विशेषाधिकार पर उद्योगपतियों एवं 
कांग्रेस अध्यक्ष का बयान

भ्रष्टाचार निर्मूलन हेतु हाल के दिनों में कांग्रेस अध्यक्ष ने सभी कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को उनके संविधान-सम्मत विशेषाधिकारों को स्वेच्छा से विसर्जित करने का परामर्श दिया है | इसके तुरंत  बाद भारत के चौदह प्रमुख उद्योगपतियों ने भी इसी विषय पर एक सामूहिक सार्वजनिक पत्र प्रधानमन्त्री जी को लिखा | इन दोनों पत्रों को मीडिया ने भी खूब उजागर किया है |
अधिकारों का प्रयोग दो प्रकार से होता है | पहला उदाहरण अभिभावक-बालक का सा है | इसमें अभिभावक बालक के सभी अधिकार अपने पास रख लेते हैं और बालक की उम्र एवं परिपक्वता के अनुपात में वे अधिकार शनै-शनै उसे दिए जाते हैं | दूसरा उदाहरण लक्ष्य का पीछा कर रही क्रिकेट टीम का सा है जिसमें सलामी बल्लेबाजों की मंशा पूरा लक्ष्य बिना विकेट खोए पूरा करने की होती है, फिर भी इस प्रयास में विकेट गिरते जाते हैं और अगला बल्लेबाज उसे पूरा करने की कोशिश करता है | इसमें मूल इकाई (सलामी बल्लेबाज) अपनी पूरी शक्ति लगाने के बाद, बाक़ी बचा काम अगली इकाई को सौंपते हैं | इस प्रारूप में उत्तरोत्तर आने वाली इकाई का बोझ (लक्ष्य) छोटा होता जाता है और कई बार तो आगे की बड़ी इकाइयों (नामी बल्लेबाज) को उतरना ही नहीं पड़ता है |
पहला उदाहरण अधिकारों के विकेंद्रीकरण का है तो दूसरा अधिकारों के अकेंद्रीकरण का | जब बड़ी इकाई सभी अधिकार अपने पास रखकर कभी-कभार कुछ अधिकार मूल इकाई को देती है तो वह विकेंद्रीकरण होता है | जब सारे अधिकार मूल इकाई के पास सुरक्षित हों और मूल इकाई अपनी शक्ति लगाने के बाद कुछ स्वेच्छा से, अपने से बड़ी इकाई को देती है, तो वह अधिकारों का अकेंद्रिकरण होता है | पिछले साठ वर्षों से भारत पहले उदाहरण जैसी लोकतांत्रिक प्रणाली से संचालित है जबकी विश्व के अन्य विकसित लोकतांत्रिक राष्ट्रों ने दूसरी प्रणाली अपनाई है |
कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी अत्यंत विचारशील एवं कुशाग्र महिला हैं | वर्तमान भारत में उनके जैसी पैनी राजनैतिक सोच रखने वाले अन्य किसी पार्टी में नहीं हैं | उनका बचपन एक आधुनिक लोकतंत्र में बीता और उच्च शिक्षा बीसवीं सदी के उत्तरार्ध के उदार, प्रगतिशील, लोकतांत्रिक यूरोप में हुई | बाद का उनका अधिकाँश परिपक्व जीवन भारतीय लोकतंत्र में बीत रहा है | इसीलिए तो वे भारत की विकेन्द्रित व्यवस्था, जो प्रतिनिधि लोकतंत्र का जीवंत उदाहरण है, उसमें अकेंद्रित व्यवस्था, या सहभागी लोकतंत्र की सही परिभाषा है, -की आंशिक वकालत कर रही हैं | इस परिप्रेक्ष्य में जो उन्होंनें अपने मुख्यमंत्रियों को स्वेच्छा से विशेषाधिकार विसर्जन करने की जो राय दी है, उसके पीछे गंभीर सोच है |
उन्होंने इसके समर्थन में यह तर्क दिया है की विशेषाधिकार ही वर्तमान भूमि संबंधी भ्रष्टाचारों के जड़ में है | उन्होंने बिलकुल सही मीमांसा की है | वास्तव में सारे भ्रष्टाचार विशेषाधिकार प्राप्त इकाइयां ही करती हैं | आश्चर्य इस बात का है की इस सामान्य बात को भारत के बहुश्रुत समाजशास्त्री आज तक क्यों नहीं मंडित कर रहे हैं | इससे भी बड़ा आश्चर्य यह है की जब विशेषाधिकार-विसर्जन से भ्रष्टाचार कम हो जाएगा ऐसा श्रीमती गांधी का मानना है, तो वे केवल भूमि संबंधी विषयों में ही क्यों स्वैच्छिक विशेषाधिकार विसर्जन की बात कर रही हैं | शुक्र है की उद्योगपतियों के समूह ने विशेषाधिकार विसर्जन की वकालत सभी क्षेत्रों में की है |
 बोफोर्स, हवाला, हर्षद मेहता, यूरिया, ताबूत, आईपीएल, आदर्श, कर्नाटक जमीन आबंटन से लेकर स्पेक्ट्रम तक सारे भ्रष्टाचार को विशेषाधिकार-प्राप्त इकाइयों ने ही तो अंजाम दिए हैं | तो क्यों नहीं कांग्रेस अध्यक्ष भारत के संविधान में निहित विशेषाधिकार,  अर्थात केन्द्रीकरण, अर्थात भ्रष्टाचार के उत्स का समूल नाश  करने हेतु संघ-राज्य-समवर्ती सूची के तर्ज पर जिला-तालुक-गाँव-परिवार आदि को भी अपने-अपने क्षेत्र में स्वनिर्णय का अधिकार रखने हेतु संविधान संशोधन की पहल करती हैं | 
उन्होंने तो मर्ज का मूल पकड़ लिया है, और संकेत में निदान भी बतला दिया है | शायद अब भारत के उद्योगपति, समाजशास्त्री, बुद्धिजीवी, मीडिया आदि इस विषय को अपने तार्किक परिणति तक ले जाएंगे ऎसी आशा है |

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