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-------- क्रान्ति 2014 ?

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​ --------   क्रान्ति 2014 ?         आज नव वर्ष है । अगले कुछ हफ़्तों में भारत आम चुनावों  के दौर से गुजरेगा । भारत का औसत व्यक्ति इन चुनावों में पहले के चुनावों से अधिक उत्सुक दिख रहा है । हर एक की उत्कट इच्छा है कि कुछ  नया हो । कई लोग इन चुनावों को क्रान्ति  के रूप में  परिभाषित कर रहे हैं । क्रान्ति होनी भी चाहिए । लम्बी जड़ता को क्रांतियां ही ध्वस्त कर सकती हैं । ऐसे में महत्वपूर्ण है कि क्रान्ति को समझा जाय ।       यह भ्रान्ति है कि क्रांतियाँ भौतिक होती हैं | क्रांतियाँ असल में मनुष्य के दिमाग में होती हैं, भले ही उसकी निष्पत्ति व्यापक रूप से भौतिक दृष्टिगोचर हो | जो क्रांतियों को गहराई से नहीं समझते  वे क्रान्ति के बाद की परिस्थिति देखकर उस क्रान्ति का आकलन करते हैं | अगर क्रान्ति के बाद का समाज पहले से बेहतर प्रतीत होता है तो क्रान्ति की शान में कसीदे पढ़े जाते हैं | इसके  विपरीत अगर क्रान्ति के बाद का समाज पहले से बदतर प्रतीत होता है तो क्रान्ति को टायं-टायं फिस्स मान लिया जाता है |  ...