आप जैसा कोई मेरी जिन्दगी में आए
इ तिहास गवाह है कि कालखण्ड के कुछ पड़ाव ऐसे होते हैँ, जिसमें विचारों को क्रियारूप देना कालपुरुष की माँग बन जाती है । ऐसे में क्रिया प्रारम्भ करने से पहले गम्भीर चिन्तन करना आवश्यक होता है, क्योंकि बिना सोचे समझे प्रारंभ की गई क्रिया अक्सर घातक होती है । सन 2011 में भारत के बुद्धिजीवियों के समक्ष कालपुरुष ने ऐसी ही चुनौती रखी । अनायास प्रारम्भ हुए जनलोकपाल आन्दोलन को भारत की जनता का आशातीत समर्थन मिल रहा था । लम्बे समय से चले आ रहे विचारकों के तर्क -की शासन व्यवस्था पर नागरिक समाज का दबाव स्वस्थ लोकतंत्र का प्रतीक है -मूर्त रूप लेने लग गए थे । प्रायः यह देखा गया है कि जब भी विचारकों के निष्कर्ष मूर्त्त रूप लेने लगतें हैं, तब बुद्धिजीवी वर्ग उसका विरोध प्रारम्भ करता है क्योँकि यदि सही निष्कर्ष मूर्त रूप ले लें, तो बुद्दिजीवियों की आजीविका ही खतरे में पड़ जाती है, बुद्धिजीवी तो हमेशा समस्या के विश्लेषण से ही आजीविका चलाते आये हैँ । यदि समस्य...