Bangladesh PM Flees

बांग्लादेश में  हसीन दंभ भंग




                                            





रिभाषा यदि गलत हो तो निष्कर्ष गलत ही निकलते हैं। बांग्लादेश में लोकतंत्र है। वहां की प्रधानमंत्री देश छोड के भाग गईं। वो प्रधानमंत्री जिसे मात्र छः महीने पहले चुनाव में वहां का चार सौ पार, यानी 224/350 सीटें मिली थीं। इतने कम समय में ऐसा क्या हुआ कि बम्पर बहुमत से जीती प्रधानमंत्री को भगोड़ा बनने की नौबत आ गई ? 

     हुआ ये कि उन्होंने और उनकी अवामी लीग पार्टी ने लोकतंत्र की परिभाषा गलत समझ ली। लोक तंत्र का अर्थ होता है लोक का तंत्र। अवामी लीग ने समझ लिया लोक के लिए तंत्र। 

     द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व भर के कई देशों में व्यवस्था परिवर्तन आया। रूस आदि देशों ने साम्यवाद अपनाया, चीन आदि देशों ने तानाशाही अपनाई, युरोप, भारतीय उपमहाद्वीप आदि ने लोकतंत्र अपनाया। 

     मगर लोकतंत्र दो प्रकार का होता है। एक, लोकतांत्रिक शासन पद्धति, दूसरी, लोकतांत्रिक जीवन पद्धति। युरोप, जापान आदि ने लोकतांत्रिक जीवन पद्धति मॉडल की व्यवस्था अपनाई तो भारतीय उपमहाद्वीप के देशों ने लोकतांत्रिक शासन पद्धति को अंगीकार किया। 

     लोकतांत्रिक जीवन पद्धति में सरकार / संसद मैनेजर की भूमिका में होती है, स्वयं को सुरक्षा और न्याय देने तक सीमित रखती है, सामाजिक विषयों पर मौन रहती है जिसके चलते नीति निर्धारण में लोक की सहभागिता अधिक होती है। लोकतांत्रिक शासन पद्धति में सरकार / संसद मालिक की भूमिका में होती है, स्वयं को सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान मानती है, सामाजिक विषयों पर भी कानून बनाती है जिसके चलते वोट डालने के बाद लोक की नीति निर्धारण में सहभागिता शून्य होती है। पहले में लोक का तंत्र होता है तो दूसरे में लोक को काबू करने का तंत्र। 

     इसी गलत समझ के चलते बांग्लादेश सरकार ने सामाजिक सरोकार वाले विषयों में अतिक्रमण करके ऐसे आरक्षण के कानून लाए जो काल बाह्य थे। 21वीं सदी में जी रहे लोक के विरोध करने पर वहां की न्यायपालिका ने भी विशुद्ध न्याय न देते हुए कानून के दायरे का न्याय दिया, क्योंकि न्यायालय ये भूल गया कि न्याय लोक की मांग होती है न कि कानूनी परिभाषा की कवायद। अमेरिका में रंगभेद को लांघने हेतु लाए गये आरक्षण कानून को वहां की न्यायपालिका ने ये कह के निरस्त कर दिया कि सरकारों का काम न्याय देना नहीं होता, केवल हर नागरिक को सुरक्षा देना होता है, सुरक्षित माहौल में सर्व उदय स्वयं हो जाता है। 

     ऐसी स्थिति में बांग्लादेश के लोक को जैसे ही ये समझ में आ गया कि लोकतंत्र के नाम पर पूरी व्यवस्था ही लोक को कमजोर और तंत्र को मजबूत कर रही है, उसने सडकों पर विद्रोह कर दिया और तंत्र के प्रधान को मजबूरन मैदान छोडना पडा। 

     बांग्लादेश का हसीन दंभ भंग लोकतंत्र का दम भरने वाले उन सब समूहों के लिए एक सीख है जिन्होंने केवल चुनाव जीतने को लोकतंत्र समझ रखा है, जिन्होंने मान रखा है कि बहुमत का अर्थ है मनमानी करना, जिनका मानना है कि न्यायपालिका को भी शासन के कानून को निरस्त करने का हक नहीं होता, जो प्रतिनिधि लोकतंत्र को व्यावहारिक और सहभागी लोकतंत्र को अव्यावहारिक कहते हैं। 

     लोकतंत्र -साम्यवाद, तानाशाही, पूंजिवाद जैसी कुछ लोगों द्वारा लोक के ऊपर चलाई जाने वाली शासन पद्धति न होकर एक जीवन पद्धति है जिसमें कि लोक अपने सरोकार का नीति निर्धारण किसी अन्य को चुन के नहीं, बल्कि अपनी सहभागिता से स्वयं करता है और प्रशासन से केवल अपनी सुरक्षा और न्याय की गारंटी मांगता है। 

    जिस दिन भारतीय उपमहाद्वीप सहभागी लोकतंत्र की इस सही परिभाषा को समझ लेगा वो विश्व के पहले गणराज्य वैशाली की धरोहर का प्रतिबिंब भी बनेगा और आधुनिक पाश्चात्य देशों की तरह दिन दूनी रात चौगुनी प्रगतिशीलता भी हासिल कर लेगा। 

Comments

Popular posts from this blog

Karpuri Thakur

Crime Prevention

Loksabha 2024 Poll Prediction