India Ahead



     भारत....................किस डगर 


     वर्तमान काल बड़ा रोमांचक है | जब चारों ओर विरोधाभास प्रतीत होने लगें तो ऐसा ही होता है | लोकतंत्र में भी ऐसा ही होता है जब आर्थिक सत्ता विकेन्द्रित हो किन्तु तंत्र की सता विकेन्द्रित नहीं होती | ऎसी स्थिति में उसके कुछ स्वाभाविक दुष्परिणाम होते है, जैसा आज के भारत में है | जब समाज को आर्थिक आजादी तो मिले पर राजनैतिक गुलामी बनी रहे तब पूँजी राज्यशक्ति के साथ भ्रष्ट समझौते कर अपनी शक्ति बढ़ा लेती है | साधारण नियम होता है कि केवल श्रम मनुष्य को श्रमिक तथा केवल पूँजी व्यक्ति को वणिक बनाती है | अगर पूँजी श्रम को खरीद ले तो वही उद्योगपति बन जाता है और अगर वो बुद्धि भी खरीद ले तो सत्ता ही हाथ लग जाती है | पूँजी+श्रम+बुद्धि = सत्ता |


     भारत के संविधान की  उद्देशिका का प्रारम्भ ही "हम भारत के लोग" से होता है | आश्चर्य है कि "हमारे" संविधान को संसद नाम की एक छोटी सी इकाई में बैठे मुट्ठी भर लोग आमूलचूल बदलते रहते हैं | कहने को तो "हम भारत के लोग" संविधान से बद्ध हैं, पर वास्तव में संसद के "हम" कैदी हैं | संसद ने निर्णय के "हमारे" सारे अधिकार "हम" से छीनकर अपने पास बंधुआ रख लिए हैं | और संसद का यह एकपक्षीय शक्तिशाली होना ही आजाद भारत के सभी समस्याओं की जड़ है |
      


     2011 से अब तक अन्ना  हजारे, अरविन्द केजरीवाल, बाबा रामदेव  या अनेकानेक स्थानीय नागरिक आन्दोलनों के समर्थन में खडी जनता को देखकर कोई यह गलतफहमी न पाल ले कि यह किसी व्यक्ति के पक्ष में आंधी है | यह भीषण असंतोष है, संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली पर | संसद भी इसे समझ चुकी है | इसीलिए तो सम्पूर्ण संसद ने एक स्वर में संसद में इसे संसदीय लोकतंत्र को कमजोर करने की साजिश कहा |  अन्ना तो केवल इसके प्रतीकमात्र हैं | और भ्रष्टाचार निर्मूलन विधेयक जनलोकपाल केवल इसका प्रथम चरण है |

     


     दूसरे चरण में देश की जनता प्रतिनिधि वापसी (राईट टु रीकाल) की स्वाभाविक मांग करेगी | क्योंकि वर्तमान प्रणाली, वोटर रूपी शाकाहारी के सामने विभिन्न पशु-पक्षी-मत्स्य के स्वादिष्ट मांस परोसकर उनमें से एक को खाने की बाध्यता जैसा है | ऊपर से उसे वमन करने की भी मनाही जो है |

      


     तीसरे चरण में यह मांग ग्राम गणराज्य पर जाएगी | संविधान की धारा 243 ग्रामसभा/नगरपालिका के गठन को आवश्यक ठहराती है | पर इसी धारा के उपबंध 'क' तथा 'ब' इन संवैधानिक इकाइयों को शक्ति प्रदान या न प्रदान करने की भी छूट देता है | इसीलिए आज स्थानीय निकाय वन्ध्यापुत्र  बनकर रह गए हैं | इस विडम्बना को दूर करने के लिए लोग सातवीं अनुसूची में संघ, राज्य, समवर्ती सूची के साथ स्थानीय निकाय सूची की भी मांग करेंगे |

      


     चौथे और अंतिम चरण में देश संविधान की मुक्ति की मांग उठाएगा | आज संविधान, तंत्र का बंधक बनकर रह गया है | तंत्र अपने सभी गलत काम संविधान को ढाल बनाकर ही करता है | पहले संविधान को संशोधित कर उसे मन-मुताबिक़ बनाता है, फिर उसी संविधान की दुहाई देकर अनाप-शनाप क़ानून जनता पर ठोक देता है | आज विश्वभर  में शायद भारत एकमात्र राष्ट्र है, जहां का संविधान उसके नागरिकों की सहमति के बिना ही संशोधित होता हो | 


     वर्तमान काल की मांग है कि राजनीति पर समाज हावी हो और इसके लिए भारत एक नए राजनीतिक दर्शन हेतु तैयार है । भारत का नागरिक  राज्य पर समाज की संप्रभुता स्थापित करने की तैयारी में जुटा है । 
       


     संसद से संविधान की मुक्ति होने पर ही हम "प्रतिनिधि लोकतंत्र" रूपी राक्षस से मुक्त हो, "सहभागी लोकतंत्र" रूपी रामराज्य को पाएंगे | गांधी भी इसी  व्यवस्था के स्वप्नदर्शी थे और यही भारत की वर्तमान के संसद्तंत्र से भविष्य के स्वराज तक पहुँचने की नियति है | मार्ग में जनलोकपाल, राईट टु रीकाल, ग्राम-गणराज्य, संविधान की मुक्ति आदि निश्चित पड़ाव भर हैं |



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