Heinous Crime in Delhi
---------फिर एक बार , अपराध से हार हाल ही में दिल्ली बलात्कार काण्ड ने फिर भारत को हिला दिया | कायरतापूर्ण इस मनमानी जघन्य हिंसा को भारत कब तक सहता रहेगा यह सवाल आज हर नागरिक पूछ रहा है | विश्वभर में अविकसित राष्ट्रों को छोड़ दें, तो केवल भारत ऐसा देश है जहाँ ऐसे प्रकरणों में लगातार वृद्धि हो रही है | अन्य विकसित या विकासशील देश अपनी धरती पर ऎसी घटनाओं में गुणात्मक कमी कर चुके हैं | भारत एक लोकतंत्र है | सवाल उठता है कि पुलिस को कौन नियुक्त करता है ? क्यों नियुक्त करता है ? पुलिस को तंत्र नियुक्त करता है | आदर्श स्थिति वह होती है जब पुलिस, 'तंत्र' के माध्यम से 'लोक' को सुरक्षा दे | पर भारत में आज हर नागरिक यह स्पष्ट अनुभव कर रहा है कि पुलिस 'लोक' नियंत्रण के माध्यम से 'तंत्र' को सुरक्षा दे रही है | तभी तो पुलिस तुच्छ मामलों में नागरिकों को नियंत्रित करने में तो तत्परता दिखाती है, (हाल ही का शाहीन फेसबुक मुद्दा) पर जघन्य अपराध रोकने और नागरिकों को सुरक्षा देते वक्त हर बार पूरी तरह विफल हो जाती है | इसके मूल में भारतीय पुलिस की