राम मे बैठकर हम सबने समीक्षा की। मैने समीक्षा में बताया कि बंग साहब ने सुविधाभोगी गांधीवादियों पर विश्वास करके भूल की। यदि उन्होने कुछ साथियों का मोह छोड़कर जेपी का मार्ग पकड़ा होता तो सफलता निश्चित थी। बंग साहब ने भी महसूस किया। बाद में दुर्गा प्रसाद जी को बंग साहब ने यह काम सौपा किन्तु फिर यह काम खड़ा नही हो पाया। बंग जी का स्वास्थ लगातार बिगड़ता गया। मै पूरी तरह वानप्रस्थ में चला गया। फिर भी हम दोनों के मन मे एक छटपटाहट थी कि लोक स्वराज्य के लिये संघर्ष का क्या होगा। टीम अन्ना अरविन्द की विफलता के बाद तो यह चिन्ता और भी ज्यादा बढ गई। इस कार्य के लिये नयी रणनीति नई टीम बननी आवश्यक थी। हम लोगों ने बहुत विचार करने के बाद गांधीवादी नवयुवक सिद्धार्थ शर्मा को इस संघर्ष के लिये उपयुक्त माना। उन्हे इक्कीस सितम्बर दो हजार बारह को लोक स्वराज्य मंच का पूरा कार्यभार सौपकर मै मुक्त हो गया। दिसम्बर दो हजार बारह में ही दुर्गा प्रसाद जी से बैठकर चर्चा हुई कि बंग जी का स्वास्थ्य ठीक नही है। अतः हम उन्हे अन्तिम समय मे आश्वस्त करें कि उनका मिशन उनके सक्रिय रहते यदि नही पूरा हो सका तो इसका हम सबको खेद है किन्तु लोक स्वराज्य का कार्य बन्द नही हुआ है। अब सिद्धार्थ शर्मा को यह कार्य हम सौप रहे है। उस दिन दुर्गा प्रसाद जी तो बीमार पड़ने के कारण नही पहुंच पाये किन्तु मै और सिद्धार्थ जी गये और बंग जी को आश्ववस्त किया। मैने देखा कि सिद्धार्थ शर्मा जैसे परिचित गांधीवादी नवयुवक को सामने पाकर उन्हे परम संतोष का अनुभव हुआ। उन्होने विस्तृत चर्चा करते हुए शर्मा जी को आशीर्वाद दिया। उनकी मृत्यु के बाद उनके परिवार के लोगों ने बताया कि बंग साहब हमारे वापस होने के बाद बीच बीच मे इस चर्चा को दुहराते थे।
आज बंग साहब हमारे बीच नही है किन्तु उनके विचार और उनकी प्रेरणा सदैव हमारे साथ है। सुविधाभोगी गांधीवादियो से तो हमारी कोई शिकायत नही है, किन्तु अमरनाथ भाई, कुमार प्रशान्त जैसे मित्रों को तो उत्तर देना चाहिये कि उन्होने ऐसा क्यों किया? उनके कुछ गांधीवादी मित्रों ने भले ही उनके विचारों को न समझा हो किन्तु हम सबने तो समझा है। बंग साहब के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम सब मिलकर उस अधूरे कार्य को पूरा कर दिखावे जिसके लिये वे अन्त तक चिन्तित रहे।

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