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Covid 19

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कोरोना : तांडव इन  स्लो मोशन   https://www.satyahindi.com/india/coronavirus-death-in-slow-motion-109959.html       पूरे विश्व में कोरोना ने तांडव मचा रखा है जिससे भारत भी अछूता नहीं है।  कोरोना अभिशाप है, वरदान है, या चेतावनी, इस निष्कर्ष पर पहुंचने का भी प्रयास जारी है।  इस कोरोना काण्ड के ११ प्रमुख बिंदु हैं :-  १) कोरोना का उद्भव २) कोरोना का चरित्र ३) कोरोना रोग ४) कोरोना का व्यक्तिगत प्रभाव ५) कोरोना का सामाजिक प्रभाव ६) कोरोना का आर्थिक  प्रभाव  ७) कोरोना का सामरिक प्रभाव ८) कोरोना पर भारत की रणनीति  ९) कोरोना से निदान १०) कोरोना प्रबंध ११) कोरोनोत्तर भारत  १) कोरोना का उद्भव : कोरोना वायरस ज़ूनोटिक श्रेणी में आता है, अर्थात ऐसा विषाणु जो प्राणी प्रजातियों को लांघता हो।  अब यह प्रायः प्रमाणित हो गया है की दिसंबर २०१९ के आसपास चीन के वूहान शहर के जीवित प्राणियों के बाजार से इस वायरस ने पहले पहल किसी ...

Ayodhya Judgement Ideal

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लोकप्रिय  राम मंदिर से लोकहितकारी रामराज्य तक का सफर........ https://www.satyahindi.com/ayodhya-special/supreme-court-verdict-on-ram-mandir-ayodhya-issue-1-105628.html       भारतीय संस्कृति को समझना हो तो प्रकृति, विकृति तथा संस्कृति -इन तीनों शब्दों का अर्थ समझना होगा। भूख लगने पर खाना प्रकृति है।  पेट भरा होने के  बावजूद  स्वादिष्ट मिठाई खा लेना विकृति  बन जाती  है।  भूख हो, खाना भी हो, परन्तु एकादशी, रमजान, या उपवास के संकल्प के चलते नहीं खाना  ही  संस्कृति होती है।  तात्पर्य यह की संयम, विवेक और नैतिकता की भित्ति पर खड़े सद्विचार ही संस्कृति होते हैं।         भारतीय संस्कृति तीन कालखंडों से गुजरते हुए आज चौथे कालखंड में है।  पहला कालखंड ३ से ५ हजार वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुआ वैदिक काल रहा जो मूलतः प्रवृत्तिवाद तथा प्रकृति पूजा प्रमुख रही, जिसमें बाद में यज्ञहिंसा के अपभ्रंश के सुधार के रूप में, बुद्ध, महावीर तथा उपनिषद आये।   दूसरा काल उपनिषदों का निवृत्तिवादी काल...

LS 2019 : Begusarai

बेबाक बेगूसराय से  सिद्धार्थ शर्मा\ 14 Apr, 2019 https://www.satyahindi.com/states/kanhaiya-kumar-begusarai-giriraj-singh-102124.html ख़म ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़, मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है !! बेगूसराय! बुद्ध, महावीर की विहारस्थली, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की धरती, गंगा की कृपा से भारत की सबसे उर्वरा भूमि में से एक है। स्वतन्त्र भारत के शुरुआती दौर के औद्योगीकरण का प्रयोग क्षेत्र, वर्षा ऋतु में महीनों तक बाढ़ में डूबे दुनिया से कटे दियारे, बड़े-बड़े जमींदारों से लेकर भूमिहीन खेतिहर मजदूरों का हुजूम, इंटरनेशनल स्कूल चलानेवाले धनाढ्यों से लेकर औद्योगिक कचरा उठाने वाले जीविकोपार्जियों का जमघट भी बेगूसराय ही है। गर्म मिजाज, कुटीर शस्त्र उद्योग में कुख्यात, सामंतवाद का गढ़, दबंगई, रंगदारी - यह सब मिलकर बेगूसराय है और यह असली भारत का जीवंत प्रतीक है। इस लोकसभा चुनाव में भारत भर की नज़रें बेगूसराय पर हैं। क्योंकि बेगूसराय का चुनाव पिछले 5 साल के बीजेपी के ‘राष्ट्रद्रोही बनाम राष्ट्रप्रेमी’ के बाइनरी की जनस्वीकृति का बैरोमीटर बनेगा। ए...

LS 2019 : Predicted correctly

2019 : सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बनाम जातीय समीकरण का चुनाव    सिद्धार्थ शर्मा 20 May, 2019   https://www.satyahindi.com/lok-sabha-election-2019/2019-loksabha-election-bjp-congress-102645.html लोकसभा चुनाव के सभी चरण समाप्त हो गए हैं और अब नतीजों का इंतजार है। इस चुनाव में बीजेपी स्पष्ट रूप से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को राष्ट्रीयता का जामा पहना कर मैदान में उतरी तथा विपक्ष स्पष्ट रूप से जातीय समीकरण को संघीय व्यवस्था का मुखौटा पहनाकर। औसत भारतीय क्योंकि सज्जन तथा मासूम होता है, तो मतदान या तो राष्ट्रवाद अर्थात अधिक केन्द्रीकरण के पक्ष में हुआ या संघीय ढाँचा अर्थात अधिक विकेन्द्रीकरण के पक्ष में। बीजेपी ने भारतीयता का हवाला दिया तो विपक्ष ने क्षेत्रीयता का। सनद रहे कि हर नागरिक भारतीय होने के साथ-साथ समानांतर रूप से क्षेत्रीय भी होता है, क्योंकि वह भारत में भी रहता है, तथा किसी क्षेत्र में भी। भावनात्मक राष्ट्रवाद बनाम व्यावहारिक क्षेत्रवाद की बाइनरी में लोकमत का रुझान दोनों में से किसी भी ओर निर्णायक रूप से  झुकने की पूरी संभावना रहती है। ताज़ा ख़बरें भारतीय...

Hindi Compulsory ?

क्या डंडे के ज़ोर से हिंदी की गौरवगाथा गाई जाएगी? सिद्धार्थ शर्मा Jan, 2019 ख़बर है कि केंद्र सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय की 'नई शिक्षा नीति' पर बनी कस्तूरीरंगन समिति ने देश भर में कक्षा आठ तक हिंदी भाषा को अनिवार्य रूप से पढ़ाने की सिफ़ारिश की है। इस पहल को जानने के लिए इस विषय का लंबा इतिहास भी जानना ठीक होगा। भारत का प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन जब 1857 में घटित हुआ तब ब्रिटिश हुकूमत ने उस समय दक्कन के राजाओं से सेना मंगवाकर क्रांतिकारियों को हराया था। सोचने वाली बात है कि अपने ही देश के एक क्षेत्र के सिपाही ने देश के दूसरे क्षेत्र के सिपाहियों से युद्ध क्यों किया होगा? स्वतंत्रता पूर्व अखंड भारत में हज़ार से अधिक बोलियाँ थीं। 1857 में यह स्वाभाविक ही था कि दक्षिण की 'भारतीय' सेना ने उत्तर की 'भारतीय' सेना को उस अपनत्व के नज़रिये से नहीं देखा और अंग्रेज़ों ने इसका लाभ उठा कर 90 साल से अधिक समय तक राज किया। इस सांस्कृतिक विरोधाभास को सबसे पहले गाँधी ने आँका जब उन्होंने 1915 में अफ़्रीका से लौटकर भारत का सम्पूर्ण भ्रमण किया। उन्होंने पाया कि दक्षिण भा...

Why RSS fears Gandhi

आरएसएस आज भी महात्मा गाँधी से थर्राता क्यों है? सिद्धार्थ शर्मा 31 Jan, 2019 https://www.satyahindi.com/opinion/mahatma-gandhi-ideology-haunts-rss-101218.html चेतना वाले हर जीव, और ख़ासकर मानव का सहज स्वभाव लगातार ज़्यादा से ज़्यादा आज़ादी पाने का होता है। बौद्धिक जमात इसे प्राप्त करने के लिए अहिंसक विधायी उपाय का सहारा लेती है तो भावना प्रधान जमात इसे हासिल करने के लिए हिंसक, बेढब प्रयास करती है। गाँधी के सपनों का आदर्श समाज न्याय प्रधान था और समाज निर्माण के उनके प्रयास बौद्धिक, अहिंसक और विधायी रहे। दूसरी तरफ़ संघ के सपनों का आदर्श समाज अपनत्व प्रधान था तथा उसके साधन भावनात्मक, उग्र तथा सांगठनिक रहे। आरएसएस एक सांप्रदायिक संगठन है- सांप्रदायिक यानी किसी ख़ास उपासना पद्धति पर जोर, संगठन यानी सत्ता प्राप्त करने का इच्छुक समूह। गाँधी सामाजिक संत थे- समाज यानी ख़ुद से निर्मित दीर्घकालिक नियमों से प्रतिबद्ध व्यक्तियों का समूह, संत यानी नैतिक बल के बूते लोगों को मनवाने वाला। गाँधी भारत की प्राचीन ऋषि परंपरा के नवीनतम आइकन रहे तो संघ आधुनिक पाश्चात्य राज्यसत्ता का भारतीय संस...

LS 2019 : BJP banks on Nationalism

बीजेपी को विकास नहीं राष्ट्रवाद का सहारा सिद्धार्थ शर्मा 12 Mar, 2019 https://www.satyahindi.com/lok-sabha-election-2019/bjp-loksabha-election-2019-will-fight-on-nationalism-101711.html उघरहिं अंत न होई निबाहू, श्री रामचरितमानस में लिखी इस पंक्ति के माध्यम से गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि ठग को साधु के वेश में देखकर, वेश के प्रताप से जग कुछ समय तक तो पूजता है, पर अंत में ठग की कलई खुल ही जाती है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भारत की जनता के सामने सभी राजनीतिक दल अपने आप को साधु और अन्य दलों को ठग के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। ऐसे में जनता ठग और साधु में भेद कैसे करेगी, लोकसभा चुनाव के नतीजे यही बताने वाले हैं। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी+26 दलों का एनडीए गठबंधन है, तो दूसरी तरफ़ क्षेत्रीय दलों का यूपीए गठबंधन जिसमें कांग्रेस भी शामिल है। कुछ राज्यों में अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है कि सीधे-सीधे एनडीए बनाम यूपीए की टक्कर होगी या एनडीए के खिलाफ़ प्रतिपक्ष बिख़रा रहेगा। पुलवामा हमले से मिली संजीवनी पुलवामा प्रकरण से पहले मोदी मैज़िक निश्चित रूप से ...