Saturday, December 8, 2012

याचना नहीं अब रण होगा


समर शेष है......... 



पूछ रहा है जहां चकित हो, जन-जन देख अकाज
साठ  वर्ष हो गए, राह में अटका कहाँ स्वराज ?

अटका कहाँ स्वराज, बोल ! सत्ता तू क्या कहती है ?
तू रानी बन गयी, वेदना जनता क्यों सहती है ?

सबके भाग्य दबा रखे हैं, किसने अपने कर में ?
उतरी थी जो विभा, हुई बंदिनी, बता किस घर में ?

समर शेष है यह प्रकाश बंदीगृह से छूटेगा 
और नहीं तो तुझपर,  पापिनी ! महावज्र टूटेगा 

समर शेष है इस स्वराज को सत्य बनाना होगा 
जिसका है यह न्यास, उसे त्वरित पहुंचाना होगा 

धारा के मग में अनेक पर्वत जो खड़े हुए हैं 
गंगा का पथ रोक, इंद्र के गज जो अड़े हुए हैं 

कह दो उनसे, झुके अगर तो, जग में यश पायेंगे 
अड़े रहे तो, ऐरावत, पत्तों से बह जायेंगे 


समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध 
जो तटस्थ है समय लिखेगा उनका भी अपराध 

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Karpuri Thakur

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