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ऑर्गनाइज़र के यू टर्न की सच्चाई
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने वक्फ संशोधन का क़ानून बनते ही ईसाई धार्मिक सम्पत्तियों पर भी क़ानून बनाने का सुझाव का लेख अपने मुखपत्र ऑर्गनाइज़र में डाला भी, और तुरंत हटा भी लिया। एक हिंदूवादी संस्था द्वारा रिवर्स गियर में गाड़ी चलाने के पीछे के कारण को जानने के लिए ईसाइयत, इस्लाम तथा आरएसएस की प्राथमिकताओं को समझना जरूरी है।
ये आंकड़े भी जान लेना जरूरी है की पिछले 200 साल में दुनियाभर में ईसाईयत मानने वाले 230 करोड़ लोग बढे हैं, इस्लाम माननेवालों में 191 करोड़ इंसानों का इजाफा हुआ है, हिन्दुओं की संख्या में 109 करोड़ लोग नए जुड़े हैं, बौद्ध धर्म मानेवाले 43 करोड़ लोग बढे हैं, और यहूदी केवल 50 लाख बढ़ें हैं। तो ये स्पष्ट है की ईसाई धर्म को मानने वाले वर्तमान विश्व में बहुमत में हैं।
विचार और व्यवहार में हमेशा अंतर होता ही है। व्यक्ति बैठे बैठे अपने दिमाग में समूचे ब्रह्माण्ड की सैर तो कर सकता है पर व्यवहारिक रूप से वो अपनी कुर्सी से 2 गज दूर की चीज भी बिना उठे नहीं हिला सकता। तो आरएसएस एक वैचारिक संगठन है, व्यावहारिक नहीं। विश्वगुरु, अखंड भारत, हिन्दूराष्ट्र आदि विचार हैं, व्यावहारिक नहीं। इसीलिए न तो संयुक्त राष्ट्र ने भारत को विश्वगुरु का दर्जा दिया है, न ही हिन्दू नेपाल ने भारत में विलय की इच्छा जताई है, और न ही 65% भारत की जनता ने हिन्दूराष्ट्र के लिए वोट किया है।
दूसरी तरफ इस्लाम और ईसाइयत धर्म तो हैं -पर दोनों की प्राथमिकताएं अलग हैं। इस्लाम समानता प्रधान धर्म है -सब लोग, अमीर गरीब एक साथ बैठकर नमाज पढ़ते हैं। दूसरी तरफ ईसाइयत सेवा प्रधान धर्म है -इसीलिए अनेक मिशनरी स्कूल और अस्पताल चलते हैं। समानता मनुष्य के दैनिक बर्ताव में दिखती है, उसे कोई भौतिक सहारे की जरूरत नहीं होती, पर सेवा करने के लिए वस्तुओं की, औजारों की, जमीन की, इमारतों की जरूरत होती है।
इसीलिए वक्फ क़ानून पर इस्लामिक देश मौन हैं क्योंकि इस्लाम में धर्म पालन करने के लिए भौतिक वस्तुओं की जरूरत नहीं होती। पर वैचारिक रूप से यदि इस्लाम को यदि लगे की उसपर हमला हुआ है, तो वो तुरंत प्रतिक्रिया करता है -जैसे यही क़तर कुवैत ईरान जैसे इस्लामिक देशों ने भाजपा की प्रवक्ता द्वारा ईशनिंदा के मामले में भारत के राजदूतों तक को तलब कर दिया था और भाजपा को अपने प्रवक्ता को बर्खास्त तक करना पड़ा था। दूसरी तरफ ईसाइयत क्योंकि सेवा प्रधान धर्म है, तो उसकी सेवा में यदि कोई भी बाधा डालने की कोशिश होगी तो तुरंत पश्चिमी देशों से लेकर वैटिकन तक प्रतिक्रिया देंगें। उत्तर और दक्षिण अमेरिका के रेड इंडियन मूल निवासी इसके उदाहरण हैं की कैसे ईसाईयत से पंगे लेने का हश्र उस सभ्यता के ही लुप्तप्राय होने में अंत होता है।
तो आरएसएस ने वक़्फ़ क़ानून की सफलता की नींद में ईसाई मिशनरी संपत्ति पर भी क़ानून बनाने का जो सपना देखा -वो पाश्चात्य ईसाई देशों की प्रतिक्रिया की असलियत का झटका लगते ही टूट गया और आरएसएस ने ऑर्गनिज़र की गाड़ी फुल स्पीड इन रिवर्स गियर चला दी।
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