Shivratri
--- हर हर महादेव
भारतीय धर्मग्रंथों में शिव का व्यक्तित्व तीन रूपों में प्रचलित है । फक्कड़, सरल एवं संहारक । सभी देवताओं की जीवनशैली अगर वैभवपूर्ण है, तो शिव अत्यंत वैरागी, एकांतप्रिय एवं प्रकृति के बीच रहनेवाले दर्शाये गए हैं । मोहनजोदाड़ो की खुदाई के अवशेष भी बताते है की ऋषभ अर्थात शिव योग एवं वैराग्य के समन्वय थे ।
बाद में शिव का एक नाम पुरंदर पड़ा जो दर्शाता है की वो नगरों के विनाशक हैं । क्योंकि प्राचीन भारतीय सभ्यता आरण्यक सभ्यता थी, अतः उसका समय=समय पर नगरीय सभ्यता से टकराव होता था । अपनी सभ्यता को बचाने के लिए प्राचीन भारतीय सभ्यता शिव की मदद से शहरों का नाश करती आई होगी ।
शिव की वैरागिता तथा सरलता तो उनके व्यक्तिगत गुण हैं पर उनकी संहारकता उनकी व्यापक क्षमता का प्रतीक है जिसका प्रभाव समष्टि पर पड़ता है । अर्थात संहार की शक्ति सिर्फ उसके पास होनी चाहिए जो सरल हो, प्रकृतिनिष्ठ हो, निर्विकार हो ।
आज के विश्व में क्या संहार क्षमता ऐसे तटस्थ लोगों के पास है ? नहीं । यही समस्या की जड़ है । शिव की पूजा तब सफल होगी जब संहारशक्ति स्वार्थी तत्वों के हाथ से निकालकर सरल तत्वों के हाथ में पहुंचेगी ।
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