कांग्रेस, राहुल गांधी -और
पावर टु ए बिलियन पीपल का सच
पावर टु ए बिलियन पीपल का सच
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भारतीय उद्योग संघ की सभा में यह कहकर सबको चौंका दिया की भारत की समस्याओं का समाधान व्यक्तियों से नहीं बल्कि एक नई व्यवस्था के माध्यम से संभव है जिसमें सत्ता सीधे जनता के पास हो । उन्होंने जो वाक्य का प्रयोग किया वह दिलचस्प है " पावर टु ए बिलियन पीपल" ।
प्रश्न उठता है की क्या यह सिद्धांत भारत में पहली बार बाँचा गया है ? गांधी का "हिन्द स्वराज" हो, जयप्रकाश नारायण का "सत्ता के उल्टे पिरामिड" को सीधा करना हो, सर्वोदयी प्रो० ठाकुर दास बंग द्वारा प्रणीत "लोकस्वराज " हो, अन्ना हजारे की "जनसंसद सर्वोच्च" हो, या हाल ही में गठित आम आदमी पार्टी की "स्वराज" अवधारणा, पिछले 66 वर्षों से "सत्ता सीधे जनता के हाथों में" का सिद्धांत तो हमेशा भारत में उठता ही रहा, भले अलग-अलग कालखंडों में उसे मिले जनसमर्थन के अनुपात में अंतर रहा हो ।
सवाल उठता है की कांग्रेस आज यह नारा क्यों बुलंद कर रही है ? स्वतन्त्र भारत में 3/4 काल तो कांग्रेस ही सत्ता में रही । तो उसने अब तक इस नारे को कानूनी जामा क्यों नहीं पहनाया ? कांग्रेस में भाजपा से अधिक कुशाग्र रणनीतिकार हैं । आन्दोलन अन्ना-अरविन्द-आमआदमी को मिल रहे आशातीत जनसमर्थन से कांग्रेस कदाचित इस निर्णय पर पंहुंच गयी है की अगला आम-चुनाव विकास, करिश्माई व्यक्तित्व, भ्रष्टाचार, महंगाई आदि के मुद्दों पर नहीं बल्कि "लोकतंत्र" की असली परिभाषा के मुद्दे पर लड़ा जाएगा । क्योंकि भारत का आम नागरिक अब "प्रतिनिधि लोकतंत्र" के छलावे और असली लोकतंत्र रूपी "लोक-स्वराज" के बीच के अंतर को स्पष्ट समझ रहा है और उसने स्वराज की मंजिल की और कूच कर दिया है ।
भाजपा के मुकाबले कांग्रेस इस जन-स्खलन को भांप चुकी है और आम आदमी को उस मंजिल से भटकाने हेतु आश्वासन का धोखा देने की पूरी योजना बना रही है । इसीलिए तो उसने अन्ना-अरविन्द-आमआदमी के लोक-स्वराज सिद्धांत को हाइजैक कर लिया है ।
इसका कारण यह है की अब अगले आम-चुनाव में स्वतन्त्र भारत में पहली बार "लोक" एवं "तंत्र" के बीच स्पष्ट ध्रुवीकरण होगा और ऐसे स्पष्ट ध्रुवीकरण की स्थिति में तंत्र का लोक के हाथों परास्त होना तय है । बस, इसी ध्रुवीकरण को टालने के लिए ही कांग्रेस स्वराज या सहभागी लोकतंत्र के मूलमंत्र पावर टु ए बिलियन पीपल को अपना कहकर परोसने की फिराक में है ।
लोक-स्वराज के हिमायती सभी व्यक्तियों, समूहों, राजनीतिक दलों को मिलकर अब कांग्रेस को खुली चुनौती दे देनी चाहिए की जब पावर टु ए बिलियन पीपल सभी समस्याओं का समाधान है, तो कांग्रेस अगले चुनावों के इंतज़ार में क्यों है ? क्यों नहीं कांग्रेस की मौजूदा सरकार लोक-स्वराज क़ानून पारित कर दे ताकि स्वराज-सेनानी सभी समूह, व्यक्ति, दल स्वराज-संघर्ष छोड़ अपने-अपने वैयक्तिक जीविकोपार्जन में लौट सकें ।
लोक-स्वराज रूपी उगते सूरज को नारा रूपी काली पट्टी से भारत के लोक की आँख पर बांधने के कांग्रेस के इस प्रयास को अंकुरित होने से पहले ही नोचना होगा, तभी "लोक" v/s "तंत्र" का ध्रुवीकरण "कालपुरुष 2014" की मांग बना रहेगा ।
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