Guru Poornima

---------अंधा बहुमत

- मेरे स्वर्गीय पिता सीताशरण शर्मा की रचना (१९८२) स्वर्गवास- गुरु पूर्णिमा २००१   





गरमी से परेशान हंस, आसमान से धरती पर आया,
बडबडाते हुए एक डाल पर आसन जमाया -
बोला "आज तो सूर्य का तेज कराल है,
गरमी से तन मन बेहाल है" 

उसी डाल पर एक उल्लू बैठा था,
हंस की बात सुनकर चकराया-
बोला "गरमी तो है, अन्धकार बढ़ने से ऐसा होता ही है,
इसके लिए सूरज क्या बला ले आया ?"


"भाई, सूरज का प्रकाश जितना तेज होता है, 
धरती पर ताप बढ़ता है" -हंस ने समझाया 

उल्लू जोर से हंसा "शायद अंधे हो,
चाँद और चांदनी की बात करते तो समझ में आती,
सूरज और प्रकाश की बात कर रहे हो, मूर्ख कहीं के !

हंस के बार-बार समझाने पर उल्लू ने उसे 
उल्लुओं के समूह में फैसला कराने को उकसाया 

उल्लुओं के समूह ने भी हंस को  पागल कहकर ठहाका लगाया,
हंस से सूरज और प्रकाश की बात बंद करने को धमकाया 
सत्याग्रही हंस के इनकार करने पर, उसके पंख नोच डाले,


...................................और, उसे बहुमत का न्याय बताया

 

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