Posts

Naxalism..martyr Mahendra Karma

Image
___शहीद महेन्द्र कर्मा http://visfot.com/index.php/current-affairs/9275-shaheed-mahendra-karma-1305.html छत्तीसगढी माटी के सपूत आदिवासी महेन्द्र कर्मा शहीद हो गये। बहुत वर्षो के बाद हमें किसी को शहीद कहने का अवसर प्राप्त हुआ है। वैसे तो अनेकों को शहीद कह दिया जाता है जो सत्ता के दांव पेंच में मारे जाते हैं या किसी प्रकार की नौकरी करते हुए। लेकिन महेन्द्र कर्मा की गिनती वैसे शहीदों में नही है। केवल छत्तीसगढ़ के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए महेन्द्र कर्मा माओवाद से लड़नेवाले ऐसे शहीद हैं जिनकी शहादत जाया नहीं जानी चाहिए। महेन्द्र कर्मा छत्तीसगढ के अति पिछड़े बस्तर क्षेत्र के आदिवासी परिवार के सदस्य थे। प्रारंभिक राजनीति की शुरूआत उन्होंने कम्युनिष्ट पार्टी के जरिए शुरू की तथा चुनाव भी लड़ा। शीघ्र ही उन्हें आभास हुआ कि कम्युनिस्ट पार्टी नक्सलवादियों से सहानुभूति रखती है। वे मानते थे कि नक्सलवाद पूरी तरह सत्ता संघर्ष है जो साथ-साथ हिंसक भी है। वे मानते थे कि जिसे नक्सलवाद कहा जाता है वह माओवाद है, नक्सलवाद नहीं। इसके बाद वे कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गये। छत्तीसगढ...

IPL Scandal

Image
---- आईपीएल विवाद       आईपीएल वर्तमान में घोर विवादों में घिरी हुई है । खिलाड़ी, पूर्व खिलाड़ी, अम्पायर, सटोरिये , फ़िल्मी हस्तियाँ, अंडरवर्ल्ड, खिलाड़ियों की पत्नियों से लेकर टीम के मालिक, दामाद सब की लिप्तता धीरे-धीरे साफ़ होते जा रहा है । भारत का हर नागरिक यह भी समझ रहा है की इतने सारे  किरदारों के इस नाटक के सूत्रधार क्रिकेट के जो आका बीसीसीआई को चलाते हैं वे राजनेता तो अवश्य ही इसके लाभार्थी हैं । और मजे की बात यह की भारतीय राजनीति के सभी प्रमुख दलों की इस क्रिकेट संचालन में भागीदारी है, चाहे कांग्रेस हो, भाजपा हो, राकांपा हो, राजद हो । और हो भी क्यों ना ? आखिर वर्तमान भारत में क्रिकेट सबसे अधिक लोकप्रिय अर्थात दुधारू देवता है । भला लाशों से पटे कुरुक्षेत्र पर गिद्ध नहीं मंडराएंगे तो कहाँ मंडराएंगे ?       आईपीएल की स्थापना भी तो आखिर सट्टेबाजी करने हेतु ही हुई थी । सन 2000 के आसपास क्रिकेट जगत में अंतर्राष्ट्रीय सट्टेबाजी का पर्दाफ़ाश हुआ जब दक्षिण अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, पा...

India.....towards solutions

Image
भारत- समस्या से समाधान की  ओर  ........      1980 दशक में भारत का सबसे बड़ा घोटाला 'बोफोर्स' प्रकाश में आया | मूल्य था 64 करोड़ रुपये | चौथाई सदी बाद 'स्पेक्ट्रम' घोटाला सामने आया | मूल्य हुआ 164 हजार करोड़ रुपये | यानी 2500 गुना से अधिक की मूल्यवृद्धि | इन पच्चीस वर्षों में भारत में मुद्रास्फिति, रुपये का अवमूल्यन, मूल्यवृद्धि आदि को समेटकर भी किसी भी वस्तु का दाम 2500 गुना नही बढ़ा है | चाहे वह सोना हो, चांदी हो, दलहन हो, तिलहन हो, कपड़ा हो, वेतन हो, चाहे सबसे महंगी जमीन ही क्यों न हो | स्पष्ट है की भ्रष्टाचार बाक़ी विषयों की तुलना में जामितीय अनुपात में बढ़ रहा है | इन पच्चीस वर्षों में सत्ताएं बदली, लोग बदले, नेता बदले, या यों कहें की एक पूरी पीढी ही बदल गई | इस बीच भारत में मध्यममार्गी, वामपंथी, राष्ट्रवादी और अलावा इनके हर तरह के गठबंधन ने सत्ता संभाली | पर भ्रष्टाचार न बदला न ही थमा |      आज कोबरापोस्ट ने खुलासा किया है भारत के अधिकाँश सरकारी बैंक एवं बीमा कम्पनियां भी काले धन को उजाला करने के धोबीघाट भर हैं ।  हा...

Defining DEMOCRACY

Image
Defining DEMOCRACY The term Democracy  originates from the  Greek  word  dēmokratía.    It means "rule of the people" and not "rule by representatives" as generally perceived.  The definition implies that democracy is a system far above individuals; in fact it is collective in nature. And the key word for any collective exercise is participation. In ancient India, during Buddha’s time, such village republics existed aplenty where periodic local meetings took place in which ALL people of a locality took policy decisions. Thereafter, India went through nearly a millennium of slavery by various foreign civilizations until it gained independence in 1947. In this interim period, world over and especially in Europe and America, renaissance happened resulting in liberal thoughts taking center stage. The impact of it was that in such places democracies took root and flourished. These democracies were more or less akin to the ancient Ind...

LITERATURE

Image
---साहित्य.......समाज      सामान्यतः ऐसी मान्यता है की साहित्य समाज का दर्पण है । यदि इस तर्क तो मना जाय तो यह साबित होता है की साहित्य का अपना कोई स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है । क्योंकि दर्पण तब तक उपयोगहीन होता है जब तक उसपर कोई बाह्य आकृति का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ता । साहित्य का शाब्दिक अर्थ होता है -समाज के सहित चलनेवाला । ऋग्वेद का स्तोत्र है "यावद ब्रह्म विष्ठितं तावति वाक्" अर्थात वाणी की व्यापकता ब्रह्म की व्यापकता के सामान है । वाणी की शक्ति ही साहित्य है ।       विश्व को तीन शक्तियां संचालित करती हैं । पहली शक्ति विज्ञान की है, जो इसे रूप देती है । दूसरी शक्ति अध्यात्म की है जो जीवन को आकार देती है, और तीसरी शक्ति साहित्य की है जो दुनिया को समयोचित मार्गदर्शन करती रहती है । जब शांति की आवश्यकता हो तो शांति, आशा की जरूरत हो तो आशा, उत्साह की मांग हो तो उत्साह तथा क्रांति के समय क्रांति ।       वर्तमान में उपासना-प्रधान धर्म तथा संकुचित-राजनीति के दिन लद गए हैं । अपने समय में इन दोनों ने समाज को जोड़ने क...

Can Crime be controlled India ?

Image
--- भारत, बढ़ते अपराध  एवं भ्रामक समाधानों के व्यूह में  दिल्ली में पुनः बर्बरता का प्रदर्शन हुआ है । पांच वर्ष की अबोध कन्या के साथ क्रूरतापूर्ण दुष्कर्म  की घटना भारत सहित विश्वभर में खबर बन गयी है । इतनी की प्रधानमन्त्री ने भी वक्तव्य दे दिया है की समाज को आत्ममंथन की जरूरत है । उन्होंने यह भी कहा की सरकार ने अपराधों से और प्रभावी ढंग से निपटने के लिए कानून को मजबूत बनाने के कार्य को तेजी से आगे बढ़ाया है । मीडिया में चल रही लगातार बहस के दौरान भी भारत के बुद्धिजीवी कुछ ऐसी ही बातें करते तथा कड़ी से कड़ी सजा के हिमायती दिख रहे हैं  ।  प्रधानमंत्री की मानें तो पूरा समाज दोषी है, और बुद्धिजीवियों की माने तो हर दोषी को फांसी होनी चाहिए । इन दोनों की राय लागू  हो जाय  तो भारत से मनुष्य प्रजाति डायनोसार के सामान लुप्त हो जायेगी । आश्चर्य है की भारत के  जिम्मेदार लोग यह भी नहीं जानते की समाज में अपराधियों की संख्या 2% से भी कम होती है, तथा ऐसे अपराधी तत्वों से शेष 98% सज्जनों को सुरक्षा प्रदान करने हेतु ही प...

Rahul Gandhi, Congress & the Truth of "Power to a Billion People"

Image
कांग्रेस, राहुल गांधी -और  पावर टु ए बिलियन पीपल का सच       कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भारतीय उद्योग संघ की सभा में यह  कहकर सबको चौंका दिया की भारत की समस्याओं का समाधान व्यक्तियों से नहीं बल्कि एक नई व्यवस्था के माध्यम से संभव है जिसमें सत्ता सीधे जनता के पास हो । उन्होंने जो वाक्य का प्रयोग किया वह दिलचस्प है " पावर टु ए बिलियन पीपल" ।       प्रश्न उठता  है की क्या यह सिद्धांत भारत में पहली बार बाँचा गया है ? गांधी का "हिन्द स्वराज" हो, जयप्रकाश नारायण का "सत्ता के उल्टे  पिरामिड" को सीधा करना हो, सर्वोदयी प्रो० ठाकुर दास बंग द्वारा प्रणीत "लोकस्वराज " हो, अन्ना हजारे की "जनसंसद सर्वोच्च" हो, या हाल ही में गठित आम आदमी पार्टी की "स्वराज" अवधारणा, पिछले 66 वर्षों से "सत्ता सीधे जनता के हाथों में" का सिद्धांत तो हमेशा भारत में उठता ही रहा, भले  अलग-अलग कालखंडों में उसे मिले जनसमर्थन के अनुपात  में अंतर रहा हो ।       सवाल उठता है की कांग्रेस आज यह नारा क्यों बुल...