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Showing posts from October, 2019

LS 2019 : Begusarai

बेबाक बेगूसराय से  सिद्धार्थ शर्मा\ 14 Apr, 2019 https://www.satyahindi.com/states/kanhaiya-kumar-begusarai-giriraj-singh-102124.html ख़म ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पाँव उखड़, मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है !! बेगूसराय! बुद्ध, महावीर की विहारस्थली, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की धरती, गंगा की कृपा से भारत की सबसे उर्वरा भूमि में से एक है। स्वतन्त्र भारत के शुरुआती दौर के औद्योगीकरण का प्रयोग क्षेत्र, वर्षा ऋतु में महीनों तक बाढ़ में डूबे दुनिया से कटे दियारे, बड़े-बड़े जमींदारों से लेकर भूमिहीन खेतिहर मजदूरों का हुजूम, इंटरनेशनल स्कूल चलानेवाले धनाढ्यों से लेकर औद्योगिक कचरा उठाने वाले जीविकोपार्जियों का जमघट भी बेगूसराय ही है। गर्म मिजाज, कुटीर शस्त्र उद्योग में कुख्यात, सामंतवाद का गढ़, दबंगई, रंगदारी - यह सब मिलकर बेगूसराय है और यह असली भारत का जीवंत प्रतीक है। इस लोकसभा चुनाव में भारत भर की नज़रें बेगूसराय पर हैं। क्योंकि बेगूसराय का चुनाव पिछले 5 साल के बीजेपी के ‘राष्ट्रद्रोही बनाम राष्ट्रप्रेमी’ के बाइनरी की जनस्वीकृति का बैरोमीटर बनेगा। ए...

LS 2019 : Predicted correctly

2019 : सांप्रदायिक ध्रुवीकरण बनाम जातीय समीकरण का चुनाव    सिद्धार्थ शर्मा 20 May, 2019   https://www.satyahindi.com/lok-sabha-election-2019/2019-loksabha-election-bjp-congress-102645.html लोकसभा चुनाव के सभी चरण समाप्त हो गए हैं और अब नतीजों का इंतजार है। इस चुनाव में बीजेपी स्पष्ट रूप से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को राष्ट्रीयता का जामा पहना कर मैदान में उतरी तथा विपक्ष स्पष्ट रूप से जातीय समीकरण को संघीय व्यवस्था का मुखौटा पहनाकर। औसत भारतीय क्योंकि सज्जन तथा मासूम होता है, तो मतदान या तो राष्ट्रवाद अर्थात अधिक केन्द्रीकरण के पक्ष में हुआ या संघीय ढाँचा अर्थात अधिक विकेन्द्रीकरण के पक्ष में। बीजेपी ने भारतीयता का हवाला दिया तो विपक्ष ने क्षेत्रीयता का। सनद रहे कि हर नागरिक भारतीय होने के साथ-साथ समानांतर रूप से क्षेत्रीय भी होता है, क्योंकि वह भारत में भी रहता है, तथा किसी क्षेत्र में भी। भावनात्मक राष्ट्रवाद बनाम व्यावहारिक क्षेत्रवाद की बाइनरी में लोकमत का रुझान दोनों में से किसी भी ओर निर्णायक रूप से  झुकने की पूरी संभावना रहती है। ताज़ा ख़बरें भारतीय...

Hindi Compulsory ?

क्या डंडे के ज़ोर से हिंदी की गौरवगाथा गाई जाएगी? सिद्धार्थ शर्मा Jan, 2019 ख़बर है कि केंद्र सरकार के मानव संसाधन मंत्रालय की 'नई शिक्षा नीति' पर बनी कस्तूरीरंगन समिति ने देश भर में कक्षा आठ तक हिंदी भाषा को अनिवार्य रूप से पढ़ाने की सिफ़ारिश की है। इस पहल को जानने के लिए इस विषय का लंबा इतिहास भी जानना ठीक होगा। भारत का प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन जब 1857 में घटित हुआ तब ब्रिटिश हुकूमत ने उस समय दक्कन के राजाओं से सेना मंगवाकर क्रांतिकारियों को हराया था। सोचने वाली बात है कि अपने ही देश के एक क्षेत्र के सिपाही ने देश के दूसरे क्षेत्र के सिपाहियों से युद्ध क्यों किया होगा? स्वतंत्रता पूर्व अखंड भारत में हज़ार से अधिक बोलियाँ थीं। 1857 में यह स्वाभाविक ही था कि दक्षिण की 'भारतीय' सेना ने उत्तर की 'भारतीय' सेना को उस अपनत्व के नज़रिये से नहीं देखा और अंग्रेज़ों ने इसका लाभ उठा कर 90 साल से अधिक समय तक राज किया। इस सांस्कृतिक विरोधाभास को सबसे पहले गाँधी ने आँका जब उन्होंने 1915 में अफ़्रीका से लौटकर भारत का सम्पूर्ण भ्रमण किया। उन्होंने पाया कि दक्षिण भा...

Why RSS fears Gandhi

आरएसएस आज भी महात्मा गाँधी से थर्राता क्यों है? सिद्धार्थ शर्मा 31 Jan, 2019 https://www.satyahindi.com/opinion/mahatma-gandhi-ideology-haunts-rss-101218.html चेतना वाले हर जीव, और ख़ासकर मानव का सहज स्वभाव लगातार ज़्यादा से ज़्यादा आज़ादी पाने का होता है। बौद्धिक जमात इसे प्राप्त करने के लिए अहिंसक विधायी उपाय का सहारा लेती है तो भावना प्रधान जमात इसे हासिल करने के लिए हिंसक, बेढब प्रयास करती है। गाँधी के सपनों का आदर्श समाज न्याय प्रधान था और समाज निर्माण के उनके प्रयास बौद्धिक, अहिंसक और विधायी रहे। दूसरी तरफ़ संघ के सपनों का आदर्श समाज अपनत्व प्रधान था तथा उसके साधन भावनात्मक, उग्र तथा सांगठनिक रहे। आरएसएस एक सांप्रदायिक संगठन है- सांप्रदायिक यानी किसी ख़ास उपासना पद्धति पर जोर, संगठन यानी सत्ता प्राप्त करने का इच्छुक समूह। गाँधी सामाजिक संत थे- समाज यानी ख़ुद से निर्मित दीर्घकालिक नियमों से प्रतिबद्ध व्यक्तियों का समूह, संत यानी नैतिक बल के बूते लोगों को मनवाने वाला। गाँधी भारत की प्राचीन ऋषि परंपरा के नवीनतम आइकन रहे तो संघ आधुनिक पाश्चात्य राज्यसत्ता का भारतीय संस...

LS 2019 : BJP banks on Nationalism

बीजेपी को विकास नहीं राष्ट्रवाद का सहारा सिद्धार्थ शर्मा 12 Mar, 2019 https://www.satyahindi.com/lok-sabha-election-2019/bjp-loksabha-election-2019-will-fight-on-nationalism-101711.html उघरहिं अंत न होई निबाहू, श्री रामचरितमानस में लिखी इस पंक्ति के माध्यम से गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि ठग को साधु के वेश में देखकर, वेश के प्रताप से जग कुछ समय तक तो पूजता है, पर अंत में ठग की कलई खुल ही जाती है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भारत की जनता के सामने सभी राजनीतिक दल अपने आप को साधु और अन्य दलों को ठग के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। ऐसे में जनता ठग और साधु में भेद कैसे करेगी, लोकसभा चुनाव के नतीजे यही बताने वाले हैं। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी+26 दलों का एनडीए गठबंधन है, तो दूसरी तरफ़ क्षेत्रीय दलों का यूपीए गठबंधन जिसमें कांग्रेस भी शामिल है। कुछ राज्यों में अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है कि सीधे-सीधे एनडीए बनाम यूपीए की टक्कर होगी या एनडीए के खिलाफ़ प्रतिपक्ष बिख़रा रहेगा। पुलवामा हमले से मिली संजीवनी पुलवामा प्रकरण से पहले मोदी मैज़िक निश्चित रूप से ...

2019 LS Elections : Karnataka

कर्नाटक में राष्ट्रवाद बनाम संघीय व्यवस्था के बीच का चुनाव सिद्धार्थ शर्मा 12 Apr, 2019 https://www.satyahindi.com/karnataka/karnataka-loksabha-election-strategy-bjp-congress-jds-102096.html कर्नाटक में 2019 के लोकसभा चुनाव दो विचारधाराओं के बीच होगा। एक तरफ़ बीजेपी राष्ट्रवाद के नाम पर धार्मिक ध्रुवीकरण के आधार पर वोट की राजनीति करेगी तो दूसरी तरफ़ संघीय व्यवस्था के नाम पर विपक्ष एकजुट होकर अपनी राजनीति जनता के सामने परोसेगा। एक तरफ़ मोदी जी के नेतृत्व में बीजेपी कह रही है कि भारत की सबसे बड़ी वर्तमान समस्या पाकिस्तान, मुसलमान आदि हैं, जिसे सशक्त राष्ट्रवाद के ज़रिए ही निपटा जा सकता है -तो दूसरी तरफ़ कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन कह रहा है कि राज्यों पर सबसे बड़ा ख़तरा तानाशाही केंद्र का है, अतः राज्यों की स्वायत्तता बचाना सबसे बड़ी चुनौती है। विपक्ष संविधान की दुहाई दे रहा है जिसमें ‘भारत राज्यों का संघ है’ लिखा हुआ है, तो बीजेपी ‘भारत एक राष्ट्र’ की लहर पर तैरने की फ़िराक़ में है। आने वाले कुछ दिनों में जनता का जो फ़ैसला आएगा, वह इस बात पर निर्भर करेगा कि इन विचारों का उद्गम क्या है...

गाँधी-150 : Article

स्वराज का मंत्र देने वाले ऋषि महात्मा गाँधी सिद्धार्थ शर्मा 02 Oct, 2019 https://www.satyahindi.com/opinion/occasion-of-150th-birth-anniversary-of-mahatma-gandhi-pay-tributes-104877.html   गाँधी, जो एक आम व्यक्ति की ही तरह पैदा हुए और महात्मा बनकर हमारे बीच से गए। अपने जीवनकाल में उन्होंने अपने व्यक्तित्व का इस कदर विकास किया, अपने विचारों का प्रभाव इस कदर छोड़ा कि उन्हें विश्वव्यापी महापुरुष माना गया। आख़िर क्या था उस शख़्सियत में ऐसा? गाँधी प्राचीन भारतीय ऋषि परम्परा के अभी तक के संभवतः अंतिम अवतार थे। ऋषि अर्थात मंत्रदृष्टा, जो अपने आसपास के समाज की स्थिति की कमियों का सम्यक आकलन कर विधायी और व्यावहारिक सुधार सुझाता हो। गाँधी ने भी अपनी जन्मस्थली गुजरात, अपनी व्यावसायिक भूमि ब्रिटेन तथा अपनी प्रयोगशाला दक्षिण अफ़्रीका के तत्कालीन समाज की समस्याओं का ठीक-ठीक आकलन कर अपनी मातृभूमि को ग़ुलामी की तत्कालीन समस्या से निजात पाने का सर्वाधिक कारगर उपाय भी बताया, ख़ुद भी उस उपाय पर चले और इन दोनों के कारण उत्पन्न नैतिक बल के चलते अन्य समानधर्मी महापुरुषों से अधिक लोकप्रि...