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Showing posts from 2010
--------- राहुल गांधी, विकिलीक्स और  आतंकवाद का सच सार्वजनिक जीवन अपनाने वालों को सामाजिक विषयों पर स्पष्ट चिंतन रखना होता है | राहुल गांधी अनेक सामाजिक विषयों पर अभी तक मौन हैं | इसीलिए विकिलीक्स  में  जब उनका अमरीकी राजदूत के साथ कथित वार्तालाप भारतीय अखबारों ने उजागर किया तो प्याले में बवंडर आ गया | जुलाई 2009, अर्थात 26/11 के आठ महीने बाद राहुल गांधी से अमरीकी राजदूत ने व्यक्तिगत वार्तालाप में कथित तौर जब यह पूछा की सीमापार से आनेवाली धर्मोन्मादी आतंकवाद के बारे में उनकी क्या राय है, तो राहुल गांधी ने राजदूत से कथित रूप से यह कहा की वे सीमापार आतंकवाद से अधिक भारत के आंतरिक भगवा आतंकवाद से चिंतित हैं | सच क्या है यह तो दोनों पक्ष ही जानें, पर जब देश के प्रायशः भावी नेतृत्व के विचारों के बारे में मीडिया ऎसी रिपोर्ट लिखता है, तब इस विषय की वास्तविकता समझना हम सबके लिए श्रेयस्कर है | समाज में धर्म के आधार पर चार सम्प्रदाय होते हैं | 1. जो मान्यता एवं आचरण दोनों में कट्टर हैं, 2. जो मान्यता में शांतिप्रिय मगर आचरण से कट्टर होते हैं, 3. जो मान्यता में कट्टर पर आचरण में श...
भ्रष्टाचार -विवेचना एवं समाधान 1980 दशक में भारत का सबसे बड़ा घोटाला ' बोफोर्स' प्रकाश में आया | मूल्य था 64 करोड़ रुपये |25 वर्ष बाद आज 'स्पेक्ट्रम' घोटाला सामने आया है | मूल्य है 164 हजार करोड़ रुपये | यानी 2500 गुना से अधिक की मूल्यवृद्धि | इन पच्चीस वर्षों में भारत में मुद्रास्फिति, रुपये का अवमूल्यन, मूल्य वृद्धि आदि को समेटकर भी किसी भी वस्तु का दाम 2500 गुना नही बढ़ा है | चाहे वह सोना हो, चांदी हो, दलहन हो, तिलहन हो, कपड़ा हो, वेतन हो, चाहे सबसे महंगी जमीन ही क्यों न हो | स्पष्ट है की भ्रष्टाचार बाक़ी विषयों की तुलना में जामितीय अनुपात में बढ़ रहा है | इन पच्चीस वर्षों में सत्ताएं बदली, लोग बदले, नेता बदले, या यों कहें की एक पूरी पीढी ही बदल गई | इस बीच भारत में मध्यममार्गी, वामपंथी, राष्ट्रवादी और अलावा इनके हर तरह के गठबंधन ने सत्ता संभाली | पर भ्रष्टाचार न बदला न ही थमा | जनता, और मीडिया की सामान्य प्रतिक्रिया यह होती है की ऐसे कांडों में जो व्यक्ति लिप्त पाया जाता है, उसपर भ्रष्टाचार का ठीकरा फोड़ना, उसे 'एक्सपोस' कर, दण्डित करने का उप...
------- अयोध्या फैसला, न्याय एवं क़ानून का समन्वय ------- न्याय एवं क़ानून भिन्न होते हैं. न्याय को परिभाषित करना कानून का काम है. न्याय - अन्याय का भान हर मनुष्य को होता है. क़ानून उस भान का लिखित दस्तावेज, या ज्ञान मात्र होता है. न्याय और क़ानून में दूरी न्यूनतम होनी चाहिये, वरना भगत सिंह को फांसी कानूनसम्मत भले हो, परन्तु न्यायसंगत नहीं मानी जाती है और उसकी गंभीर प्रतिक्रियाएं होती हैं. स्वतन्त्र भारत में पेशेवर कानून नफीसों ने कानून को न्याय से ऊपर मान लिया जिसके चलते धीरे-धीरे एक स्थिति बन गई की कानून न्यायसंगत नहीं रहा गया. इसीलिए सामान्य जनता का व्यवस्था से मोहभंग होने लगा. क़ानून क्योंकि न्याय से विलग हुआ और श्रेष्ठ भी माना जाने लगा तो धूर्तों ने कानून का सहारा लेकर अन्याय करना शुरू किया. इलाहाबाद उच्च न्यायालय के त्रि-खंडपीठ ने सौभाग्य से इस फिसलन से समाज को उबार लिया. उसने न्याय एवं क़ानून में सामंजस्य स्थापित कर एक सही दिशा दिखाई है. आम नागरिकों ने फैसले पर राहत जताई है, क्योंकि इसमें आस्था का स्वतन्त्र मूल्यांकन किया गया है. यह एक ऐसा जटिल मुद्दा था जिसमें फैसला देना उत...
' China thinks India is a democratic mess' Richard McGregor , former Financial Times China bureau chief and the author of the illuminating The Party: The Secret World of China's Communist Rulers . Has published this unique book, which explains 'the party's functions, structures and how political power is exercised through them' in a deeply engaging way with the aid of a rich cast of characters. The book has of course been banned in mainland China . In the book, the author states that China thinks India is a democratic mess, without really seeking to understand why it is a democracy in the first place. The book review is available on http://www.washingtonpost.com/wp-dyn/content/article/2010/07/23/AR2010072302424.html Here is an objective assessment of the Chinese view of India :- China is right and wrong in its perception of India . Right because world over, democracy does imply a certain degree of anarchy. The degree of anarchy is higher ...