LITERATURE
---साहित्य.......समाज सामान्यतः ऐसी मान्यता है की साहित्य समाज का दर्पण है । यदि इस तर्क तो मना जाय तो यह साबित होता है की साहित्य का अपना कोई स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है । क्योंकि दर्पण तब तक उपयोगहीन होता है जब तक उसपर कोई बाह्य आकृति का प्रतिबिम्ब नहीं पड़ता । साहित्य का शाब्दिक अर्थ होता है -समाज के सहित चलनेवाला । ऋग्वेद का स्तोत्र है "यावद ब्रह्म विष्ठितं तावति वाक्" अर्थात वाणी की व्यापकता ब्रह्म की व्यापकता के सामान है । वाणी की शक्ति ही साहित्य है । विश्व को तीन शक्तियां संचालित करती हैं । पहली शक्ति विज्ञान की है, जो इसे रूप देती है । दूसरी शक्ति अध्यात्म की है जो जीवन को आकार देती है, और तीसरी शक्ति साहित्य की है जो दुनिया को समयोचित मार्गदर्शन करती रहती है । जब शांति की आवश्यकता हो तो शांति, आशा की जरूरत हो तो आशा, उत्साह की मांग हो तो उत्साह तथा क्रांति के समय क्रांति । वर्तमान में उपासना-प्रधान धर्म तथा संकुचित-राजनीति के दिन लद गए हैं । अपने समय में इन दोनों ने समाज को जोड़ने क...