-------------अरब में बेला-चमेली की खुशबू
हर चैतन्यमय जीव, और खासकर मानव का सहज स्वभाव उत्तरोत्तर अधिकाधिक स्वतंत्रता के प्रति आकर्षण का होता है | बौद्धिक जमात इसे प्राप्त करने के लिए अहिंसक विधाई उपाय का सहारा लेती है तो भावनाप्रधान जमात इसे हासिल करने हेतु हिंसक, बेढब प्रयास करती है | इसी की अभिव्यक्ति हाल में ही मिस्र की क्रान्ति में दिखी जिसमें तीन दशक से चले आ रहे राष्ट्रपति हुस्ने मुबारक का अधिनायकवाद समाप्त हो गया | मिस्र की संस्कृति विश्व की सुलझी हुई संस्कृतियों में गिनी जाती है | सुलझी हुई, अनुभव के अर्थ में, वर्तमान शिक्षा के अर्थ में नहीं | इस क्रांति को बेला-चमेली क्रान्ति भी कहा जा रहा है क्योंकि फूल की सुगंध की तरह सत्ता परिवर्तन की यह क्रान्ति ट्यूनीसिया के सत्ता पलट से शुरू हुई और अल्जीरिया, यमन, जोर्डन, आल्बानिया आदि में भी फ़ैल रही है | अब मिस्र में भी इसने खुशबू बिखेरकर दो राष्ट्रों में सत्ता पलट दी |
इस क्रान्ति की विशेषताएं हैं, व्यक्तिगत नेतृत्व का अभाव और अहिंसक प्रतिकार | इस क्रान्ति का कोई पुरोधा नहीं है | न ही इसमें हिंसक बलवा है | यह अक्षरशः लोक-क्रान्ति है | इसकी एक और विशेषता धर्म के ठेकेदारों की अनुपस्थिति है | मिस्र का कट्टरवादी संगठन माने जाने वाला मुस्लिम ब्रदरहुड ने भी सहभागी न बनकर समर्थन की भूमिका तक अपने आप को सीमित कर लिया है | संभव है की आतंकवाद के विश्वव्यापी प्रमाणित आरोप से परेशान होकर इस्लाम की उदारवादी शाखा उसके विस्तारवादी, कट्टरपंथी शाखा पर भारी पड़ रही है | धर्म के अधीन राज्य के स्थान पर समाज के अधीन धर्म की सही परिभाषा को शायद इस्लाम अब मानने पर मजबूर हो | इसीलिए पश्चिमी देश, जो तीस वर्षों से मुबारक को अरब संस्कृति का दहलीज मानकर उनका पोषण करते रहे, वे भी इस वक्त पाला बदलकर क्रांतिकारियों की मांग को जायज ठहरा रहे हैं | अगर इस क्रान्ति में वहाबी समर्थक होते तो निश्चय ही अमरीका मुबारक का साथ देता |
अरब संस्कृति वर्तमान में विश्व अर्थ व्यवस्था का केंद्र-बिंदु है | यह निर्विवाद तथ्य है की औद्योगिक क्रान्ति के बाद का सम्पूर्ण मानव विकास कृत्रिम ऊर्जा पर आधारित है | और कृत्रिम ऊर्जा का अधिकाँश भण्डार अरब में है | परन्तु इस कृत्रिम ऊर्जा की अधिकाँश खपत पाश्चात्य संस्कृति कर रही है | अतः, इस भण्डार से ऊर्जा प्रवाह की निरंतरता बरकरार रखने हेतु पाश्चात्य देश अरब संस्कृति में गुणात्मक सुधार (तानाशाही से लोकतंत्र का सफ़र) के स्थान पर यथास्थिति को अधिक महत्त्व देते हैं | इसीलिए प्रायः सभी अरब राष्ट्र आर्थिक रूप से विश्व के संपन्नतम राष्ट्र होने के बावजूद मानवाधिकार एवं लोकतंत्र के मामले में पाषाण युग में हैं |
इतने पिछड़ेपन के बावजूद वहां की संस्कृति में अहिंसक, व्यक्ति-निरपेक्ष, विचार-प्रधान क्रान्ति होना जहां सम्पूर्ण विश्व के उदारवादी विचारधार के लिए शुभ संकेत है, तो वहीँ अधिकारवाद - चाहे वह वंशवाद हो, परिवारवाद हो , अधिनायकवाद हो , धार्मिक कट्टरपंथी हों या तानाशाह हों, -की राज्यसत्ता को ठोस चुनौती है | जो भी हो, बेला-चमेली क्रान्ति का यह प्रकरण, आने वाले समय में मानवता की लिए उदारवाद एवं कट्टरवाद के बीच के जद्दोजहद का रोचक एवं निर्णायक प्रसंग बनने की पूरी संभावना रखता है |
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